Shri Ram Janmbhoomi: ओली की अल्पज्ञता को आईना दिखाती है यहां की दरो-दीवार
Shri Ram Janmbhoomi रामजन्मभूमि के साथ कनकभवन दशरथमहल हनुमानगढ़ी जैसे अनेक त्रेतायुगीन स्थलों से प्रवाहमान है भगवान राम और अयोध्या की विरासत।
अयोध्या [रघुवरशरण]। Shri Ram Janmbhoomi: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने क्या सोचकर अयोध्या की प्रामाणिकता पर सवाल खड़ा किया और भगवान राम को नेपाली करार दिया, यह तो वही जानें पर रामनगरी की दरो-दीवार कदम-कदम पर ओली की अल्पज्ञता को आईना दिखाती है। इसके केंद्र में वह रामजन्मभूमि ही है, जो दुनिया के कोटि-कोटि रामभक्तों की आस्था के केंद्र में है, जिसकी विरासत भगवान राम के जन्म से ही सतत प्रवाहमान है। जिसकी मुक्ति के लिए पांच सदी तक सुदीर्घ संघर्ष चला। धर्म, साहित्य, परंपरा, मान्यता, संस्कृति के साथ पुरातत्व तथा ज्ञान-विज्ञान की आधुनिक कसौटी पर जिसकी प्रामाणिकता पूरी तरह से खरी उतरी और साक्ष्यों एवं प्रमाणों से संतुष्ट देश की सर्वोच्च अदालत ने गत वर्ष ही रामजन्मभूमि के विवाद का पटाक्षेप रामलला के हक में फैसला देने के साथ किया।
रामजन्मभूमि के कुछ ही फासले पर रामभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र कनकभवन भगवान राम से जुड़ी विरासत का जीवंत और भव्य गवाह है। कनकभवन के बारे में शास्त्र कहते हैं कि यह भवन रानी कैकेयी ने मां सीता को मुंह दिखायी में दिया था। रामजन्मभूमि की तरह कनक भवन की भी विरासत युगों से प्रवाहमान है। ऐसे ठोस साक्ष्य हैं कि भगवान राम के बाद कनकभवन का जीर्णोद्धार भगवान कृष्ण एवं भारतीय लोककथाओं के नायक महाराज विक्रमादित्य ने कराया था। कनकभवन और हनुमानगढ़ी के ठीक मध्य में दशरथमहल मंदिर है। एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा ने सवा शताब्दी पूर्व व्यापक शोध के बाद जिन चुनिंदा स्थलों को चिह्नित किया, उनमें से एक यह मंदिर भी था और इसी स्थल पर युगों पूर्व दशरथ का राजमहल होने की पुख्ता मान्यता है।
दरअसल, अयोध्या का यह संपूर्ण क्षेत्र त्रेतायुगीन राजप्रासाद का प्रांगण था और जिसे आज भी रामकोट मुहल्ला के नाम से जाना जाता है। इसी रामकोट की परिधि के आग्नेय कोण पर बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी स्थित है। भगवान राम के समय हनुमान जी यहां मुख्य रक्षक के तौर पर प्रतिष्ठित थे। युगों बाद भी यहां हनुमान जी रामनगरी के साथ संपूर्ण मानवता के मुख्य रक्षक की भांति शिरोधार्य हैं।
आस-पास के स्थलों से भी समीकृत है प्रामाणिकता
उत्तर दिशा में प्रवाहमान पुण्य सलिला सरयू और रामनगरी के कुछ ही फासले पर स्थित पौराणिक स्थलों से भी त्रेतायुगीन विरासत बखूबी समीकृत होती है। इनमें सरयू के उस पार मखौड़ा नामक स्थल है, जहां राजा दशरथ ने यज्ञ किया था। यहीं से रामनगरी की वृहत्तर 84 कोसी परिधि में परिक्रमा का भी आगाज होता है। इसी परिक्रमा की परिधि पर श्रृंगीऋषि का आश्रम है, जिन्होंने दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। रामनगरी से करीब 15 किलोमीटर दक्षिण दिशा में भरत की तपस्थली से भी अतीत का समीकरण पुख्ता है। भरत ने भगवान राम के वनवास के दौरान नंदीग्राम में तपस्यारत रहकर अयोध्या का राज्य संचालित किया था।
हमारी जड़ें मानसरोवर से लेकर पशुपतिनाथ तक
दशरथमहल सहित मखौड़ा धाम एवं नंदी ग्राम स्थित रामजानकी मंदिर के पीठाधिपति के रूप में त्रेतायुगीन विरासत के प्रतिनिधि बिंदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य के अनुसार ओली जैसे लोग चीन के इशारे पर भारत को अस्थिर करने के लिए सांस्कृतिक आधार पर आघात कर रहे हैं, पर वे यह भूल जाते हैं कि हमारे जड़ें अत्यंत गहरी हैं और उसकी मानसरोवर से लेकर पशुपतिनाथ तक की व्याप्ति बताती है कि भारत को अस्थिर करने का दुस्साहस करने वाले अपनी चिंता करें, संभव है कि कल को वे कहीं के न रहें।