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Coronavirus : कोरोना वायरस की कुंडली तैयार करने में जुटे सीएसआइआर के वैज्ञानिक

दो से तीन सप्ताह में आ सकते हैं शोध के परिणाम। सीक्वेंसिंग से तय होगी कोरोना के उपचार की राह।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 30 Apr 2020 08:47 AM (IST)Updated: Thu, 30 Apr 2020 01:35 PM (IST)
Coronavirus : कोरोना वायरस की कुंडली तैयार करने में जुटे सीएसआइआर के वैज्ञानिक
Coronavirus : कोरोना वायरस की कुंडली तैयार करने में जुटे सीएसआइआर के वैज्ञानिक

लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। देश के अलग-अलग हिस्सों की आबादी पर कोरोना वायरस की सक्रियता अब रहस्य नहीं रहेगी। कोविड-19 की जटिलताओं की पड़ताल के लिए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की विभिन्न प्रयोगशालाओं ने वायरस की कुंडली तैयार करने का काम शुरू किया है। इसके तहत यह प्रयोगशालाएं कोरोना संक्रमित मरीजों के नमूनों से प्राप्त आरएनए से डीएनए बनाकर उसकी सीक्वेंसिंग करेंगी, जिससे अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में इस वायरस के व्यवहार और प्रकृति का पता लगेगा। सीएसआइआर के महानिदेशक डॉ शेखर मांडे बताते हैं कि सीएसआइआर की कुल सात प्रयोगशालाएं लगभग एक हजार नमूनों में आरएनए का परीक्षण कर सीक्वेंसिंग का काम करेंगी।

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इन प्रयोगशालाओं पर चल रहा काम

आइजीआइबी दिल्ली, सीसीएमबी हैदराबाद व चंडीगढ़ स्थित इमटेक प्रयोगशाला में इस पर काम शुरू हो चुका है। वहीं, लखनऊ की सीडीआरआइ और एनबीआरआइ के अलावा आइएचबीटी पालमपुर, आइआइसीबी कोलकाता में भी जल्द ही इस पर काम शुरू किया जाएगा। डॉ. मांडे ने बताया कि अभी तक सौ नमूनों में सीक्वेंसिंग का काम पूरा कर लिया गया है और अगले दो-तीन सप्ताह में इस शोध के परिणाम आने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि इन शोध परिणामों से कोविड-19 के प्रभावी व सटीक उपचार का रास्ता प्रशस्त हो सकेगा।

होगा ये फायदा

डॉ. मांडे बताते हैं कि सीक्वेंसिंग की मदद से वैज्ञानिक फाइलोजेनेटिक ट्री बनाने का कार्य भी कर सकेंगे, जिससे हमें यह पता पता लगाने में आसानी होगी कि कौन सा वायरस म्युटेंट देश के किस हिस्से से आया है और उसका आपस में क्या संबंध है?

केजीएमयू और सीडीआरआइ साथ करेंगे शोध

सीडीआरआइ, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवॢसटी (केजीएमयू) के साथ सीक्वेंसिंग का कार्य करेगा। संस्थान ने इसके लिए केजीएमयू के साथ एक एमओयू भी किया है। सीडीआरआइ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रवि शंकर बताते हैं कि कोविड-19 के लिए फिलहाल कोई दवा नहीं है।

सीक्वेंसिंग से होगी थेरेपी की डिजाइनिंग

सीक्वेंसिंग के जरिये हम थेरेपी डिजाइन करने में सफल होंगे। ऐसे में प्रचलित दवाओं के पुन: उपयोग (रीपरपजिंग) पर काम किया जा रहा है। उद्देश्य है कि जल्द से जल्द इस संक्रमण के लिए प्रचलित दवाओं में से ही कोई दवा ऐसी तलाशी जाए, जो इलाज में कारगर हो। वर्तमान में कोरोना के लिए ऐसी 5 से छह ड्रग पर काम चल रहा है। डॉ. रविशंकर बताते हैं कि सीक्वेंसिंग से मरीज में इस बात का पता लगाने में मदद मिलेगी कि कौन सा वायरस म्युटेंट संक्रमण की वजह है। इससे जांच करके कोरोना के इलाज के लिए उपयुक्त व सटीक दवा की पहचान की जा सकेगी।

क्षेत्रवार व्यवहार का चलेगा पता

डॉ. रविशंकर कहते हैं कि ऐसा कहा जा रहा है कि इंदौर मैं कोरोना वायरस का जो म्युटेंट है, वह ज्यादा घातक है। इस बात के फिलहाल अभी कोई प्रमाण नहीं हैैं, लेकिन सीक्वेंसिंग के बाद हमें इस बात का पता लग सकेगा कि किस क्षेत्र का वायरस किस तरह का व्यवहार कर रहा है। 


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