बुजुर्गों में बढ़ी स्मार्ट मोबाइल फोन की लत, जानिए क्या पड़ रहा असर Lucknow news
60 से 70 साल की उम्र के 20 फीसद बुजुर्ग करते हैं इंटरनेट का इस्तेमाल।
लखनऊ, (जितेंद्र उपाध्याय)। लोक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त हुए रामेश्वर प्रसाद सुबह-शाम टहलने तो जाते हैं, लेकिन बगैर फोन के वह खुद को अधूरा समझते हैं। पार्क में कुछ देर टहलने के बाद थकान के बहाने मोबाइल फोन पर लग जाते हैं। एक घंटे के उनके वॉकिंग के समय में अब दो घंटे लगने लगे हैं। मोबाइल फोन के प्रति उनकी बढ़ी दिलचस्पी से घर वाले भी परेशान हैं। अकेले रामेश्वर प्रसाद ही नहीं, कृषि विभाग से सेवानिवृत्त केएल तिवारी और अशोक मौर्या भी मोबाइल फोन के दीवाने हैं। ये कुछ उदाहरण हैं जो बुजुर्गों के मोबाइल फोन के इस्तेमाल की बढ़ी प्रवृत्ति को बताते हैं। युवाओं के मुकाबले बुजुर्गों में बढ़ी मोबाइल की लत उनके सामाजिक जीवन को भी बदल चुकी है। बुजुर्गों में बढ़ते मोबाइल एडिक्शन व इससे जुड़े अन्य पहलुओं पर की रिपोर्ट -
बच्चों के साथ बैठकर कहानियां सुनाने वाले बुजुर्ग अब मोबाइल फोन में ही खुद को बिजी रखे हुए हैं। बाबा साहेब भीमराव केंद्रीय विवि के कंप्यूटर विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.संजय द्विवेदी ने बताया कि विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों में इसकी लत बढ़ी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाल ही में हुए शोध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। स्मार्ट मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले 90 फीसद लोग इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। उनमें से 18 से 40 वर्ष तक के युवाओं का प्रतिशत 30 से 50 फीसद है। इसके साथ ही 40 से 60 के उम्र के 30 फीसद लोग स्मार्ट मोबाइल फोन में इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। 60 से 70 साल की उम्र वाले 15 से 20 फीसद बुजुर्ग फोन में इंटरनेट यूज करते हैं। इस लत से बुजुर्गों के सामाजिक जीवन पर भी असर पड़ रहा है। शोध में यह भी सामने आया है कि 71 फीसद स्मार्ट फोन धारक अपने पास फोन लेकर सोते हैं। 35 फीसद लोग स्मार्ट फोन को लेकर सुबह-शाम टहलते हैं। 44 फीसद युवा मोबाइल फोन को हरदम हाथ में लेना पसंद करते हैं।
ऑनलाइन गेम और यू-ट्यूब पर बिता रहे समय
ज्यादातर लोग यू-ट्यूब पर और ऑनलाइन गेम्स में बिता रहे हैं। बुजुर्गों के पास समय खूब रहता है तो ऐसे यूजर्स के लिए कंपनियां एंडलेस गेमिंग के कंटेंट डेवलप कर रही हैं। युवाओं को पैसे कमाने की होड़ में ऑनलाइन गेम्स डेवलप कर रही हैं जो एक लेवल पार करने के बाद दूसरा लेवल पार करने पर रिवॉर्ड प्वाइंट व अन्य लालच देती हैं। बुजुर्ग भी ऐसे गेम्स के प्रति आकर्षित होने लगे हैं। गेम्स के जरिए सोशल कनेक्शन भी पैदा कर रहे हैं। गेम खेलते समय यूजर किसी दूसरे देश के यूजर से जुड़ जाता है, बावजूद इसके दोनों के बीच हेल्दी कनेक्शन नहीं होता है क्योंकि गेम का कांटेक्स्ट ही हेल्दी नहीं होता।
फ्रंटल लोब हो सकता है प्रभावित
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विवि मेें कंप्यूटर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.संजय द्विवेदी ने बताया कि
वैज्ञानिक रिसर्च कहती है कि बच्चों और युवाओं में फ्रंटल लोब पर तो दुष्प्रभाव पड़ता है, लेकिन अधिक उम्र वालों में इसका ज्यादा असर नहीं पड़ता। फ्रंटल लोब मस्तिष्क का वह हिस्सा होता है, जो सही-गलत व व्यावहारिक निर्णय लेने में मदद करता है। इस लत के चलते फ्रंटल लोब प्रभावित होता है। इससे सोच, विचार व भावनाएं प्रभावित होती हैं।
