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Shortage of COVID-19 Medicine in Lucknow: मेडिकल स्टोरों में किल्लत, दलाल बेच रहे रेमडेसिविर

रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए चल रही है। आक्सीजन की किल्लत के बीच सबसे ज्यादा लूट-खसोट रेमडेसिविर के लिए मची है। अस्पतालों में भर्ती मरीज को बचाने के लिए एक अदद इंजेक्शन की तलाश में लोग भटक रहे हैं और मुंहमांगी कीमत दे रहे हैं।

By Rafiya NazEdited By: Published: Thu, 22 Apr 2021 10:45 AM (IST)Updated: Thu, 22 Apr 2021 12:25 PM (IST)
Shortage of COVID-19 Medicine in Lucknow: मेडिकल स्टोरों में किल्लत, दलाल बेच रहे रेमडेसिविर
लखनऊ में दलालों के माध्यम से तीस हजार तक बेचा जा रहा 4800 का इंजेक्शन।

लखनऊ, जेएनएन। केस एक=गोमतीनगर के एक बड़े निजी अस्पताल में भर्ती मरीज के तीमारदार ने बताया कि अस्पताल की फार्मेसी में उन्हें मना कर दिया जबकि थोड़ी देर बाद बाहर से आए दूसरे व्यक्ति को रेमडेसिविर इंजेक्शन बारह हजार में बेचा गया।

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केस दो -गोमतीनगर के ही एक अस्पताल में भर्ती मरीज को लगाने के लिए चार इंजेक्शन लिखे गए। अपने यहां न होने की बात बताकर तुरंत पुराने लखनऊ स्थित बड़े कोविड अस्पताल का पता दिया गया। वहां से उनको 15 हजार की कीमत में एक इंजेक्शन मिला।

केस तीन -सीतापुर रोड स्थित एक निजी अस्पताल की ऑडियो वॉयरल हो रही है, जिसमें रेमडेसिविर इंजेक्शन का सौदा तीमारदार और दलाल में तेरह हजार रुपये में तय हुआ।

यह उस लूट के चंद उदाहरण हैं, जो शहर में रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए चल रही है। आक्सीजन की किल्लत के बीच सबसे ज्यादा लूट-खसोट रेमडेसिविर के लिए मची है। अस्पतालों में भर्ती मरीज को बचाने के लिए एक अदद इंजेक्शन की तलाश में लोग भटक रहे हैं और मुंहमांगी कीमत दे रहे हैं। डीलरों का तर्क है कि कंपनी से सरकार को ही ज्यादा सप्लाई जा रही है, इसलिए मार्केट में ज्यादा इंजेक्शन नहीं हैं। हम लोगों के पास जब हैं नहीं तो कालाबाजारी कैसे करेंगे। डीलरों के दावे कुछ भी हों, लेकिन दलालों के माध्यम से इंजेक्शन महंगे दामों पर बिक रहे हैं । ड्रग कंट्रोलर से लेकर ड्रग इंस्पेक्टर तक आंखें मूंदे हुए है। मुख्यमंत्री भी रेमडेसिविर की कालाबाजारी पर रासुका लगाने का आदेश दे चुके हैं। हैरत की बात है कि सैकड़ों शिकायतों के बावजूद एक भी मुनाफाखोर पर कार्रवाई नहीं की गई। दवाओं की कालाबाजारी रोकने के लिए ड्रग विभाग के अलावा खाद्य सुरक्षा विभाग और बांट-माप विभाग के अधिकारियों के अलावा मजिस्टे्रट को भी लगाया गया है। इसके बावजूद कालाबाजारी थमने का नाम नहीं ले रही है। जरूरतमंद बाजार में घूम रहे हैं और इंजेक्शन दुकानों के बाहर बेचे जा रहे हैं।

तुम मेरा बेचो, मैं तुम्हारा: एक दलाल से बातचीत में पता चला कि फार्मासिस्ट, डीलर और निजी अस्पताल की मिलीभगत से इंजेक्शन की कालाबाजारी हो रही है। निजी अस्पताल रेमडेसिविर इंजेक्शन लिखते हैं और अपने यहां किल्लत बताकर दूसरे अस्पताल का पता बताते हैं। इसी तरह दूसरा अस्पताल किसी फार्मासिस्ट या नर्सिंग होम पता बताकर इंजेक्शन मंगवा रहा है। इस गठजोड़ में लोग लुट रहे हैं और जिम्मेदार मौन हैं।

पता नहीं लगाते हैं कि रख लेते हैं: गोमतीनगर के ही एक निजी अस्पताल में अपने भाई को खो चुके अवधेश कहते हैं दलालों के माध्यम से मैंने चार इंजेक्शन दस-दस हजार में खरीदे, लेकिन भाई को नहीं बचा सका। अस्पताल वाले आइसीयू में ले जाकर पता नहीं इंजेक्शन लगाते हैं कि रख लेते हैं।

विशेषज्ञ की सुनिए

बहुत कारगर नहीं इंजेक्शन: जिस इंजेक्शन को लेकर निजी अस्पताल मारामारी मचाए हैं, उसी इंजेक्शन की उपयोगिता पर शहर के सबसे बड़े संस्थान एसजीपीजीआइ ने सवालिया निशान लगाए हैं। वहां के आइसीयू एक्सपर्ट प्रो. संदीप साहू ने कहा कि यह फार्मा कंपनियों का प्रायोजित प्रोपगंडा है। आप इस दवा की सफलता दर देखिए...छह-छह इंजेक्शन लगाने के बाद भी मरीज की जान नहीं बचती हैं, हमारे पास डेक्सामेथासोन जैसे दूसरे सस्ते और कारगर विकल्प हैं, उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। पीजीआइ खुद अपने यहां भर्ती मरीजों पर इसका इस्तेमाल बहुत कम करता है। इसको तो डब्ल्यूएचओ तक अप्रूवल नहीं देता।


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