यूपी में 'महक' रहा नकटी नाला का मशरूम, दुबई की नौकरी छोड़ बलरामपुर में खेती कर संवारी जिंदगी
सत्येंद्र ने बताया कि मशरूम की खेती अक्टूबर में शुरू होती है जो अप्रैल तक खत्म हो जाती है। यहां उत्पादित होने वाले मशरूम की मांग गैर जनपदों में खूब है। उनका मशरूम गोरखपुर अयोध्या गोंडा बहराइच श्रावस्ती व बस्ती जिले की मंडियों तक जाता है।
बलरामपुर, [योगेंद्र मिश्र]। तुलसीपुर के रहने वाले गुलाम मुस्तफा व सत्येंद्र चौहान ने मिलकर वह कर दिखाया, जो युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। एक-एक पैसे का अभाव झेल रहे सत्येंद्र चौहान दुबई मजदूरी करने चले गए थे। वहां मजदूरी उन्हें रास न आई तो अपने वतन का रुख कर लिया। यहां शुरू की गई मशरूम की खेती आज दस गुना लाभ में बदल गई है। गांव व आसपास के करीब दस श्रमिकों को भी रोजगार उपलब्ध कराया। दूरदराज के किसान उनसे मशरूम की खेती का गुर सीखने पहुंच रहे हैं।
सत्येंद्र चौहान आर्थिक तंगी के कारण आठवीं के बाद शिक्षा नहीं ले पाया। गांव में ही रहकर मेहनत-मजदूरी कर परिवार की जीविका संभाली। बचत होता न देख उसने दुबई की राह पकड़ ली। वहां कुछ दिन मजदूरी की, लेकिन कुछ खास कमाई न कर सका। हिंंदुस्तान वापस लौटा हरियाणा में काम करने लगा। यहां मशरूम की खेती से होने वाला मुनाफा देखा, तो उसने खुद का व्यापार करने का मन बना लिया। बस यहीं इसे उसकी जिंंदगी ने नया मोड़ लिया। गांव लौटकर गुलाम मुस्तफा को मशरूम खेती के फायदे बताए। दोनों ने मिलकर दो लाख रुपये पूंजी लगाकर नकटी नाला के पास मशरूम की खेती शुरू कर दी। फसल उगने के बाद उसे बलरामपुर समेत पड़ोसी जनपद की मंडियों में बेचना शुरू कर दिया। मुनाफा अच्छा होने पर फसल का क्षेत्रफल बढ़ाया। इससे स्थानीय श्रमिकों को भी रोजगार मिला। आज दोनों के पास 20 लाख रुपये की पूंजी हो चुकी है।
सात माह तक होती है मशरूम की खेती
सत्येंद्र ने बताया कि मशरूम की खेती अक्टूबर में शुरू होती है, जो अप्रैल तक खत्म हो जाती है। यहां उत्पादित होने वाले मशरूम की मांग गैर जनपदों में खूब है। उनका मशरूम गोरखपुर, अयोध्या, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती व बस्ती जिले की मंडियों तक जाता है। बताया कि अगल-बगल खाली पड़े खेतों में सब्जी की खेती कर रखी है। फसलों की रखवाली के लिए दिन-रात खेत में ही गुजारते हैं। बताया कि खुद न पढ़ पाने का मलाल है, लेकिन अब बच्चों को अच्छी तालीम दिलाने का संकल्प है।