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Ayodhya Structure Demolition Case: ढांचा ध्वंस साजिश नहीं, लालकृष्ण आडवाणी समेत सभी अभियुक्त बरी

Ayodhya Demolition Verdict Update अयोध्या विध्वंस केस का विशेष जज एसके यादव ने फैसला सुनाते हुए लालकृष्ण आडवाणी डॉ. मुरली मनोहर जोशी उमा भारती महंत नृत्य गोपाल दास कल्याण सिंह समेत सभी 32 आरोपितों को बरी करने का आदेश दिया।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 11:29 PM (IST)
Ayodhya Structure Demolition Case: ढांचा ध्वंस साजिश नहीं, लालकृष्ण आडवाणी समेत सभी अभियुक्त बरी
अयोध्या विध्वंस मामले में बुधवार को सीबीआइ की विशेष अदालत ने फैसला सुना दिया।

लखनऊ, जेएनएन। देश की राजनीतिक दिशा को परिवर्तित कर देने वाले अयोध्या विध्वंस केस में बुधवार को सीबीआइ की विशेष अदालत का बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया। 28 साल से चल रहे इस मुकदमे पर विशेष जज एसके यादव ने अपने कार्यकाल का अंतिम फैसला सुनाते हुए लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, महंत नृत्य गोपाल दास, कल्याण सिंह समेत सभी आरोपितों को बरी कर दिया। विशेष जज ने कहा कि तस्वीरों से किसी को आरोपित नहीं ठहराया जा सकता है। अयोध्या ढांचा विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था। घटना के प्रबल साक्ष्य नही हैं। सिर्फ तस्वीरों से किसी को दोषी नहीं कहा जा सकता है।

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छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में हुए ढांचा विध्वंस केस में बुधवार को सीबीआइ कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी 32 आरोपितों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ कोई निश्चयात्मक सुबूत नहीं पेश कर सकी। विध्वंस के पीछे कोई साजिश नहीं रची गई और लोगों का आक्रोश स्वत: स्फूर्त था। इस मामले के मुख्य आरोपितों में एक स्व. अशोक सिंहल को कोर्ट ने यह कहते हुए क्लीन चिट दे दी कि वह तो खुद कारसेवकों को विध्वंस से रोक रहे थे, क्योंकि वहां भगवान की मूर्तियां रखी हुई थीं।

महज तीन मिनट में ही जज ने सुनाया फैसला : लगभग 28 साल तक चले इस मामले में फैसला सुनाने के लिए सीबीआइ के विशेष जज एसके यादव दोपहर 12 बजकर 10 मिनट में कोर्ट पहुंचे। उस समय कोर्ट में 26 आरोपित मौजूद थे, जबकि लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, उमा भारती, नृत्यगोपाल समेत छह आरोपी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कोर्ट में जुड़े हुए थे। महज तीन मिनट में ही जज ने अपना फैसला सुनाते हुए आरोपितों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अखबारों में छपी खबरों को प्रामाणिक सुबूत नहीं माना जा सकता क्योंकि उनके मूल नहीं पेश किए गए। फोटोज की निगेटिव नहीं प्रस्तुत किए गए और न ही वीडियो फुटेज साफ थे। कैसेटस को भी सील नहीं किया गया था। अभियोजन ने जो दलील दी, उनमें मेरिट नहीं थी।

अशोक सिंघल ढांचे को सुरक्षित रखना चाहते थे : सीबीआइ कोर्ट के विशेष जज एसके यादव ने अपने फैसले में कहा कि छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा के पीछे से दोपहर 12 बजे पथराव शुरू हुआ। अशोक सिंघल ढांचे को सुरक्षित रखना चाहते थे क्योंकि ढांचे में मूर्तियां थीं। कारसेवकों के दोनों हाथ व्यस्त रखने के लिए जल और फूल लाने के लिए कहा गया था। जल ने अखबारों को साक्ष्य नहीं माना और कहा कि वीडियो कैसेट के सीन भी स्पष्ट नहीं हैं। कैसेट्स को सील नहीं किया गया, फोटोज की नेगेटिव नहीं पेश की गई। ऋतम्बरा और कई अन्य अभियुक्तों के भाषण के टेप को सील नहीं किया गया।

