पति-पत्नी बच्चों को सिखा रहे शिक्षा के साथ स्वच्छता का पाठ, घर को बना लिया पाठशाला
नीरजा द्विवेदी ने पति पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी के साथ मिलकर शुरू की निशुल्क पाठशाला
लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। जुलाई 2003 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी अपने विवेकखंड, गोमती नगर स्थित आवास में शिफ्ट कर गए। तब वो क्षेत्र बहुत विकसित नहीं था। मजदूरों की संख्या ज्यादा थी। 15 अगस्त 2003 का वो दिन, जब पत्नी नीरजा द्विवेदी ने आस-पास काम करने वाले मजदूरों और झोपड़पट्टी में रहने वाले बच्चों को घर बुलाया। उन बच्चों से स्वतंत्रता दिवस के बारे में बात की। उनके पास सामान्य सी जानकारी भी नहीं थी। उस दौरान अहसास हुआ कि इन बच्चों को शिक्षा से जोड़ना बेहद जरूरी है। उसी दिन से पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी का विवेकखंड गोमती नगर स्थित घर ज्ञान प्रसार संस्थान बन गया। घर पर पाठशाला शुरू की तो कुछ और लोगों ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए इससे जुड़ना चाहा। हर बच्चे को शिक्षा से जोड़ने का कारवां बन गया। कोरोना काल के पहले तक करीब 100 बच्चे नियमित कक्षा में आते रहे।
स्कॉलरशिप देने के साथ ही बच्चों की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी कराई जाती है। संस्थान के कई बच्चे स्नातक करने के साथ ही इंजीनयरिंग की पढ़ाई भी कर रहे हैं। जो बच्चे हाई स्कूल या इंटर परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर जाते हैं, उन्हें शिक्षक के तौर पर पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाती है। उन्हें मासिक वेतन भी देते हैं। महेश चंद्र द्विवेदी बताते हैं, ज्ञानदान महादान होता है। इससे बेहतर हम कोई भी चीज बच्चों को नहीं दे सकते। इसी सोच के साथ हमने ये पाठशाला शुरू की। बच्चों के पूर्व ज्ञान को परखा जाता है। फिर उनकी समझ और जानकारी के हिसाब से अलग-अलग समूह बना देते हैं। समूह के हिसाब से पढ़ाई होती है। 2019 में दो लड़कियों ने एलएलबी किया। अन्य विद्यार्थी भी अलग-अलग क्षेत्रों में बेहतर कर रहे हैं।
शिक्षा के साथ स्वच्छता का पाठ
बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उनकी सेहत का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। समय-समय पर स्वास्थ्य शिविर में बच्चों की जांच भी होती है। उन्हें नि:शुल्क दवाइयां भी वितरित करते हैं। कपड़े भी देते हैं। बच्चों को स्वच्छता का पाठ भी पढ़ाया जाता है। हैंड वॉश के साथ ही शारीरिक सफाई के बारे में समझाया जाता है। साथ ही व्यक्तित्व विकास के लिए भी म्यूजिक और डांस क्लासेज होती हैं।
ये भी कर रहे सहयोग
इस प्रयास को देखते हुए कई लोगों ने बच्चों को पढ़ाने की इच्छा जताई। आरती कपूर, सीमा बाजपेई, सपना कपूर, विद्या सिंह, इंदु माहेश्वरी, निली श्रीवास्तव, कल्पना सक्सेना और शांता माथुर आदि कोरोना से पहले तक बच्चों को पढ़ाने के लिए आते रहे।
लेखक भी हैं, मिले कई अवार्ड
दंपती कलम के धनी भी हैं। दोनों की ही अब तक बीस किताबें आ चुकी हैं। नीरजा द्विवेदी विविध विधाओं में लेखन करती हैं। वहीं सर्विस में रहते हुए ही महेश चंद्र द्विवेदी की तीन किताबें आ चुकी थीं, पर सेवानिवृत्त होने के बाद लेखन को और धार मिली। रिटायर होने के बाद से अब तक 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। कहानी, उपन्यास, संस्मरण, व्यंग्य और कविता विधा में लिखते हैं। मुख्य कृतियों में उपन्यास उर्मि, भीगे पंख, कहानी संग्रह एक बौना मानव, सत्यबोध, लव-जिहाद, संस्मरण में प्रिय अप्रिय प्रशासकीय प्रसंग, व्यंग्य क्लियर फंडा, भज्जी का जूता, 51 श्रेष्ठ व्यंग्य और कविता में सर्जना के स्वर, अनजाने आकाश में आदि शामिल हैं। उप्र हिंदी संस्थान के शरद जोशी सर्जना पुरस्कार के साथ ही यूपी रत्न- ऑल इंडिया कांफ्रेंस ऑफ इंटेलेक्चुअल्स, भारत भारती-महाकौशल साहित्य एवं संस्कृति परिषद, कला रत्न-अखिल भारतीय ब्रज साहित्य संगम, मथुरा आदि सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं।