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जब यहां एक कमरे में बंद हो जाते थे पैसेंजर, रेलवे की व्यवस्थाओं में इसलिए होता था ऐसा

आज भारत में रेल नेटवर्क की शुरुआत के हो जाएंगे 165 साल पूरे। अप्रैल को लखनऊ-कानपुर रेल सेवा शुरू होने के पूरे होंगे 151 साल।

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Apr 2018 01:06 PM (IST)Updated: Mon, 16 Apr 2018 01:54 PM (IST)
जब यहां एक कमरे में बंद हो जाते थे पैसेंजर, रेलवे की व्यवस्थाओं में इसलिए होता था ऐसा
जब यहां एक कमरे में बंद हो जाते थे पैसेंजर, रेलवे की व्यवस्थाओं में इसलिए होता था ऐसा

लखनऊ[जागरण संवाददाता]। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के गुजरते समय भारतीयों और श्वानों को सड़क पर चलने की अनुमति नहीं थी। चारबाग रेलवे स्टेशन पर भी ऐसा ही व्यवहार भारतीय यात्रियों से किया जाता था। ब्रिटिशकालीन रेलवे के फरमान के मुताबिक, भारतीय अपने रिश्तेदारों को छोड़ने चारबाग स्टेशन नहीं आ सकते थे। ट्रेन आने पर ही भारतीयों को टिकट दिया जाता था। टिकट खरीदने के बाद सभी भारतीय यात्रियों को चारबाग स्टेशन के एक कमरे में बंद कर ताला लगा दिया जाता था। सभी अंग्रेज जब बोगी में बैठ जाते थे, तब भारतीयों को कमरे से निकालकर उन्हें बोगियों में बैठाने के बाद बाहर से ताला लगा दिया जाता था। ब्रिटिशकालीन रेलवे की व्यवस्थाओं के ऐसे कई साक्ष्य आज भी चारबाग स्टेशन पर नजर आते हैं। भारत में 16 अप्रैल 1853 को पहली बार ट्रेन ठाणो से मुंबई के बीच चली थी। बाद में लखनऊ तक इसका विस्तार केवल 14 साल के भीतर हुआ। लखनऊ से कानपुर के बीच 47 मील लंबा रेल नेटवर्क 28 अप्रैल 1867 को शुरू हुआ। देश में इस 16 अप्रैल को जहा रेलवे की शुरुआत के 165 साल पूरे हो जाएंगे, वहीं 28 अप्रैल को लखनऊ में रेल नेटवर्क जुड़ने के 151 साल पूरे होंगे। इस उपलब्धि को रेलवे हर साल रेल सप्ताह के रूप में मनाता है। लखनऊ में रेलवे से जुड़े इतिहास पर दैनिक जागरण की एक विशेष खबर.

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भारतीयों से हुई थी आमदनी

अवध एवं रुहेलखंड रेलवे की सन् 1875-76 की रिपोर्ट के मुताबिक 543 मील तक चलने वाली ट्रेनों से उसे 12 लाख 65 हजार 508 रुपये की आय निम्न श्रेणी के भारतीय यात्रियों के किराए से हुई थी। वहीं उच्च श्रेणी के यात्रियों से केवल 70 हजार 166 रुपये ही मिले थे। माल की ढुलाई की आमदनी 13 लाख आठ हजार तीन सौ इक्वायन रुपये रही। वर्ष 1879 तक ओरआरआर का शुद्ध मुनाफा 11,24,317 रुपये हो गया। वहीं इस वर्ष उसे कुल 28,81,645 रुपये की आय हासिल हुई।

यूं थमा 130 साल का सफर

कभी मोहिबुल्लापुर से गुजरते समय ब्रिटिशकालीन रेल पटरी की ट्रेनों की आवाज अब खामोश हो गई है। ऐशबाग से सीतापुर तक 130 साल तक मीटरगेज की ट्रेनें दौड़ती रहीं। अमान परिवर्तन के लिए 13 मई 2016 को नैनीताल एक्सप्रेस के बंद होते ही इस रूट पर युग समाप्त हो गया। अब इस रूट पर जल्द ही इलेक्टिक इंजन से तेज तर्रार ट्रेनें दौड़ेंगी।

