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International Women day: मंजिल जरूर मिलेगी, बस संघर्ष करो..

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के संघर्ष की कहानी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 03 Mar 2019 04:56 PM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 08:48 AM (IST)
International Women day: मंजिल जरूर मिलेगी, बस संघर्ष करो..
International Women day: मंजिल जरूर मिलेगी, बस संघर्ष करो..

लखनऊ, [पुलक त्रिपाठी]। प्रेम संग अटूट आस्था मिली तो ‘विद्रोही’ मीरा बनी। ममत्व और वीरता का मेल हुआ तो शमशीर धारी रानी लक्ष्मी बाई के रूप में दिखी। दृढ़ संकल्पित होकर काल के पंजे से पति को खींच लाने वाली सावित्री बन गई। मां काली बन दुष्टों का संहार किया। स्त्री की शक्तिशाली भुजाओं में अनंत कथाएं हैं। प्रकृति भी उस शक्ति से बखूबी परिचित है, तभी अपने अंदर एक और जान को जीवित रखने का सौभाग्य भी उसी को मिला। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (आठ मार्च) के मौके पर दैनिक जागरण अलग-अलग क्षेत्रों की ऐसी ही सशक्त महिलाओं को सलाम करेगा। प्रत्येक दिन नारी के अलग-अलग रूपों पर केंद्रित खबरें होंगी। जिसकी पहली कड़ी आज है।

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जरूरी नहीं रोशनी चरागों से ही हो, शिक्षा से भी घर रोशन होते हैं.. 

शिक्षा सशक्त समाज का आधार है। एक बेटी के पढ़ने पर दो परिवार शिक्षित होता है। इसी ज्ञान के उजियारे में एक सुशिक्षित और सशक्त समाज बनता है। ऐसा समाज जिसमें हर किसी के पास पढ़ने और आगे बढ़ने के अवसर हों। शिक्षा जगत से जुड़ीं कुछ महिलाओं के प्रयास इसी दिशा में हैं। इनका मूल मंत्र है..

भंवर में उलझो, लहरों से जूझो

मंजिल जरूरी मिलेगी, बस संघर्ष करो..।।

व्यवहार परिवर्तन के जरिए सार्थक बदलाव

डॉ. नेहा आनंद, काउंसलर, बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर विश्वविद्यालय

समाज में बढ़ती बुराइयों को रोकने के लिए मानसिकता में बदलाव जरूरी है। सभ्य समाज के निर्माण में युवाओं की भूमिका अहम हो जाती है। कई बार विकृत मानसिकता के साथ वह राह से भटक भी जाते हैं। ऐसे में उनकी सोच को सही दिशा देने के संकल्प के साथ डॉ. नेहा आगे बढ़ीं। विश्वविद्यालय की व्यस्तता के बीच वह समय निकाल कर युवाओं के बीच जाती हैं। कभी कैंप तो कभी व्यक्तिगत बातचीत के जरिए उनके बीच सकारात्मकता का संचार करती हैं। उन्हें सीख देती हैं कि जीवन की मुश्किलों से कभी हार नहीं माननी चाहिए। समाज में व्यवहार परिवर्तन के जरिए सार्थक बदलाव का यह प्रयास अनुकरणीय है। डॉ. नेहा का मानना है कि जैसे शिक्षा बांटने से बढ़ती है, हुनर प्रशिक्षण से बढ़ता है, ठीक वैसे ही अच्छे विचार व सकारात्मक सोच भी संवाद से आगे बढ़ते हैं।

 

..ताकि विद्यार्थी बनें ऑल राउंडर

इंदु चंदेल, प्रधानाचार्य, अवध कॉलिजिएट, दारोगाखेड़ा का मानना है कि विद्यार्थी किताबी ज्ञान तक ही सीमित न रहे। व्यावहारिक ज्ञान के साथ कला-संस्कृति को भी जानना चाहिए। अच्छा-बुरा समझने के साथ ही निर्णय लेने की क्षमता भी जरूरी है। तमाम रास्तों के बीच किस राह को चुनें, यह फैसला लेना भी आना चाहिए। इंदु चंदेल कुछ इन्हीं प्रयासों के साथ विद्यार्थियों को काबिल बना रही हैं। वह छात्र-छात्रओं को सांस्कृतिक व खेलकूद से जुड़े कार्यक्रमों के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रोत्साहित करती हैं। आर्थिक जरूरतें भी पूरा करती हैं। उनका मानना है कि निश्चित तौर पर शिक्षा से ही व्यक्ति के चरित्र का निर्माण होता है, मगर मौजूदा समय में सिर्फ यहीं तक सीमित रहने से काम नहीं चलने वाला। जीवन में आगे बढ़ना है और कुछ कर दिखाना है तो ऑलराउंडर बनना जरूरी है।

 

देशभक्ति के साथ आत्मनिर्भरता का पाठ

डिपार्टमेंट ऑफ मैथमेटिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी (लविवि) की असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ. अल्का मिश्र के लिए नौकरी के साथ समाज सेवा कब जीवन का अहम हिस्सा बन गई, उन्हें  पता नहीं चला। डॉ. अल्का मिश्र को विवि की ओर से 2009 में नेशनल सर्विस स्कीम (एनएसएस) का जिम्मा सौंपा। अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया और 2014-15 में उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा राष्ट्रीय, प्रदेश व जिला स्तर पर कई अन्य सम्मान भी मिले हैं। एनएसएस के जरिए डॉ. अल्का हर साल 100 बच्चों को ट्रेंड करती हैं। देशभक्ति के जज्बे के साथ उन्हें आत्मनिर्भरता का पाठ भी पढ़ाती हें। वह कहती हैं, समाज व राष्ट्र सेवा की भावना उन्हें अपने पिता से मिली। बेटियां अपनी मंजिल खुद तय करें, यही प्रयास है।

बेटियों की बनीं आवाज

डॉ. अल्का सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर (इंग्लिश), डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय

एक महिला ही महिला की समस्या बेहतर तरीके से समझ सकती है। इसी सोच के साथ डॉ. अल्का सिंह ने काम करना शुरू किया। नौकरी के साथ महिलाओं से जुड़े अहम मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय पटल पर रखा। लैंगिक असमानता और मासिक धर्म से जुड़े तमाम मुद्दों पर शोधपत्र व पुस्तकें प्रकाशित कीं। वह कहती हैं कि महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर यह बात बेहद अहम है कि निर्णय लेने वाली महिलाओं को अधिकार कितना दिया गया है। उन्होंने कई सेमिनार में सरकार से सवाल भी किए। सरकारी अस्पतालों में बेटियों के लिए मुफ्त सेनेटरी नैपकिन के लिए आवाज भी उठाई। उनका कहना है कि अधिकार तो हमारे हैं ही, उनके लिए बाद में भी लड़ लेंगे, मगर उससे पहले सुविधाएं जरूरी हैं।


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