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Dainik Jagran Samvadi 2019 : आज से सजेगा संवादी का मंच, तीन दिन होगी रंगमंच-सिनेमा और साहित्य की अभिव्‍यक्ति Lucknow News

Dainik Jagran Samvadi 2019 लखनऊ के भारतेंदु नाट्य अकादमी में 13 से 15 दिसंबर तक संवादी का होगा आयोजन। तीन दिन तक साहित्यरस बतरस और काव्यरस का लें आनंद।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 12 Dec 2019 03:38 PM (IST)Updated: Fri, 13 Dec 2019 08:05 AM (IST)
Dainik Jagran Samvadi 2019 : आज से सजेगा संवादी का मंच, तीन दिन होगी रंगमंच-सिनेमा और साहित्य की अभिव्‍यक्ति Lucknow News
Dainik Jagran Samvadi 2019 : आज से सजेगा संवादी का मंच, तीन दिन होगी रंगमंच-सिनेमा और साहित्य की अभिव्‍यक्ति Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। तीन दिन, बीस सत्र और संवाद की अथाह संभावनाएं समेटे फिर हाजिर है आपका संवादी। जी हां, भारतेंदु नाट्य अकादमी के मंच पर जब 13 दिसंबर को छठे संस्करण का पर्दा उठेगा, तो मंच से दर्शकदीर्घा तक सिर्फ एक ही गूंज होगी, अभिव्यक्ति की। अभिव्यक्ति के इस उत्सव में श्रोता वक्ता होते हैं और मेहमान ही मेजबान। रंगमंच, सिनेमा, साहित्य सहित तमाम क्षेत्रों के दिग्गजों से साक्षात्कार कराने वाले संवादी का शुभारंभ शुक्रवार सुबह 11:30 बजे पहले सत्र दैनिक जागरण सृजन से होगा। 

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हर बार की तरह यह संस्करण भी इस वादे के साथ पेश है कि साहित्यिक क्षुधापूर्ति के साथ ही इसकी यादें आपके जेहन में अमिट रहेगी। लखनऊ के लोगों के लिए एक यह ऐसा साहित्यिक उत्सव है जहां मुद्दे उठते हैं, मसले मंचासीन होते हैं और मंथन के साथ मार्गदर्शन लेकर संपूर्ण होते हैं। नए लेखक वर्जनाएं तोडऩे को आतुर दिखते हैं तो पुराने जड़ों से दूर न होने की नसीहत देते नजर आते हैं। अदब की दहलीज पर ठिठकती वक्ताओं की भाषा होती है तो आक्रोश को आवाज देते श्रोताओं के सवाल। मंच से जिज्ञासाओं को शांत किया जाता है तो दीर्घा में बैठकर सवाल करने की स्वतंत्रता भी तो मिलती है। हर अनुभव अद्भुत और अनूठा होता है। दलित और स्त्री साहित्य पर चर्चा जब जोर पकड़ेगी तो जनता उसे हौसले के हिमालय बिठाएगी।

सुनहले पर्दे का ख्वाब दिखाने के साथ ही आपको क्षेत्रीय राजनीति के भविष्य से रूबरू कराया जाएगा। धर्म की भाषा पढ़ाने के बाद ही मेहमान संघ का भविष्य आपके सामने रखेंगे। इतने गंभीर चिंतन के बाद साहित्य और सिनेमा के रंग आपको हास्य और गीत से भी रूबरू करेंगे। लखनऊ एक ऐसी सरजमीं है जहां संस्कृतियां आती गई और यह उन्हें आत्मसात करता गया। इस सब संस्कृतियों को अपने में आत्मसात करने की चुनौती भी संवादी के समक्ष है तो आप लोगों का संबल भी। आयोजन आपके शहर का है, आपके शहर में है, आप लोगों का है। संबंध नहीं है तो भी मेरे रंग में रंग जाइए क्योंकि ये मौका फिर एक साल बाद ही आएगा। तो आइए...मंच तैयार है।


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