After Ayodhya Verdict : फैसले को पढऩे की जरूरत है...यह निर्णय सिविल लॉ की सभी कसौटियों पर खरा है
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां विकास टॉप एजेंडे में है। अधिग्रहीत परिसर के रिसीवर एवं मंडलायुक्त मनोज मिश्र से खास बातचीत।
अयोध्या, (रमाशरण अवस्थी)। शनिवार को ही 36 साल की प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हो रहे मंडलायुक्त मनोज मिश्र उन चुङ्क्षनदा अधिकारियों में रहे हैं, जिन्होंने राममंदिर आंदोलन की शुरुआत के साथ प्रशासनिक सेवा की शुरुआत की और सेवानिवृत्ति से पूर्व देश के सबसे बड़े विवाद का पटाक्षेप करने वाले सुप्रीम फैसले को क्रियांवित कराने में अहम भूमिका अदा की। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर अपनी जिम्मेदारियों को पूरी गंभीरता से अंजाम देने वाले मनोज मिश्र ने मंडलायुक्त के साथ रामलला के अधिग्रहीत परिसर के रिसीवर के तौर पर निर्णायक दौर में अमिट छाप छोड़ी। इस दौरान उन्होंने परिस्थितियों का किस तरह से सामना किया और क्या अनुभव किया, इस संदर्भ में जागरण ने उनसे विस्तार से बात-चीत की। पेश हैं, इस वार्ता के प्रमुख अंश-
सवाल : देश के सबसे बड़े विवाद का निर्णय आने की बेला में आपके क्या अनुभव रहे?
जवाब : जून 2017 में मैं यहां मंडलायुक्त के तौर पर आया। उस समय तक राज्य सरकार बदल चुकी थी। केंद्र में भी भाजपा की सरकार थी। ऐसे में शीघ्रनिर्णय तक पहुंचने के लिए सभी प्रयत्नशील थे। यह उम्मीद की जाने लगी थी कि जल्दी ही निर्णय का मार्ग प्रशस्त होगा और उसकी परिणति इसी नौ नवंबर को फैसले के साथ सामने भी आई। 16 अक्टूबर को सुप्रीमकोर्ट में नियमित सुनवाई पूरी हो चुकी थी और 17 नवंबर को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई सेवानिवृत्त होने वाले थे। ऐसे में यह समझा जाने लगा था कि फैसला इसी बीच आ जाएगा। यानी हमें तैयारियों का समुचित अवसर मिला।
सवाल : तैयारियां किस रूप में थीं?
जवाब : हम सभी पक्षों के लोगों को टटोल रहे थे, उनसे संवाद स्थापित कर रहे थे और यह सुनिश्चित कराना चाहते थे कि फैसला कुछ भी आए, उसे स्वीकार किया जाय। यह सुखद था कि सभी पक्ष इस बात पर सहमत थे कि सुप्रीमकोर्ट का जो भी फैसला आएगा, वह उनको मान्य होगा।
सवाल : इस दौर को व्यक्तिगत तौर पर आपने किस रूप में स्वीकार किया?
जवाब : निश्चित रूप से यह दौर मेरे कार्यकाल का सर्वाधिक यादगार लम्हा था। हालांकि इसे मैं उपलब्धि के तौर पर नहीं लेता। निर्णय के रूप में यह उपलब्धि तो न्यायालय की थी। मुझे इस निर्णय को लागू कराना था और इसके लिए हमारे पास आईजी, जिलाधिकारी, एसएसपी आदि के रूप में बेहतरीन टीम थी, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया।
सवाल : ढाई वर्ष तक अयोध्या के मंडलायुक्त की अपनी भूमिका का किस तरह मूल्यांकन करेंगे?
जवाब : सबसे महत्वपूर्ण रामकी पैड़ी में सतत जल प्रवाह सुनिश्चित कराना रहा। यह बदलाव निश्चित रूप से अयोध्या की पर्यटन संभावना को समुन्नत करेगा। मेगा इवेंट के रूप में अयोध्या के दीपोत्सव की दुनिया में पहचान बनी है। गुप्तारघाट का विस्तार हुआ है। भजन संध्या स्थल और नयाघाट बंधा तिराहा तक फोरलेन के विस्तार से अयोध्या के मुहाने की भव्यता प्रशस्त हुई है। इसी बीच अयोध्या नगर निगम का गठन किया गया और जिला का नाम अयोध्या रखा गया।
सवाल : सुप्रीम फैसला आने के बाद विकास की दृष्टि से अयोध्या की क्या संभावना है?
जवाब : निश्चित रूप से अयोध्या विकास के टॉप एजेंडे में है।
सवाल : फैसला लागू कराने की जिम्मेदारी निर्वहन के अलावा फैसले को लेकर व्यक्तिगत तौर पर आपने कैसा महसूस किया?
जवाब : इस फैसले को पढऩे की जरूरत है। हमारे सम्मुख जजमेंट की कॉपी इस समय भी रखी है। एक हजार से अधिक पृष्ठों का यह निर्णय सिविल लॉ की सभी कसौटियों पर कसते हुए किया गया है। कोई बिंंदू छोड़ा नहीं गया है। सबसे बड़ी बात, जो गलत था, उसे गलत कहा गया है। न्याय के पक्षधरों और विद्यार्थियों के लिए यह जानना रोचक है कि फैसले में आर्टिकल 142 का उपयोग करते हुए मस्जिद के लिए भूमि दी गई। इस आर्टिकल के आधार पर कोर्ट को यह शक्ति है कि यदि किसी के साथ अन्याय हुआ हो, तो कोर्ट उसे अपने स्तर से रिलीफ दे सकता है।
सवाल : सबसे बड़े विवाद के पटाक्षेप की बेला में मंडलायुक्त के अलावा अधिग्रहीत परिसर के रिसीवर की भूमिका के चलते आप पर अहम जिम्मेदारी थी। ऐसे दौर में विचलित होने की आशंका भी थी पर आप काफी नपे-तुले थे। यह संयम-संतुलन कैसे संभव हुआ?
जवाब : इसके पीछे विधानसभाध्यक्ष ह्रदयनारायण दीक्षित के चिंंतन-लेखन की प्रेरणा है। मैं उनके चिंंतन-लेखन का मुरीद हूं। वे अपना अनुभूत सत्य बेलौस कह जाते हैं पर वह किसी को चोट पहुंचाए बिना बयां होता है, उनकी अनाहत भाषा हमारे लिए किसी सूत्र से कम नहीं है।
आप आश्वस्त रहिए यहां स्थिति सामान्य रहेगी
मंडलायुक्त के लिए आठ नवंबर की वह रात यादगार रहेगी, जब यह तय हो गया कि सुप्रीम फैसला अगली सुबह 10:30 बजे आएगा। उस समय उनके ड्राइवर कहीं गए हुए थे पर संभावित फैसले की गंभीरता के मद्देनजर वे पैदल ही कलेक्ट्रेट सभागार की ओर तेज गति से रवाना हुए, जहां जिलाधिकारी सहित अन्य अधिकारी उनका इंतजार कर रहे थे। इसी बीच संभावित फैसले को ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री ने उनके पास फोन किया। जवाब में मंडलायुक्त ने कहा, आप आश्वस्त रहिए, स्थिति सामान्य रहेगी।