मॉब लिंचिंग से खतरे में लोकतंत्र, किताबों में झलकता समलैंगिक प्रेम
हर तरह के ज्वलंत मुद्दों ने बढ़ाई किताबों की प्रासंगिकता। दूर-दृष्टिकोण में सामाजिक संरचना के साथ शिल्प की पकड़।
लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। मॉब लिंचिंग, समलैंगिकता, राष्ट्रवाद, जातिवाद.. ये वे मुद्दे हैं जो आज सुर्खियों में हैं। दबी जुबान में ही सही पर बात जरूर होती है। समाज भले ही खामोशी ओढ़े हो, लेकिन किताबें इन विषयों पर हमेशा ही मुखर रही हैं। ये विचार प्रवाह है जो लेखनी में समय को बांधते हुए भी वक्त से आगे बहता है। सामाजिक संरचना के साथ शिल्प की पकड़ लेखन को खास बनाती है। रवींद्रालय में आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक मेला में हर तरह के ज्वलंत मुद्दों ने किताबों की प्रासंगिकता बढ़ाई है। असगर वजाहत का 'भीड़तंत्र', इस्मत चुगताई के 'लिहाफ' में 'जिंदगी 50-50' की बेबाक कहानी कह रहा है। राष्ट्रवाद और जातिवाद के विविध पहलू भी हैं। इन्हें हर वर्ग हाथों-हाथ ले रहा है।
मॉब लिंचिंग से खतरे में लोकतंत्र : लोकतंत्र चाहिए या फिर भीड़तंत्र- फैसला करें..।
कहानी में व्यंग्य, विद्रूप और करुणा एक साथ पैदा करने वाले कथाकार असगर वजाहत का लोकतंत्र को देखने का अपना नजरिया रहा। किताब 'भीड़तंत्र' में उन्होंने लोकतंत्र बनाम भीड़तंत्र का मुद्दा बहुत पहले उठाया था। मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के बीच चेतना को झकझोरती यह किताब आज ज्यादा प्रासंगिक है। ¨हदी अकादमी और संगीत नाटक अकादमी के सर्वोच्च सम्मान से अलंकृत वजाहत जी की 'सफाई गंदा काम है' भी ऐसी ही एक किताब है। देश, समाज, राजनीति और कला साहित्य पर शब्दों के रूप में विचारों की बेबाकी खास है। किताब में समलैंगिक प्रेम :
इस्मत आपा ने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबके की दबी-कुचली-कुम्हलाई पर जवान होतीं लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई के साथ पेश किया। 'लिहाफ' को ¨हदुस्तानी साहित्य में समलैंगिक प्रेम की पहली कहानी के तौर पर माना जाता है। 1942 में जब यह कहानी आदाब-ए-लतीफ में पहली बार छपी तो लेखिका को कोर्ट केस भी लड़ना पड़ा, जिसमें उनकी जीत हुई थी। जब पुरुष में हों स्त्री जैसी भावनाएं :
पुरुष के शरीर में स्त्री जैसी भावनाएं हों तो 'जिंदगी 50-50' हो जाती है। जिंदगी समझौता बनकर रह जाती है। अनमोल इस बात को बखूबी समझता है क्योंकि उसकी एकमात्र संतान और छोटा भाई, दोनों ही किन्नर हैं। भाई को पल-पल प्रताड़ित और अपमानित होते देख अनमोल दृढ़ निश्चय लेता है कि अपने बेटे को अधूरी जिंदगी नहीं, बल्कि भरपूर जीवन जीने के लिए हर तरह से सक्षम बनाएगा.. भगवंत अनमोल का यह उपन्यास इसी कशमकश की कहानी है। राष्ट्रवाद से जातिवाद तक :
'आज के आइने में राष्ट्रवाद' (संपादक रविकांत) किताब में जेएनयू को केंद्र बनाकर राष्ट्रवाद बनाम जनवाद और शिक्षा का सवाल के साथ ही राष्ट्रवाद की दिशा में चुनौतियों को शामिल किया गया। अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज की 'भारत और उसके विरोधाभास' में समाज में बढ़ती असमानताओं को उजागर किया गया। रोहित वेमुला की ऑनलाइन डायरी 'जाति कोई अफवाह नहीं' को भी हाथों-हाथ लिया जा रहा है।
ज्वलंत मुद्दों पर अन्य किताबें :
- स्वाति चतुर्वेदी की हां, मैं ट्रोल हूं (भाजपा की डिजिटल सेना का खुफिया संसार)।
- अरुणा रॉय की आरटीआइ कैसे आई।
- सूरज प्रकाश उपाध्याय, शचि साक्षी उपाध्याय की जीएसटी-क्या, किसके लिए, कैसे?
