ट्यूशन पढ़ाकर कर रही बेजुबानों की देखभाल, मिलिए 70 डॉगी की दीदी 'शिल्पी' से
लखनऊ में 70 से ज्यादा कुत्तों को पाल रही है जानवरों के खाने पीने की व्यवस्था के लिए पढ़ाती है ट्यूशन।
लखनऊ, [निशांत यादव]। शहर की फिजा में बेजुबानों से प्यार की दिल छू लेने वाली कहानियों की बात उठे, तो 70 डॉगी की बहन बनकर उनका ख्याल रखने वाली शिल्पी का जिक्र जरूरी हो जाता है। बेसहारा पशुओं से उनके प्रेम की कहानी में इन दिनों बेहद प्यारा नन्हा सा किरदार जुड़ गया है। बेजुबान प्यार के नए किरदार मंगल के साथ शिल्पी हर मंगलवार को बजरंगबली का दर्शन-पूजन करने जाती हैं। उस वक्त जो भी इन्हें देखता है, वो इस बेजुबान प्यार के वशीभूत हो जाता है। पशु प्रेम की इस हृदयस्पर्शी कहानी से रूबरू करा रही है निशांत यादव की ये रिपोर्ट।
करीब एक महीने पहले सात मई को सदर बाजार में एक मादा बंदर से नवजात को जन्म दिया। जन्म देते ही नन्हे बंदर के सिर से मां का साया उठ गया। कुछ लोग नन्हे बंदर को उठाकर सदर बाजार चौकी के पास छोड़ गए। उनको पता था कि 70 डॉगी के परिवार को पालने वाली शिल्पी कुछ देर में वहां से गुजरेंगी। रोज की तरह डॉगी को खाना बनाकर देने जा रही शिल्पी की नजर जैसे ही नवजात बंदर पर पड़ी वह रुक गईं। उसको उठाकर अपने घर ले आईं। करीब एक सप्ताह तक मंगल को दूध दिया, दूसरे सप्ताह उसे खाने में डिब्बाबंद शिशु आहार दिया। फिर केला व आम का शेक भी देना शुरू कर दिया। नन्हे बंदर का नाम मंगल रखा। अब मंगल केला खाने लगा है। हर मंगलवार को यह नन्हा बंदर शिल्पी के साथ हनुमान जी के दर्शन करने भी जाता है।
मंगल शिल्पी के पशु परिवार का 71वां सदस्य बन गया है। पशु प्रेम में शिल्पी इतनी रम गईं कि उनके खाने का इंतजाम करने के लिए ट्यूशन पढ़ाती हैं। सदर के हाता रामदास की रहने वाली शिल्पी ठाकुर ने वर्ष 2015 में समाज शास्त्र से परास्नातक किया है। छावनी के सदर में घूमने वाले बेसहारा श्वानों के लिए वह दोपहर तीन बजते ही शिल्पी खाना तैयार करने में जुट जाती हैं। रोज 10 किलो चावल के साथ एक ट्रे अंडों की करी भी बनती है। करीब तीन घंटे उनका खाना बनने के बाद उसको हाथ से मिक्स कर उनके पैकेट स्कूटी से लेकर ठीक सात बजे निकल पड़ती हैं। यही वह समय होता है जब सदर बाजार के श्वानों की नजरें मंगल पांडेय रोड पर टिक जाती हैं। इसी रोड से शिल्पी खाना लेकर जो आती हैं। शिल्पी को श्वानों को खाना देने में पूरे दो घंटे लग जाते हैं। शिल्पी केवल बेजुबानों का पेट ही नहीं भरतीं, उनकी देखभाल भी करती हैं। जब कोई श्वान, गाय या बंदर घायल मिलता है तो वह उनके इलाज में लग जाती हैं। यह करते-करते उन्हें इंजेक्शन लगाना और घाव साफ करना भी आ गया है।
दो अजगर भी किए रेस्क्यू
शिल्पी के पशु प्रेम की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उन्होंने बेजुबान सांपों को बचाने का काम भी किया है। उन्होंने रेस्क्यू की कला भी सीखी है। अब तक वह दो अजगर पकड़ चुकी हैं। इसके लिए विभाग सहित पशु प्रेमियों से उन्हें सराहना भी मिल चुकी है।