लखनऊ था अंग्रेजों का केंद्र बिंदु

ब्रिटिशकाल में लखनऊ से रेल नेटवर्क बहुत तेजी से जुड़ा। पूर्वी और पश्चिम भारत को जोड़ने वाला सबसे अहम स्थान लखनऊ था। इस कारण भारत में अंग्रेजी फौज, हथियार और व्यापार के लिए रेल सेवा शुरू करने का जिम्मा दो कंपनियों, ग्रेट इंडियन पेनिन्सुला रेलवे (जीआइपीआर) और ईस्ट इंडियन रेलवे को दिया गया। पश्चिमी भारत में जीआइपीआर ने रेल नेटवर्क तैयार किया, जबकि पूर्वी भारत में ईस्ट इंडियन रेलवे ने रेल सेवा की शुरुआत की। जीआइपीआर के 16 अप्रैल 1853 को देश में पहली बार ट्रेन चलाने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी 1857 में पूर्वी भारत में रेल बिछाने की शुरुआत कर दी। ईस्ट इंडिया कंपनी का केंद्र बिंदु लखनऊ ही बनाया गया। लखनऊ से फैजाबाद होकर मुगलसराय को कोलकाता-मुंबई मेन लाइन से जोड़ा गया। इसी तरह दिल्ली का वैकल्पिक रूट लखनऊ से हरदोई होकर शुरू किया गया।

ऐसे बिछा लखनऊ में रेल नेटवर्क

- सन 1857: अवध रुहेलखंड रेलवे (ओआरआर) का गठन।

- 28 अप्रैल 1867 : ओआरआर की लखनऊ-कानपुर 47 मील लंबी रेल लाइन शुरू।

- 1872 : ओआरआर का विस्तार बहराम घाट और फैजाबाद तक।

- एक जनवरी 1872 : लखनऊ-फैजाबाद रेल लाइन शुरू, लखनऊ छावनी के उत्तर दिशा से बिबियापुर, जुग्गौर होकर फैजाबाद के रास्ते मुगलसराय तक पड़ी रेल लाइन।

- 1873 से 1875 : ओआरआर का नेटवर्क लखनऊ से शाहजहापुर और जौनपुर तक बढ़ा।

- 1873 से 1875 : भारतीय यात्रियों के लिए प्रथम श्रेणी बोगियों की शुरुआत।

- 1879 : ओरआरआर का प्रायोगिक किराया वृद्धि का सरकार ने अनुमोदन किया।

- 1879 : ओआरआर का सरकार ने राष्ट्रीयकरण किया, ओआरआर एक राजकीय उद्यम बना।

- 1880 : निम्न श्रेणी का किराया दो आना से ढाई आना बढ़ाया गया।

- 1882 : निम्न श्रेणी के किराए के राजस्व में गिरावट।

- 1887 : ओआरआर का नेटवर्क 690 मील तक पहुंचा, जो उस समय कुल रेल नेटवर्क का 4.93 प्रतिशत था।

- 24 नवंबर 1896 :चौकाघाट-बुढ़वल-बाराबंकी-मल्हौर होकर डालीगंज तक आयी रेल।

- 25 अप्रैल 1897 : ऐशबाग से कानपुर तक एक और रेल लाइन बिछी।

लखनऊ से जुड़े रेल नेटवर्क

लखनऊ-ऐशबाग-सीतापुर : 15.11.1886

सीतापुर-लखीमपुर : 15.4.1887

लखीमपुर-गोला गोकर्णनाथ :15.12.1887

गोला गोकर्णनाथ-पीलीभीत : 1.4.1891

पीलीभीत-भोजीपुरा : 15.11.1884

भोजीपुरा-बरेली : 12.10.1884 ऐसे जुड़ा नेपाल की सीमा तक नेटवर्क

तुलसीपुर-बलरामपुर : 1.6.1898

बहराइच-नेपालगंज : 15.12.1886

नानपारा-मिहिनपुरवा : 15.12.1896

मिहिनपुरवा-कतर्नियाघाट 25.3.1898

इस तरह अस्तित्व में आया इज्जतनगर

रेलवे के इज्जतनगर (बरेली) रेल मंडल का नाम 31 साल तक बने रहने वाली तीन पीढि़यों के आइजत परिवार के नाम पर पड़ा। बंगाल एवं नार्थ वेस्टर्न रेलवे के एजेंट एवं जनरल मैनेजर के पद पर (बीएनडब्ल्यूआर) के दूसरे एजेंट के पद पर एलेक्जेंडर आइजत ने 1883 से 1904 तक रहकर सोनपुर से लखनऊ तक रेल नेटवर्क जोड़ा। इसके बाद एलेक्जेंडर आइजत के बेटे ले. कर्नल डब्ल्यूआर आइजत ने 1920 से 1927 तक और फिर इसके बाद ले. कर्नल डब्ल्यूआर आइजत के बेटे सर जेरेनी आइजत ने 1941 से 1942 तक बीएनडब्ल्यूआर की कमान संभाली। इसके बाद अस्तित्व में आए अवध तिरहूट रेलवे के पहले एजेंट के रूप में भी उन्होंने 1942 से 1944 तक अपनी सेवाएं दी।


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