International Women's Day: आधी आबादी को अपने पैरों पर खड़ा कर रही लखनऊ की अलका, यूं बना रही आत्मनिर्भर
International Womens Day वैज्ञानिक डॉ. अलका ने बायोटेक्नोलॉजी में एक हजार को दी ट्रेनिंग। अपनी कंपनी से जोड़कर सभी महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर।
लखनऊ[निशांत यादव]। वह वैज्ञानिक हैं। लाइफ साइंस और फूड साइंस के क्षेत्र में कई इंटरनेशनल कंपनियों और भारतीय शोध संस्थानों के साथ काम कर चुकी हैं। अब बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आधी आबादी को अपने पैरों पर खड़ा कर रही हैं। अब तक एक हजार महिलाओं को इस क्षेत्र में प्रशिक्षित किया। साथ ही उन्हें अपनी कंपनी से जोड़कर आत्मनिर्भर भी बनाया। खास बात है कि डॉ. अलका की पूरी कंपनी आधी आबादी ही चला रही हैं।
गोमतीनगर की डॉ. अलका सक्सेना लाइफ साइंस व फूड साइंस वैज्ञानिक हैं। सीडीआरआइ में टीबी की दवा पर शोध करने वाली डॉ. अलका को 2007 में जेएनयू दिल्ली से पीएचडी मिली थी। इंटरनेशनल और भारतीय शोध संस्थानों में 10 साल तक काम करने के बाद डॉ. अलका ने वर्ष 2017 में महिलाओं को साइंस से आत्मनिर्भर बनाने की एक पहल की। एक स्टार्टअप कंपनी बनाई जो बायोटेक रिसर्च सर्विस, टेस्टिंग सर्विस व दवाओं के शोध पर काम करती है। इसके जरिए महिलाओं का बायोटेक सेक्टर में कौशल निखारने की शुरुआत हुई। कुछ ही समय में एक हजार महिलाओं को बायोटेक साइंस से जोड़ा। उनको खाना, पानी और दूध की गुणवत्ता की जांच के लिए प्रशिक्षण दिया। इतना ही नहीं फार्मा की छात्राओं को भी बायोटेक साइंस को लेकर ट्रेनिंग शुरू की। प्रशिक्षण प्राप्त महिलाओं को कॅरियर संवारने के लिए डॉ. सक्सेना अपनी ही कंपनी के प्रोजेक्ट में शामिल करती हैं। जहां वह बतौर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट के रूप में अनुभव हासिल कर मल्टीनेशनल व इंटरनेशनल कंपनियों में अपना भविष्य संवारती हैं।
हेल्थकेयर पर किया शोध
डॉ. अलका सक्सेना ने अपने 10 साल के रिसर्च के दौरान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एम्यूनोलॉजी (एनआइआइ), इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आइसीजीईबी) और जीई लाइफ साइंस की टीम की सदस्य रह चुकी हैं। एनिमल आइवीएफ और हेल्थ केयर पर शोध करने वाली डॉ. सक्सेना के कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जर्नल भी प्रकाशित हो चुके हैं।