पर्यटन के प्रति राज्य सरकार की संजीदगी को देखते हुए विकास की उम्मीदों को बल
चित्रकूट में पर्यटकों को तो आकर्षित करेगा ही आर्थिक उन्नयन का स्रोत भी बनेगा। इस तरह की पहल करके प्रदेश के कई जिलों को पर्यटन के नक्शे पर पहचान दिलाई जा सकती है। गरीबी उन्मूलन में पर्यटन बड़ा योगदान देने का दम रखता है।
लखनऊ, राजू मिश्र। राममनोहर लोहिया का सपना था कि चित्रकूट पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण की संस्कृतियों का केंद्र बिंदु बने। इसी संकल्पना के तहत उन्होंने रामायण मेला की परिकल्पना की थी। चित्रकूट के कलकत्ता धर्मशाला में रामायण मेला का घोषणापत्र जारी करते हुए लोहिया की पीड़ा भी झलकी थी- ‘मेरे हर काम में पंडित नेहरू को राजनीति नजर आती है, जबकि रामायण मेला का दूर-दूर तक राजनीति से वास्ता नहीं’। लोहिया के जीते जी रामायण मेला कभी आकार नहीं ले पाया, लेकिन उनके अनुयायियों ने उनकी परिकल्पना को जरूर मूर्त रूप दिया।
पांचवें रामायण मेला का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने किया था। उन्होंने चित्रकूट के विकास के तमाम वायदे और इरादे जाहिर किए थे। तब के नागरिक उड्डयन मंत्री पुरुषोत्तम कौशिक ने तो चित्रकूट में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण की घोषणा की थी, लेकिन जनता पार्टी की सरकार जाने के बाद कहीं कुछ न हुआ।
चित्रकूट के प्रमुख स्थलों में से एक है- हनुमान धारा। यहां सीढ़ियां चढ़ने के चक्कर में वृद्ध जन बहुत ही कष्टप्रद स्थितियों से मुकाबिल होते थे। योगी सरकार ने न सिर्फ इस दिक्कत को समझा, बल्कि आनन-फानन में यहां रोप-वे की स्थापना करवा दी। आज चित्रकूट में प्रदेश का पहला और एकमेव रोपवे जन-जन के आकर्षण का केंद्र है और श्रद्धालु सुविधापूर्वक न सिर्फ हनुमान धारा जा पा रहे हैं, बल्कि चित्रकूट की अलौकिक छटा को भी निहार पा रहे हैं। तपोभूमि की हरियाली और विंध्यगिरि की पर्वत श्रेणियों की शोभा रोपवे से देखते ही बनती है। सब कुछ नयनाभिराम। यह यात्र बेहद सुखद और रोमांचित करने वाली है। रोप-वे की सवारी में महसूस ही नहीं होता कि यहां कभी 618 सीढ़ियां चढ़ कर हनुमत लाल का दर्शन कितना कष्टसाध्य था। यह सोच भी उत्तम है कि बीच यात्र में रोपवे को एक मिनट के लिए रोका जाएगा, ताकि सैलानी चित्रकूट की प्राकृतिक सुषमा को निहार सकें। देश-विदेश से सबसे ज्यादा पर्यटक उत्तर प्रदेश ही आते हैं। अनुमान है कि तीन करोड़ से अधिक पर्यटक तो अपने ही देश के होते हैं।
विंध्य पर्वत की एक चोटी चित्रकूट है, लेकिन यहां पर तमाम पर्वतीय दृश्यों का अनुपम रूप देखने को मिलता है। अभी तक यह नजारा लोग नीचे से देख नहीं पाते थे। अब हनुमान धारा के रोपवे की रोमांचक यात्र शुरू हो गई है तो लोग चित्रकूट का सौंदर्य निहार कर बोल पड़े हैं ‘अभिनव.. अप्रतिम’। लोग रोपवे की ट्राली से चित्रकूट के प्राकृतिक नजारे देख खुशी से फूले नहीं समाते हैं। उन्हें सहज यकीन नहीं होता है कि मंदाकिनी नदी, पहाड़ों और मंदिरों से सुसज्जित चित्रकूट इतना खूबसूरत दिखता है। हरियाली से भरी पहाड़ियां अत्यंत नयनाभिराम लगती हैं। कामदगिरि व मंदाकिनी का नजारा रोपवे से अपने आप में अलग है। इन दिनों धुंध का पुंज बनता है तो लगता है कि कामदगिरि के ऊपर पूरा ब्रम्हांड घूम रहा है। जंगल से बीच से बहती मंदाकिनी और उसके किनारे बने मठ-मंदिर आंखों को सुकून देते हैं। वध्यधाम में अष्टभुजा से काली खोह तक रोपवे लगभग तैयार है, पर अभी इसका लोकार्पण नहीं हो सका है। निकट भविष्य में इसकी सौगात भी जनता को मिलने की प्रबल उम्मीद है।
‘चित्रकूट निश दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत।’ जहां पर प्रभु श्रीराम का वास हो वहां पर उनके भक्त हनुमान तो रहेंगे ही। चित्रकूट में सबसे प्रसिद्ध स्थल हनुमान धारा का विशेष महत्व है। यहां पर श्रीहनुमान जी को वह सुख और शांति मिली थी जो पूरे ब्रम्हांड में हासिल नहीं हुई। किवदंती है कि लंका दहन में हनुमान जी का पूरा शरीर काफी तप गया था। लंका विजय के बाद हनुमान जी ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम से शरीर की शीतलता का उपाय पूछा। श्रीराम ने उन्हें उपाय बताया कि विंध्य पर्वत पर जाएं, जहां पर आदि काल के ऋषि-मुनियों ने तप किया था। उस पवित्र भूमि की प्राकृतिक सुषमा से युक्त स्थान पर जाकर तप करो।
हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत की एक पहाड़ी में श्रीराम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1,008 बार किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ, ऊपर से जल की एक धारा प्रकट हो गई। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जलधारा निरंतर गिरती है जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है। वास्तविक अर्थो में रोपवे प्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर हनुमान धारा को नए केंद्र के रूप में स्थापित करेगा।
[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]