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1995 के गेस्ट हाउस कांड से बदली यूपी की सियासी तस्वीर, दरक गया सपा और बसपा का गठबंधन

2 जून 1995 को लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित वीआइपी अतिथि गृह में जो घटना घटी थी उसने दो दशक से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश की राजनीति को प्रभावित किया।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 08 Nov 2019 04:49 PM (IST)Updated: Fri, 08 Nov 2019 06:11 PM (IST)
1995 के गेस्ट हाउस कांड से बदली यूपी की सियासी तस्वीर, दरक गया सपा और बसपा का गठबंधन
1995 के गेस्ट हाउस कांड से बदली यूपी की सियासी तस्वीर, दरक गया सपा और बसपा का गठबंधन

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश की राजनीति में 1995 और गेस्ट हाउस कांड, दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। 2 जून 1995 को लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित वीआइपी अतिथि गृह में जो घटना घटी थी, उसने दो दशक से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश की राजनीति को प्रभावित किया। इस प्रकरण ने 1993 में गठबंधन सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी को एक दूजे का दुश्मन नंबर एक बना दिया था। दलित राजनीति में भी जबरदस्त उभार आया।

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1993 में सपा और बसपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। सपा ने 109 व बसपा ने 67 सीटों पर जीत हासिल की थी। गठबंधन सरकार में मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने थे और बसपा ने बाहर से समर्थन किया। सरकार चलाने की यह दोस्ती अधिक नहीं चल सकी। एक रैली में मायावती ने सपा से दोस्ती तोड़ने और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। अचानक घोषणा से मुलायम सरकार अल्पमत में आ गई। इस फैसले के बाद मायावती बसपा के विधायकों की बैठक मीराबाई गेस्ट हाउस में आहूत की थी। बैठक में अगले कदम का निर्णय होना था। यह सूचना सपा नेताओं को मिली तो उन्होंने गेस्ट हाउस को घेरकर हमला बोल दिया।

बदली मायावती की जिंदगी

गेस्ट हाउस कांड के बाद से मायावती की जिंदगी ही बदल गई। भाजपा के समर्थन से उन्होंने तीन जून, 1995 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री का गौरव प्राप्त किया। इसके बाद वह तीन बार और मुख्यमंत्री बनीं। बसपा का ग्राफ भी तेजी से बढ़ता गया। 2007 से मार्च 2012 तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने का मौका भी मिला।

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उपचुनाव में बनने लगी थी भूमिका

गेस्ट हाउस कांड में मुलायम सिंह के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस लेने की भूमिका गोरखपुर और फूलपुर संसदीय क्षेत्र में हुए उपचुनावों के दौरान ही तैयार होने लगी थी। 2017 के विधानसभा में सत्ता हासिल करने का मंसूबा पूरा नहीं होने के बाद सपा बसपा के बीच राजनीतिक दोस्ती सुगबुगाहट होने लगी थी। ये नजदीकी 12 जनवरी 2019 चुनावी गठबंधन में बदल गयी। सपा-बसपा का गठबंधन जाहिर होने से पहले ही 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों की ओर से अपील वापस लेने का संयुक्त रूप से अनुरोध किया गया था। इससे पहले यह मुकदमा 2018 में 14 नवंबर व 19 सितंबर को भी लगा था। इन तारीखों पर भी पक्षकारों ने आपस में समझौते की बातचीत चलने के आधार पर सुनवाई स्थगित करा ली थी। मार्च 2018 में गोरखपुर एवं फूलपुर संसदीय क्षेत्रों में उपचुनाव हुए थे। इसमें बसपा ने सपा उम्मीदवारों को समर्थन की घोषणा की थी। करीब ढाई दशक चली राजनीतिक दुश्मनी को किनारे कर सपा बसपा का नजदीक आना उत्तर प्रदेश में बड़ा राजनीतिक संकेत था। माना जा रहा है कि इन नजदीकियों को मजबूती देने के लिए ही आपसी मुकदमेबाजी खत्म करने का फैसला किया गया था।


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