Move to Jagran APP

UP: आंसुओं ने पाट दी अखिलेश और बिछड़े बुजुर्गों के बीच खाई, अब पुराने महारथियों को वापस लाने में जुटे सपा मुखिया

बलिया के इस दिग्गज नेता की घर वापसी के पीछे उनकी राजनीतिक मजबूरियां हो सकती हैं लेकिन भावुक होने पर उनकी आंखों से निकले आंसुओं ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सपा की उम्मीदों को काफी कुछ सींच दिया। वह और भी कुछ कहना चाहते थे लेकिन बोल न सके।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 28 Aug 2021 10:59 PM (IST)Updated: Sun, 29 Aug 2021 03:51 PM (IST)
UP: आंसुओं ने पाट दी अखिलेश और बिछड़े बुजुर्गों के बीच खाई, अब पुराने महारथियों को वापस लाने में जुटे सपा मुखिया
सिर्फ नई हवा ही नहीं, पुराने बरगद की छांव आसान करेगी पार्टी की मंजिल।

लखनऊ, राज्य ब्यूरो। 'नई हवा है... नई सपा है...!' समाजवादी पार्टी की नई पीढ़ी में जोश भरने के लिए तो यह नारा ठीक है, लेकिन अब शायद अखिलेश यादव को अहसास हो गया है कि इस तपती हुई चुनौती भरी डगर पर पुराने बरगद की छांव कितनी जरूरी है। हाल के वर्षों में तमाम कारणों से अखिलेश और बिछड़े बुजुर्गों के बीच चौड़ी होती गई खाई को आखिरकार पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी के आंसुओं ने पाट ही दिया। सपा मुखिया ने स्पष्ट कर दिया है कि अब उनका भी मन 'मुलायम' है और पिता मुलायम सि‍ंह यादव के अनुभवी महारथियों को साथ लाकर अपनी ताकत बढ़ाएंगे।

prime article banner

सपा संस्थापक व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सि‍ंह के करीबी और रणनीतिकारों में शामिल रहे अंबिका चौधरी शनिवार को बसपा छोड़कर सपा में लौट आए। बलिया के इस दिग्गज नेता की घर वापसी के पीछे उनकी राजनीतिक मजबूरियां हो सकती हैं, लेकिन भावुक होने पर उनकी आंखों से निकले आंसुओं ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सपा की उम्मीदों को काफी कुछ सींच दिया। वह और भी कुछ कहना चाहते थे, लेकिन बोल न सके। खैर, कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके बाद जो अखिलेश के शब्द थे, वह महत्वपूर्ण हैं। सिर्फ सपा ही नहीं, बल्कि कई प्रतिद्वंद्वी दलों की सियासी कहानी बदल सकने वाले हैं। सपा के नौजवान राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा- 'पुराने समाजवादी कितने कष्ट से दूसरे दलों में गए हैं, इसका अहसास आज अंबिका चौधरी को देखकर मुझे हुआ है। मेरी कोशिश रहेगी नेताजी (मुलायम सि‍ंह यादव) से जुड़े हुए जितने पुराने साथी हैं, उन्हें पार्टी से जोड़ा जाए। न जाने क्यों बहुत मजबूत रिश्ते आसानी से टूट जाते हैं, लेकिन अब फिर से सब सही हो रहा है। राजनीति में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन सही समय पर जो साथ आए वही साथी है। ये वो लोग हैं, जिनके भाषण सुनते हुए हमने समाजवाद सीखा।' 

दरअसल, 2012 में पिता मुलायम से विरासत में सत्ता पाने वाले अखिलेश ने पार्टी को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश की। खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। पार्टी और परिवार की कलह में चाचा शिवपाल यादव अलग हो गए। उनके साथ कुछ पुराने सपा नेता चले गए। इधर, सपा संरक्षक वयोवृद्ध हैं और स्वास्थ्य खराब रहता है। पार्टी के पुराने रणनीतिकार और हर फैसले में अहम भूमिका निभाने वाले सांसद आजम खां बीमार चल रहे हैं। कुछ वयोवृद्ध नेता दिवंगत हो चुके तो कुछ इस नई सपा में खुद को उपेक्षित महसूस कर दूसरे दलों में चले गए।

मुलायम के दौर के प्रदेश में सक्रिय नेताओं में प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल, नेता प्रतिपक्ष रामगोवि‍ंद चौधरी, विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष अहमद हसन और मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी जैसे ही कुछ दिग्गज ही पार्टी में प्रमुख भूमिका में हैं। अनुभवी नेताओं की कमी का असर 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के रूप में नजर आ चुका है। इधर, अलग पार्टी प्रसपा बना चुके शिवपाल को पूरा सम्मान देने की बात कह चुके अखिलेश ने जिस तरह से 'नेताजी के साथियों' की वापसी का मन बनाया है, उससे माना जा रहा है कि अब बसपा, भाजपा या अन्य दलों में गए सपा के पुराने दिग्गज नेताओं की घर वापसी तेज होगी। अलग-अलग क्षेत्रों में इसका लाभ भी पार्टी को मिल सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.