- आज के खेतिहर और ठेका मजदूरों की दासता का जीवंत दस्तावेज 'बंधुआ रामदास'।
- अशोक शुक्ला, गौरी लंकेश और कन्हैया कुमार की किताबें भी चर्चा में हैं। 250 चुनिंदा लेखकों की किताबें 50 रुपये में :
2014 में साहित्य भंडार प्रकाशन के पचास वर्ष पूरे हुए। तब 50 लेखकों की 50 पुस्तकें 50 रुपये में बिक्री के लिए रखी गई। अब 250 लेखकों की चुनिंदा पुस्तकें पुस्तक मेला में 50 रुपये में ले सकते हैं। इसमें मैत्रेयी पुष्पा, मन्नू भंडारी, ममता कालिया, नासिरा शर्मा और राही मासूम रजा की चुनिंदा कहानियां समेत तमाम किताबें हैं। किताबों में ठग :
'कन्फेशंस ऑफ अ ठग' का राजेंद्र चंद्रकांत राय द्वारा अनुवाद किया गया ठग अमीर अली की दास्तान उपन्यास युवाओं को खासा आकर्षित कर रहा है। आमिर खान की फिल्म 'ठग्स ऑफ ¨हदुस्तान' इसी उपन्यास पर है, यह जानकारी उनके कौतुहल को और बढ़ा रहा है। इसी तरह ठगों की कूट-भाषा रामासी भी पसंद किया जा रहा है। वहीं 'गुलजार की पाजी नज्में' युवा दिलों की धड़कन बनी है।
स्टॉल प्रतिनिधियों की बात :
- राजकमल प्रकाशन के स्टॉल प्रतिनिधि सुदेश शर्मा ने कहा कि इस्मत चुगताई को पढ़ने वालों में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी हैं। साहित्य के साथ ही गजलों आदि की किताबें भी पसंद की जा रही हैं।
- राजपाल प्रकाशन के स्टॉल प्रतिनिधि अशोक शुक्ला ने बताया कि असगर वजाहत को पढ़ने वालों का खास वर्ग है। खासकर वरिष्ठ नागरिक इनकी किताबों को हाथों-हाथ ले रहे हैं। शीर्षक आकर्षक होने से भी ध्यान खींचते हैं।
- साहित्य भंडार के स्टॉल प्रतिनिधि सतीश चंद्र अग्रवाल कहते हैं, किताबों को फिल्मों से जोड़ने पर युवा वर्ग जुड़ता है। वहीं विभिन्न मुद्दों पर महिला लेखिकाओं की किताबें भी मांग में हैं।
ज्वलंत मुद्दों पर किताबें सदाबहार :
राष्ट्रीय पुस्तक मेला के आयोजक देव राज अरोरा का कहना है कि ज्वलंत मुद्दों पर किताबें हमेशा से ही पसंद की जाती रही हैं। इन्हें पढ़ने से विभिन्न मंचों पर आप बेहतर राय रखने के साथ ही विचारों से भी समृद्ध होते हैं। ये मुद्दे हर वर्ग से जुड़े होते हैं, लिहाजा सभी लोग इन्हें पढ़ना पसंद करते हैं। पुस्तक प्रेमियों की जुबानी :
- कवयित्री पूनम सिंह को पुस्तक प्रेम अमेठी से लखनऊ से आया। पांच हजार रुपये की किताबें खरीदीं। बोलीं, अंतर्मुखी हूं। किताबें ही दोस्त हैं। विचारों को कोई बांध नहीं पाया है। न पहले न अब।
- यूपीपीसीएल से चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त सुरेंद्र कुमार पांडेय ने असगर वजाहत, कमलेश्वर समेत तमाम लेखकों की किताबें खरीदीं। बोले, लेखनी में बेबाकी पसंद आती है। यह लेखकों की दूर-दृष्टि का ही परिणाम है कि उन्होंने उन मुद्दों पर तब लिखा जो आज उठ रहे।
- केशवनगर निवासी शुभम ने दो हजार रुपये की किताबें खरीदीं। बोलें, हर किसी को मौजूदा मुद्दों के हर पक्ष की जानकारी जरूरी है। इसके लिए किताबों से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता। वह हमें विचारधारा की स्वतंत्रता देते हैं।