Coronavirus: CDRI ने की दवा रिसर्च की पेशकश, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वैज्ञानिकों से मांगे प्रस्ताव
लखनऊ में कोरोनावायरस से लड़ने के लिए अब वैज्ञानिकों की ली जाएगी मदद सीडीआरआई विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वैज्ञानिकों से मांगे गए प्रस्ताव।
लखनऊ [रूमा सिन्हा]। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए शोध प्रयासों की पेशकश की है। केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआइ) के वैज्ञानिकों ने भी कोरोना वायरस से फेफड़ों में होने वाले रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस की दवा तलाश करने के लिए शोध की पेशकश की है। वैज्ञानिकों की कोशिश प्रचलित औषधियों में से ही कोई ऐसी दवा तलाशने की है, जो कोरोना से पीड़ित मरीजों के फेफड़ों में होने वाले रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस को कम कर सके।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि फेफड़ों में होने वाले न्यूट्रोफिल एक्स्ट्रा सेलुलर ट्रैप को किसी तरह रोक लिया जाए तो संक्रमण से होने वाली मृत्यु पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, श्वेत रक्त कणिकाओं में मौजूद न्यूट्रोफिल यूं तो शरीर को किसी इंफेक्शन से बचाने में मददगार होती है लेकिन, कुछ स्थितियों में यह हाइपर एक्टिव होकर शरीर के विरुद्ध ही कार्य करना शुरू कर देती है। इसी से यह फेफड़ों में एक जाल सा बना लेती है, जिससे मरीज को सांस लेने में समस्या होने लगती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की मात्र बहुत कम होने लगती है और मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि न्यूट्रोफिल की अति सक्रियता को रोक दिया जाए तो रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस को खत्म किया जा सकता है। वैज्ञानिक अपना अनुसंधान इसी दिशा में करने के लिए प्रयासरत हैं। सीडीआरआइ के वैज्ञानिक जल्द ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार को यह शोध प्रस्ताव भेजेंगे।
दरअसल, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से देश भर के वैज्ञानिक संस्थानों से यह प्रस्ताव मांगे गए हैं कि वह कोरोना से जुड़े अनुसंधान के प्रस्ताव 30 मार्च तक भेजें। हर सीजन वायरस में म्यूटेशन यानी प्रकृति में बदलाव हो जाता है। इसके चलते कोई एक दवा इस पर कारगर नहीं होती। वहीं नई औषधि के अनुसंधान में समय भी काफी लगता है। जहां तक कोरोना वायरस से निपटने की बात है, बहुत लंबे समय तक इंतजार नहीं किया जा सकता।