EVM पर दोष मढ़ना यानी 'अंगूर खट्टे हैं....मशीन से छेड़छाड़ पर बोले अफसर
दैनिक जागरण विमर्श के दौरान प्रदेश के पूर्व मुख्य चुनाव अधिकारी एसके अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त किए।
लखनऊ, जेएनएन। जो चुनाव हार गए। जनता ने उनको नकार दिया, वे अब ये नहीं मान रहे हैं कि जनता ने उनको पराजित किया है। लोमड़ी वाली कहानी याद आती है कि अंगूर उसको नहीं मिले तो बोली कि अंगूर खट्टे हैं। कुछ यही हाल उन राजनीतिक दलों का है, जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर सवाल उठा रहे हैं। ये मशीन हैक नहीं की जा सकती हैं। इसलिए मतपत्र पर वापस जाने की जगह हमको अब ऑनलाइन वोटिंग की तैयारी करनी होगी।
प्रदेश के पूर्व मुख्य चुनाव अधिकारी एसके अग्रवाल ने ये विचार सोमवार को दैनिक जागरण विमर्श के दौरान व्यक्त किए। विमर्श का विषय कैसे थमे ईवीएम विरोध की राजनीति था। अग्रवाल ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग ने ईवीएम का उपयोग 2002-03 में शुरू किया था। पहले धांधली होती थी। मेरे बचपन में दिल्ली की बात है, चुनाव में कोई मतपेटी लेकर भाग गया तो किसी ने उसमें पानी डाल दिया। ये तमाशा अगर दिल्ली में होता था, तब यूपी और बिहार के गांवों में क्या होता होगा। बक्सा बदल दिया जाता था।
मैं 1977 में बागपत में एसडीएम था। मतगणना में स्टाफ लगाना मुश्किल होता था। नेताओं की कलक्टर के पास दरख्वास्त आती थी। सब अपनी सूची भेज देते थे। इसके बाद ईवीएम की बात शुरू हुई, जिसमें मानवीय हस्तक्षेप न हो। माना गया कि अगर पूरा बैंकिंग सिस्टम ऑनलाइन है। विमान में हम तकनीक पर भरोसा करके बैठते हैं, तो चुनाव प्रक्रिया में मशीन क्यों नहीं आ सकती है। पिछले चार साल में ईवीएम के खिलाफ जमकर शोर किया गया।
सवाल ये है कि ईवीएम में टेंपरिंग हो सकती है तो कौन करेगा। अगर प्रशासन के हाथ में ये होता तो सरकारें क्यों बदलती हैं। सरकारों के हाथ में कुछ नहीं है। ईवीएम टेंपरिंग का कोई आधार और कागजात नहीं है। ये बातें अर्थहीन हैं। उन्होंने कहा कि टेंपरिंग कैसे होती है, अगर कोई समझा दे तो मैं मान जाऊंगा। बिना वीवीपैट के मशीन से चुनाव कराया है। तकनीकी गड़बडिय़ों की संभावना दो फीसद तक है। खराब ईवीएम को रिप्लेस कर देते हैं। उन्होंने कहा, सुपर कम्प्यूटर तक खराब होता है। ये निर्णय तो केंद्र के चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार के साथ लिया था। वीवीपैट भी भ्रांति दूर कर रहा है मगर शक का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है। ईवीएम पर सवाल सीता की अग्निपरीक्षा के समान है।
हम चुनाव सुधार की भी तो बात करें
चुनाव सुधार की बात कोई नहीं करता है। अनेक मुद्दे हैं, जिन पर कोई निर्णय नहीं हो रहा है। कई मामले लंबित हैं। बड़ी वारदातों के आरोपित चुनाव लड़ रहे हैं। गुंडों की कोई कमी नहीं है। बात केवल ईवीएम की होती है।
वोटर लिस्ट आधार से जुड़े तो खुलेगा ऑनलाइन वोटिंग का रास्ता
वोटर लिस्ट लोकल एडमिनिस्ट्रेशन बनाता है। लिस्ट में खामी संभव है। एक खामी को नजीर बनाकर उछाला जाता है। गलती की संभावना है। अगर आप सजग हैं तो ऑनलाइन जाकर नाम जुड़वा सकेंगे। उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट कॉमन नहीं हो सकती है। हां, डेटा जरूर कॉमन हो सकते हैं। जब दोनों निर्वाचन आयोग मिलकर काम करेंगे तब डेटा एक हो जाएगा।
सारे चुनाव एक साथ होना मुश्किल
अगर लोकसभा से लेकर पंचायत तक एक साथ चुनाव होंगे तो आठ मशीनें लगेंगी। करीब 350 उम्मीदवार होंगे। 56 सिंबल होंगे। ऐसे में आठ घंटे में कितने लोग वोट डाल पाएंगे। जहां 16 से ज्यादा कैंडिडेट होंगे, वहां और अधिक मशीनें होंगी। हालांकि, विधानसभा और लोकसभा चुनाव तथा निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं।