स्टेटस सिंबल बन रहा म्यूरल आर्ट, हुनर से कमा रहे नाम के साथ पैसा
पहले गावों में कच्ची मिट्टी से बनने वाली आकृतिया अब दिख रहीं नए रंगों में। राजधानी के युवा बन रहे प्रोफेशनल म्यूरल मेकर, नाम के साथ कमा रहे पैसा।
लखनऊ[महेंद्र पाडेय]। गावों में कच्ची दीवारों पर पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों के आकार प्रकृति के थोड़ा और करीब ले जाते हैं। घर को सजाने के लिए रंगों से उकेरे गए ऐसे जीवंत चित्र घरों से लेकर ऑफिस में बेहद पसंद किए जा रहे हैं। यह कला नई भले न हो पर मॉडर्न दौर ने इसे पॉपुलर बना दिया है। लिहाजा मेट्रो से लेकर बड़े-बड़े मॉल्स में भी म्यूरल्स बनवाए जा रहे हैं। प्लास्टिक, लोहा और बालू से भी बनते म्यूरल
आमतौर पर म्यूरल दीवारों पर बनाई गई पेंटिंग रूप में समझा जाता है लेकिन इसके बेस को लेकर कई प्रयोग किए जा रहे हैं। अब टाइल्स, टेराकोटा, सीमेंट, बालू, ग्लास, प्लास्टिक, लोहे और स्टील आदि से परमानेंट म्यूरल बनाए जाते हैं। इस क्षेत्र में पैसे की कमी नहीं
म्यूरल मेकर अमर पाल कहते हैं कि आमतौर पर एक म्यूरल बनाने पर 20-25 हजार से एक लाख रुपये तक खर्च आता है। इसके लिए रंगों की समझ हो और अपने आस-पास जो कुछ हो रहा है, उसकी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलू समझने की क्षमता होनी चाहिए। प्रोफेशनल बनने को कोर्स जरूरी
लखनऊ विश्वविद्यालय के कला विभाग के अध्यक्ष डॉ. रतन कुमार कहते हैं कि पहले इस काम को कुछ खास जातिया या परिवार किया करते थे लेकिन अब ये प्रोफेशनल वर्क बन चुका है। कोई भी सामान्य व्यक्ति, जिसे कला और रंगों की थोड़ी-सी समझ हो, वह म्यूरल मेकिंग में हाथ आजमा सकता है। यह एक क्त्रिएटिव फील्ड है। हिट हो रहे ये म्यूरल
ट्रेडिशनल म्यूरल
धार्मिक स्थलों, स्वीमिंग पूल आदि की दीवारों पर ऐसे म्यूरल बनाए जाते हैं। इसके तहत प्राकृतिक दृश्य बनाए जाते हैं। जैसे - नदिया, झरने, पेड़-पौधे आदि। टाइल्स म्यूरल
इस तरह के म्यूरल घरों की दीवारों पर बनाए जाते हैं। इसमें टाइल्स, टेराकोटा व रंगों के साथ प्लास्टिक आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है। राजनैतिक व ऐतिहासिक म्यूरल
इस तरह के म्यूरल में किसी राजनीतिक दल या राजनेता के राजनीतिक सफर के बारे में चित्रों के जरिए बताया जाता है। संग्रहालयों व दफ्तरों में ऐतिहासिक महत्व वाले म्यूरल बनाए जाते हैं।