विध्वंस के लिए कोई षडयंत्र नहीं किया गया : कोर्ट ने कहा कि विध्वंस के लिए कोई षडयंत्र नहीं किया गया। घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। एलआईयू की रिपोर्ट थी कि छह दिसंबर 1992 को अनहोनी की आशंका है किंतु इसकी जांच नही कराई गई। अभियोजन पक्ष की तरफ से जो साक्ष्य पेश किए वो दोषपूर्ण थे। जिन लोगों ने ढांचा तोड़ा उनमें और आरोपियों के बीच किसी तरह का सीधा संबंध स्थापित नहीं हो सका। इस आधार पर कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

2300 पेज का है फैसला : अयोध्या विध्वंस केस का निर्णय 2300 पेज का है। फैसला कुछ ही देर में कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जायेगा। सीबीआइ व अभियुक्तों के वकीलों ने ही करीब साढ़े आठ सौ पेज की लिखित बहस दाखिल की है। इसके अलावा कोर्ट के सामने 351 गवाह सीबीआइ ने परीक्षित किए व 600 से अधिक दस्तावेज पेश किए। सीबीआई के अधिवक्ता ललित सिंह ने कहा कि जजमेंट की प्रति मिलने के बाद सीबीआई हेडक्वार्टर भेजा जाएगा जिसके बाद लॉ सेक्शन उसका अध्ययन करने के बाद जो परामर्श देगा, उसी अनुसार अपील करने का निर्णय लिया जाएगा। 

ये हैं 32 आरोपित : लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमर नाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, साक्षी महाराज, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धमेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ व धर्मेंद्र सिंह गुर्जर।

कड़ी सुरक्षा लेकिन लगे जय श्रीराम के नारे : फैसले के लिए कोर्ट में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। फिर भी निर्णय आते ही किसी व्यक्ति ने जयश्री राम का नारा लगा दिया। आरोपितों ने निर्णय आते ही एक-दूसरे को बधाई दी। 

पूरा देश इस फैसले से खुश : फैसले के बाद सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि मैं ही नहीं पूरा देश इस फैसले से खुश है। आज का ऐतिहासिक फैसला आया है। मैं सीधे रामलला के दर्शन करने अयोध्या ही जा रहा हूं। सांसद साक्षी महाराज ने कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक रहा। मुझे सुबह से ऐसी उम्मीद थी जीत रामलला की होगी। वहीं मुस्लिम पक्ष की तरफ से जफरयाब जीलानी ने कहा कि ये फैसला कानून और हाई कोर्ट दोनों के खिलाफ है। विध्वंस मामले में जो मुस्लिम पक्ष के लोग रहे हैं उनकी तरफ से हाई कोर्ट में अपील की जाएगी।

छह दिसंबर, 1992 को दर्ज हुआ था केस : छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया। इस पर हिंदू और मुसलमान दोनों अपने-अपने दावे करते थे। हिंदू पक्ष का कहना रहा कि अयोध्या में ढांचे का निर्माण मुगल शासक बाबर ने वर्ष 1528 में श्रीराम जन्मभूमि पर कराया था, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई थी। मंदिर आंदोलन से जुड़े संगठनों के आह्वान पर वहां बड़ी संख्या में कारसेवक जुटे और इस ढांचे को ध्वस्त कर दिया। इस मामले में पहली प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआइआर) उसी दिन रामजन्मभूमि थाने में दर्ज हुई। 40 ज्ञात और लाखों अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ आइपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ।

49 आरोपितों में 32 ही जीवित : छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा विध्वंस के बाद इस मामले में कुल 49 प्राथमिकी दर्ज हुई थी। सभी में एक साथ विवेचना करके सीबीआइ ने 40 आरोपितों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। 11 जनवरी 1996 को पूरक शपथ पत्र दाखिल कर नौ के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। 49 आरोपितों में अब कुल 32 ही जीवित हैं।

सीबीआइ जज एसके यादव का आखिरी फैसला : यह ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाले विशेष जज सुरेंद्र कुमार यादव बुधवार को ही रिटायर हो गए। एसके यादव 30 सितंबर 2019 को सेवानिवृत्त हो गए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें फैसला आने तक के लिए सेवा विस्तार दिया गया था।

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