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पेट स्कैन गाइडेड बायोप्सी तकनीक स्थापित करने वाला देश का तीसरा संस्थान बना एसजीपीजीआइ, जानें-क्या है खासियत

प्रोस्टेट कैंसर अब छिप नहीं पाएगा। कैंसर पकड़ने की दर में बढ़ोतरी के लिए संजय गांधी पीजीआई ने पेट स्कैन गाइडेड बायोप्सी स्थापित किया है। इस तकनीक से सीधे ट्यूमर से बायोप्सी लेना संभव होगा अभी तक अल्ट्रासाउंड गाइडेड बायोप्सी ही ट्यूमर पता लगाने का एक मात्र सहारा रहा है।

By Vikas MishraEdited By: Published: Tue, 07 Dec 2021 06:31 PM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 08:05 AM (IST)
पेट स्कैन गाइडेड बायोप्सी तकनीक स्थापित करने वाला देश का तीसरा संस्थान बना एसजीपीजीआइ, जानें-क्या है खासियत
कैंसर पकड़ने की दर में बढ़ोतरी के लिए संजय गांधी पीजीआइ ने पेट स्कैन गाइडेड बायोप्सी स्थापित किया है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। प्रोस्टेट कैंसर अब छिप नहीं पाएगा। कैंसर पकड़ने की दर में बढ़ोतरी के लिए संजय गांधी पीजीआइ ने पेट स्कैन गाइडेड बायोप्सी स्थापित किया है। इस तकनीक से सीधे ट्यूमर से बायोप्सी लेना संभव होगा अभी तक अल्ट्रासाउंड गाइडेड बायोप्सी में ट्यूमर के सही स्थित का पता न लगने के लिए प्रोस्टेट के कई जगह से बायोप्सी लेनी पड़ती थी जिससे कई बार कैंसर का पता नहीं लग पता था। इस तकनीक को स्थापित करने वाले यूरोलॉजिस्ट एवं किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रो. संजय सुरेखा और न्यूक्लियर मेडिसिन के डा. आफताब नजर के मुताबिक पेट गाइडेड बायोप्सी में पहले प्रोस्टेट में कैंसर की सही स्थिति का पता लगाते है फिर रोबोट से शरीर के ऊपरी सतह से कितने अंदर कहां पर स्थित है पूरी पोजिशनिंग करने के बाद ट्यूमर से बायोप्सी रोबोट के जरिए लेने है। इससे कैंसर को पकडना काफी आसान हो गया है।

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विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोस्टेट कैंसर के पुराने तकनीक में एक से दो फीसदी में कैंसर का पता नहीं लग पाता था जिसके लिए कई बार दोबारा बायोप्सी करनी पड़ती थी। इस नयी विधि से अब तक करीब 15 केस में सफल बायोप्सी की जा चुकी है। यह प्रदेश का पहला ऐसा संस्थान है, जहां रोबोट से बायोप्सी की सुविधा अब उपलब्ध हो गई है। चंडीगढ़ पीजीआइ और एम्स दिल्ली में ही उपलब्ध थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक से बायोप्सी करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह लगभग दर्द रहित है। इसमें मात्र एक इंजेक्शन की तरह नाममात्र की चुभन महसूस होती है। पुरानी पद्धति से की जाने वाली बायोप्सी की अपेक्षा समय भी आधे से कम लगता है। 

दर्द से भरा होता था बायोप्सीः अभी तक यह बायोप्सी प्रक्रिया मरीज के गुदाद्वार में सुई डालकर की जाती है, यह प्रक्रिया मरीज के लिए कष्टकारी और असुविधाजनक होती है क्योंकि इस पुरानी विधि से प्रोस्टेट ग्रंथि के अलग-अलग हिस्सों से 8 से 10 जगह से लेने पड़ते हैं।


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