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ग्रीन पटाखों से मनाएं दीपावली; पर्यावरण होगा सुरक्षित; जानें-क्या इनसे धुआं नहीं निकलता

देश के अलग अलग भागों में पराली जलाने के कारण नवंबर माह में दीपावली आते आते देश के अलग वायु प्रदुषण खतरनाक स्तर तक बढ जाता है जिससे तमाम प्रकार की श्वशन संबंधी त्वचा संबंधीसरदर्द एवं नींद न आने की समस्या आजकल सामान्यता देखी जा रही है।

By Vikas MishraEdited By: Published: Mon, 01 Nov 2021 12:01 PM (IST)Updated: Mon, 01 Nov 2021 12:01 PM (IST)
ग्रीन पटाखों से मनाएं दीपावली; पर्यावरण होगा सुरक्षित; जानें-क्या इनसे धुआं नहीं निकलता
हर दीपावली के बाद बड़े शहरों में 15-20 दिनों तक धुंध की समस्या आम होती जा रही है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। देश के अलग अलग भागों में पराली जलाने के कारण नवंबर माह में दीपावली आते आते देश के अलग वायु प्रदुषण खतरनाक स्तर तक बढ जाता है जिससे तमाम प्रकार की श्वशन संबंधी, त्वचा संबंधी, सरदर्द एवं नींद न आने की समस्या आजकल सामान्यता देखी जा रही है। हर दीपावली के बाद लखनऊ के साथ बड़े शहरों में 15 से 20 दिनों तक धुंध के स्मोग की समस्या आम होती जा रही है। अब समय आ गया है कि भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा पूरी तरह से स्वदेशी ढंग से बनाए गए गए ग्रीन पटाखों के साथ दीपावली मनाई जाए। 

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ग्रीन पटाखे भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत' नागपुर के राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान (एनईईआरआई) व तमिलनाडु के केंद्रीय विद्युत रासायनिक अनुसंधान संस्थान (सीईसीआरआई) ने संयुक्त रूप से ग्रीन पटाखे तैयार किए हैं। सीएसआईआर-राष्ट्रीय इंजीनियरिंग एवं पर्यावरण शोध संस्थान (एनईईआरआई) की मान्यता प्राप्त एनएबीएल प्रयोगशालाओं द्वारा भी पूरी तरह से परखे गए हैं। हालांकि सामान्य पटाखों से ये महंगे जरूर हैं लेकिन पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए अनुकूल हैं। 

क्या होते हैं ग्रीन पटाखेः विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के अनुसार ग्रीन पटाखे दिखने, जलने और आवाज़ में सामान्य पारंपरिक पटाखों पटाखों की तरह ही होते हैं, इन पटाखों में अनार, पेंसिल, चकरी, फुलझड़ी, फ्लावर पॉट,स्काई शॉट और सुतली बम, आदि हैं। अन्‍य पटाखों की तरह ही ग्रीन पटाखों को माचिस से जलाया जाता है। ऐसा भी नहीं है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं होता है, लेकिन वायु प्रदूषण की दृष्टि से ये कम हानिकारक पटाखे होते हैं। ये.सामान्य पटाखों की तुलना में 30 से 40 फ़ीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा करते हैं. क्योंकि सामान्य पटाखों में की तुलना मैं ग्रीन पटाखों मैं वायु प्रदूषण फैलाने वाले हानिकारक रसायन जैसे- एल्युमिनियम, बैरियम, पौटेशियम नाइट्रेट और कार्बन और सल्फर इस्तेमाल होते हैं । जिससे इनके जलने पर पर्यावरण प्रदूषण में 30 से 40 फीसदी की कमी आती है अगर ध्वनि प्रदूषण की दृष्टी से भी देखा जाए तो ये कम ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं। 

कितने तरह के ग्रीन पटाखेः विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के अनुसार नीरी ने कुछ रासायनिक फार्मूला विकसित किए हैं। इसके अनुसार ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले अलग मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं जिससे पटाखे जलने के बाद कम हानिकारक गैसें बनेगी और रासायनिक अभिक्रिया से पानी बनेगा जिसमें हानिकारक गैसें घुल जाएंगी। खुशबू वाले पटाखों को जलाने से न केवल कम हानिकारक गैस पैदा होगी बल्कि बातावरण में बेहतर खुशबू भी बिखरेगी। इन पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है। आप कहीं भी पटाखों की दुकानों से इन्हें खरीद सकते हैं। आनलाइन अलग-अलग प्लेटफार्म से खरीद सकते हैं । अलबत्ता पटाखे खरीदते समय एक बार दुकानदार से ये कन्फर्म जरूर कर लें कि ये ग्रीन पटाखे हैं या नहीं या ग्रीन पटाखों की पैकिंग के ऊपर अलग से लगे होलोग्राम या लेबल को देखकर आप सुनिश्चित कर सकते हैं।


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