यूपी एग्रो कभी था हरितक्राति का नायक, आज दुर्दशा के गमगीन नगमों में लिप्त
तालकटोरा रोड यूपी स्टेट एग्रो इंडस्टियल कार्पोरेशन वर्कशॉप के जर्जर हो रहे भवन। विधान सभा मार्ग यूपी एग्रो कार्यालय में छाया सन्नाटा।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। वह हीरा, मोती, हरिया .जैसे बैलों की गोई का जमाना था, जब किसान चिलचिलाती धूप में हल गाड़े खेतों में इन्हीं के सहारे अन्न के दाने उपजाने के लिए पसीना बहाता था। मनमाफिक उपज फिर भी न मिलती। इसी सूरत-ए-हाल से निकला हरित क्राति का नारा और प्रदेश में यूपी स्टेट एग्रो की स्थापना हुई। तालकटोरा स्थित औद्योगिक क्षेत्र में फैक्ट्री स्थापित कर इसे आधुनिक कृषि यंत्रों को बनाने और विकसित करने का जिम्मा सौंपा गया। नतीजा भी निकला और खेतों में काम करते किसानों के कंठ से 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती' का सुगम संगीत निकलने लगा। लेकिन, 1991 में नसीब ने पलटा खाया और इस निगम के स्वर दुर्दशा के गमगीन नगमों में बदलने लगे। दैनिक जागरण आपको इसी के संघर्षो की कहानी उसी की जुबानी बता रहा है। हरितक्राति के नायक के रूप में थी अलग पहचान
आजादी के बाद देश में सभी को दो जून की रोटी की चुनौती और किसानों को आधुनिक खेती के गुण सिखाकर देश में हरित क्राति लाने का जो सपना देखा गया था, उसे साकार करने में मैंने भी भूमिका निभाई। कृषि विभाग के साथ हरितक्राति के नायक के रूप में कभी राजधानी समेत प्रदेश में मेरी अलग पहचान थी। आधुनिक कृषि उपकरणों को बनाने और उसके बारे में किसानों को बताने की जिम्मेदारी मैंने न केवल मैंने बखूबी निभाया बल्कि कृषि योग्य भूमि में फसलों को नष्ट करने वाले खलनायक खरपतवारों को आधुनिक उपकरणों के माध्यम से समाप्त कर दिया।
तालकटोरा औद्योगिक क्षेत्र में कभी मेरी शान में कसीदे पढ़े जाते थे। मेरे परिसर में आने की लालसा किसानों के साथ ही सामान्य लोगों में भी हुआ करती थी। आधुनिक मशीनों और संसाधनों के बीच उपकरणों के बनाने की आवाजें मेरे हौसले को और बढ़ा देती थीं। मेरी बढ़ते स्वरूप और किसानों के लगाव को मानो नजर लग गई हो।
स्थापना काल 1967 से सबकुछ ठीक चल रहा था कि अचानक 1991 में निगमों की श्रेणी बनी तो मेरी कुशलता को दर किनार कर मुडो 'घ' श्रेणी में रख दिया गया। यानी, आगे किसी नए कर्मचारी को भर्ती करने की रोक हो गई। मेरा मनोबल गिरा और मेरे आगन में काम करने वाले श्रमिकों का उत्साह भी कम हो गया। कई कर्मचारी तो अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में पहुंच गए और कुछ मृतक आश्रित आज भी नौकरी की आस में मेरे दर के चक्कर लगाते हैं। कर्मचारियों की मेहनत और खून पसीना एक करने का एहसास भी मैंने बड़ी शिद्दत से किया है। अब उनके बच्चे नौकरी की आस में परिसर में आते और निराश होकर लौटते हैं तो उन्हें देखकर मैं भी परेशान हो उठता हूं, लेकिन कुछ कर नहीं सकता। यह कसक मन में बनी रहती है। 600 से अधिक कर्मचारी कभी तालकटोरा स्थित मेरे कारखाना परिसर में काम करते थे और अब छह से सात कर्मचारी दरकती दीवारों और छत से उखड़ते प्लास्टर के बीच जान जोखिम में डालकर पुरानी कुर्सियों पर बैठकर सेवानिवृत्ति का इंतजार कर रहे हैं। निर्माण नहीं लेकिन.
यूपी स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के एमडी धीरेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि अनाज खरीद केंद्रों पर तैनात कर्मचारी किसानों की अब भी सेवा कर रहे हैं। उर्वरक, बीज, कीटनाशक के साथ सिंचाई की आधुनिक तकनीकों और सौर ऊर्जा की जानकारी भी दी जाती है।
केंद्र-राज्य सरकार बराबर के हिस्सेदार थे
यूपी एग्रो नाम से मेरी स्थापना के लिए 1967 में तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर तीन करोड़ रुपये की पूंजी निवेश की थी। यह 1976 तक बढ़कर 60 करोड़ हो गई। इसी वर्ष केंद्र सरकार ने मेरा भविष्य पूरी तरह प्रदेश सरकार के हवाले कर दिया।
'रोटावेयर' और 'हैरो' की पूरे देश में थी माग
स्थापना काल से ही किसानों का हित मेरे लिए सवरेपरि रहा। मेरे यानी, यूपी स्टेट एग्रो इंडस्टियल कार्पोरेशन के तालकटोरा स्थित कारखाने में बनने वाला कृषि यंत्र 'रोटावेयर' और 'हैरो' की गुणवत्ता इतनी उत्कृष्ट थी कि हरियाणा पंजाब व गुजरात समेत देशभर में इसकी माग थी। 'कल्टीवेटर' बनाकर यूपी एग्रो ने गहरी और खेतिहर भूमि को पलटकर खरपतवारों को नष्ट करने की नई क्त्राति का सूत्रपात किया था। विधायक हैं, एग्रो वाले बाबा हैं, पर मैं नहीं
कभी सरकार के लिए नाज थी पर अब पूरी तरह नासाज हूं। कभी विधान सभा मार्ग स्थित मेरा परिसर भी काफी बड़ा था, अब वहा के कुछ हिस्से में विधायक निवास है, एक हिस्से में सर्विस सेंटर जहा लग्जरी गाड़ियों की आमद रहती है और हैं 'एग्रो वाले बाबा'। हा, मेरा वजूद जरूर सिमट कर रह गया है। विधायक निवास रॉयल होटल भी कभी यूपी एग्रो के मुख्यालय की जमीन थी, लेकिन विधायक निवास निर्माण के लिए प्रदेश सरकार ने इसे दे दिया। परिसर में एक निजी मोटर वाहन कंपनी का सर्विस सेंटर है। मुख्यालय परिसर में ही सैयद जलाल की मजार है जो 'एग्रो वाले बाबा' के नाम से प्रसिद्ध है। हिंदू मुस्लिम सभी यहा नतमस्तक होते हैं।