रिश्तों की कम हो रही मिठास
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि वर्चुअल वल्र्ड में तो कनेक्शन स्ट्रॉन्ग होते जा रहे हैं, पर परिवार और समाजिक रिश्तों की मिठास कम होती जा रही है। हर घर का आज यही हाल है। स्मार्ट का मतलब है पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भरता, फिर चाहे कोई जानकारी हो या कुछ और। लोग स्मार्ट गैजेट्स पर पूरी तरह निर्भर होते जा रहे हैं। सोते-जागते हर समय फोन पर चिपके रहते हैं।
मोबाइल या टेक्नोलॉजी एडिक्शन
केजीएमयू में मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि मोबाइल फोन या टेक्नोलॉजी एडिक्शन में स्मार्ट फोन, स्मार्ट वॉच, टैब, लैपटॉप आदि सभी शामिल हैं। यह समस्या केवल भारत की नहीं, बल्कि दुनिया के हर देश की है। कई सीवियर केस हमारे क्लिनिक में आए जिसमें इस लत के चलते लोग बुरी तरह तनावग्रस्त थे। कुछ दोस्त व परिवार से कट गए, कुछ तो ऐसे थे जो मोबाइल न देने पर आक्रामक हो जाते हैं। हालांकि ओपीडी में पांच साल से लेकर 18 साल तक लोग ही आते हैं। केजीएमयू के मनोचिकित्सा विभाग में 'प्रॉब्लमैटिक यूज ऑफ टेक्नोलॉजी क्लिनिक' की शुरुआत की गई है। 50 से ऊपर के लोगों में लत तो बढ़ी है, लेकिन इसका उनके जीवन पर युवाओं के मुकाबले ज्यादा असर नहीं पड़ रहा है। इसलिए वह क्लीनिक पर तो नहीं आते।
बच्चों का रखें ध्यान
बुजुर्गों के मुकाबले छोटे बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखें। मेच्योर न होने के कारण वे बुरी चीजों को कैच कर लेते हैं। पांच साल से लेकर टीनेजर में मोबाइल फोन के प्रति लगाव ज्यादा देखा गया है। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि इसका ध्यान रखें। आगे चलकर यह खतरनाक हो सकता है। गेम साइट पर भी ऐसे कई विज्ञापन चलते हैं जो उनके दिमाग पर बुरा असर डालते हैं।
मोबाइल लत के लक्षण
- याद्दाश्त कमजोर होना।
- पढऩे-लिखने या एकाग्रता वाले कामों में ध्यान न लगा पाना।
- दु:खी रहना या चिड़चिड़ापन होना।
- सिरदर्द, आंख का कमजोर होना।
- 12 से 14 वर्ष तक के बच्चों में नर्व, स्पाइन और मसल्स की समस्याएं होना।
- स्पॉडिंलाइटिस, लंबर स्पॉडिंलाइटिस, वजन बढऩा, ऊर्जा की कमी, थकान होना जैसी दिक्कतों का बढऩा।
- लीड लगाकर मोबाइल पर गाने सुनना या गेम खेलने से कानों में सीटी जैसी आवाज होना।
- जरा-जरा सी बात पर एग्रेसिव हो जाना, आपस में मारपीट, झगड़ा करना।
- एडिक्ट बच्चे में मोबाइल व इंटरनेट इस्तेमाल करने की निरंतर इच्छा का होना।
- नशा या शराब जैसी लत की तरह मोबाइल न मिलने पर कष्ट महसूस होना, बेचैन रहना।
- यदि बच्चा मोबाइल या इंटरनेट एडिक्ट है तो काउंसिलिंग के जरिए इलाज हो जाता है, मगर गंभीर अवस्था में दवाएं भी चलाई जाती हैं।
- गैजेट हाईजीन की आदत अपनाएं
- गैजेट हाईजीन का मतलब है जीवन में ऐसे नियमों का पालन करना जो आपको गैजेट से दूर रखें।
- नोटिफिकेशन बंद करके रखें। इंटरनेट यूजर समय सीमा निर्धारित करें।
- यदि कोई 60 वर्ष का व्यक्ति सोशल मीडिया या विदेश में रहने वाले बच्चों से वीडियो कॉल पर बात करते हुए अपना समय दे रहा है तो कोई हर्ज नहीं, मगर बच्चों व किशोरों का समय देना गलत है।
- बच्चों को मोबाइल व इंटरनेट एडिक्शन से बचाने के लिए सबसे पहले अभिभावक खुद को गैजेट से दूर रखने का प्रयास करें।
- पांच साल तक के बच्चों को कतई मोबाइल न दें, भले ही वह कितना जिद करे।
- नियम बनाएं कि खाना खाते समय परिवार का कोई भी सदस्य गैजेट का इस्तेमाल नहीं करेगा।
- सोने से दो घंटे पहले और सुबह जागने के तुरंत बाद गैजेट का इस्तेमाल न करें।
- बहुत जरूरी हो तभी बच्चों को गैजेट दें, मगर उसके कंटेंट का ध्यान भी रखें।