गर्भावस्था में मां के मानसिक स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग जरूरी
देश में पैरीनेटल मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर अन्य देशों की तुलना में ज्यादा।
लखनऊ(जेएनएन)। पैरीनेटल मेंटल हेल्थ यानि प्रसव के दौरान महिला के मानसिक स्वास्थ्य की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है जबकि यह मां और बच्चे के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य ठीक न होने की वजह से 20 प्रतिशत मां डिप्रेशन में चली जाती हैं।
वहीं, 0.2 प्रतिशत माताओं को पोस्टपार्टम साइकोसिस हो जाता है। यह आंकड़े विदेशों में होने वाले मामलों का 50 फीसद है। यह जानकारी ऑस्ट्रेलिया के क्लीनिकल पैरीनेटल साइकेट्रिस्ट डॉ. हरीश कालरा ने केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग में आयोजित सेमिनार में कही।
उन्होंने बताया कि मां के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना बेहद जरूरी होता है। खासतौर पर अगर महिला पहले से किसी प्रकार के डिप्रेशन, एंग्जाइटी या किसी तरह के मानसिक रोग से पीडि़त हो। इसके लिए जरूरी है कि स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के पास जब गर्भवती आए तो उसकी एक बार स्क्रीनिंग की जाए। इसके लिए मानसिक रोग की एक प्रश्नावली तैयार की जानी चाहिए जिसमें उसकी पास्ट हिस्ट्री को लेकर प्रश्न हों। अगर इसमें लगता है तो मरीज को मानसिक रोग विभाग में रेफर किया जाना चाहिए।
बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है असर
विभागाध्यक्ष प्रो. पीके दलाल ने बताया कि अगर महिला पहले से डिप्रेशन और एंग्जाइटी का शिकार है तो 50 फीसद संभावना होती है कि महिला को डिलीवरी के बाद या पहले डिप्रेशन या पोस्ट पार्टम साइकोसिस हो सकता है। जिसकी वजह से कई बार महिलाएं बच्चों की ठीक से देखभाल नहीं कर पाती हैं। ऐसे में बच्चे के मानसिक, शारीरिक और इमोशनल विकास पर असर पड़ता है। एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि डिप्रेशन और पोस्ट पार्टम साइकोसिस पूरी तरह से ठीक हो सकती है। बशर्ते इसका समय से इलाज करवाया जाए। कार्यक्रम में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वॉल्स आस्ट्रेलिया की पैरीनेटल साइकेट्री की प्रो. मैरी पॉल ऑस्टिन, डॉ. आदर्श त्रिपाठी समेत स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग के रेजिडेंट मौजूद रहे।