Ayodhya Case: चार गोली लगी फिर भी आंदोलन नहीं छोड़ा, CBI कोर्ट पहुंचे संतोष दूबे ने बताई आपबीती
संतोष ने कहा भाई का आशीर्वाद लेकर जुड़ा था राम मंदिर आंदोलन से जुड़े। अयोध्या में राम की प्रतिमा इतनी ऊंची हो कि दूर से ही दिखे।
लखनऊ, (निशांत यादव)। सीबीआइ की विशेष कोर्ट में विवादित ढांचा ध्वंस के मामले में बयान दर्ज कराने पहुंचे अयोध्या के संतोष दुबे कार सेवकों पर हुए गोलीकांड को याद कर अब भी भावुक हो उठते हैं। दुबे ने कहा 'मुझे राममंदिर आंदोलन से जुडऩे की प्रेरणा बड़े भाई उमेश चंद्र पांडेय से मिली। वर्ष 1986 की बात है, हाईकोर्ट में वकील मेरे बड़े भाई ने विवादित स्थल का ताला खुलवाने की पैरवी की। ताला खुलने का आदेश कोर्ट ने दिया तो बड़े भाई ने कहा कि ताला तो खुल गया है। लेकिन, राम मंदिर बनाने के संकल्प को तुमको आगे बढ़ाना होगा। बस, इसके बाद भाई का आशीर्वाद लेकर 16-17 युवाओं की टोली बनाकर मैं राम मंदिर आंदोलन से जुड़ गया। सन 1990 में गोली लगने से घायल होने के बावजूद 1992 में विवादित ढांचे को ढहाने की मुहिम में शामिल हुआ। इसके लिए एनएसए तक का सामना करना पड़ा'।
पुलिस ने जंगल में ले जाकर छोड़ा
संतोष दुबे बताते हैं कि 16-17 साल की उम्र में युवाओं की एक टोली बन चुकी थी। उन दिनों जनता दल के एक सांसद शहाबुद्दीन हुआ करते थे, जिन्होंने एक विवादित बयान दिया था। उनका विरोध करने हम सब फैजाबाद के इंटर कॉलेज गए, जहां उनकी सभा होनी थी। हम सभी को पकड़ लिया गया और 50 किलोमीटर दूर मनकापुर के जंगलों में छोड़ दिया गया। वहां से हम सभी पैदल आए। इसके बाद हम सभी आंदोलन के लिए और कटिबद्ध हो गए।
चार गोलियां लगीं, डेढ़ साल चला इलाज
कुछ दिनों बाद अयोध्या में बाहर से बहुत कार सेवक आए थे। उनको लेकर राम मंदिर परिसर में पहुंचा ही था कि वहां सुरक्षाबलों ने गोलियां चला दीं। चार गोली लगने के बाद मैं जमीन पर गिर पड़ा था। करीब डेढ़ साल बाद स्वस्थ हुआ तो छह दिसंबर 1992 का वह दिन आ गया जब लाखों कार सेवकों का हुजूम उमड़ रहा था। देखते ही देखते विवादित ढांचे का ध्वंस हो गया। हालांकि, दुख इस बात का है कि इस आंदोलन के मुख्य सूत्रधार परमहंस रामचंद्र दास आज जीवित नहीं हैं।
राम मंदिर भव्य और विशाल बने
संतोष दुबे का कहना है कि कुछ लोग कहते हैं कि राम मंदिर भव्य और विशाल बनना चाहिए। प्रतिमा की ऊंचाई इतनी होनी चाहिए कि चौदह कोसी परिक्रमा में दूर से भी प्रभु राम की प्रतिमा देखकर भक्त नतमस्तक हो सकें।