समाजवादी कुनबे की कलह बगावत की ओर बढ़ी, सपा में बेचैनी
लोकसभा चुनाव करीब आते ही समाजवादी कुनबे की कलह अब बगावत में तब्दील होने लगी है। शिवपाल यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाकर अलग सियासी राह पकड़ ली है।
लखनऊ (जेएनएन)। लोकसभा चुनाव नजदीक आते देख समाजवादी कुनबे की कलह अब बगावत में तब्दील होने लगी है। सपा नेता शिवपाल सिंह यादव द्वारा समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के गठन से कुनबे की कलह एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है। सेक्युलर मोर्चा बनाने के बाद साफ हो गया है कि अब शिवपाल ने सपा से अलग अपनी सियासी राह पकड़ ली है। हालांकि बीते डेढ़ साल से वह पार्टी में किसी पद पर नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच रिश्ते में खटास 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के पहले आई थी। इसके बाद अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था।
भाजपा में जाने की भी चर्चाएं चलीं
फिलहाल 2017 के यूपी विधासनसभा चुनाव से अब तक मुलायम सिंह के समाजवादी कुनबे की लड़ाई यदाकदा सड़क दिखती रही है। मुलायम सिंह ने कई बार कुनबे को एका कराने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सके। इसी के चलते बीते दिनों शिवपाल के भाजपा का दामन थामने की चर्चाएं चलीं। शिवपाल के करीबी माने जाने वाले अमर सिंह ने भी कहा था कि उन्होंने भाजपा के बड़े नेता के साथ उनकी मीटिंग फिक्स कराई थी लेकिन वह ऐन वक्त पर नहीं पहुंचे। फिलहाल समाजवादी कुनबे में लंबे समय से चली आ रही कलह अब बगावत के रूप लेने लगी है। इस सबके बीच मुलायम सिंह ने खुद को यह कहकर दरकिनार कर रखा है कि उनकी अब कोई नहीं सुनता, फिर भी वह किसी हद तक अपने भाई के साथ खड़े नजर आते हैं।
राजभर की मुलाकात के निहितार्थ
भाजपा गठबंधन के साझीदार और योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने मंगलवार को शिवपाल सिंह यादव से मुलाकात की थी। राजभर की मुलाकात के ठीक एक दिन बाद शिवपाल के नए फैसले के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जाने लगे हैं। यह कयास है कि राजभर शिवपाल को मजबूती देंगे। हालांकि ओमप्रकाश राजभर से जब बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि मिलने का कोई राजनीतिक मकसद नहीं था। शिवपाल को मोर्चा बनाते और संगठन खड़ा करते-करते चुनाव बीत जाएगा। पिछड़ों की लड़ाई में शिवपाल अभी कारगर भूमिका नहीं निभा पाएंगे। ध्यान रहे कि राजभर ने अमर सिंह को भी अपनी पार्टी से आजमगढ़ से चुनाव लड़ाने की पेशकश की थी। सांसद अमर सिंह ने अपना कार्यकाल चार साल होने का हवाला देकर चुनाव मैदान में आने से भले इन्कार कर दिया लेकिन अब उनकी भूमिका पर खूब चर्चा हो रही है।
एकजुट होते शिवपाल समर्थक
दरअसल, समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक नर्सरी में तैयार इनमें से दोनो सियासी महारथियों यानी मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव और सपा प्रमुख अखिलेश यादव दोनों में सियासी वर्चस्व की जंग अब तक लंबी खिंचती दिख रही थी लेकिन अब दो धाराओं में बंटती नजर आने लगी है। शिवपाल अपनों के जरिए एक तरफ अपने समाजवादी समर्थकों को एकजुट कर रहे हैं तो दूसरी ओर छोटे-छोटे सियासी दलों का सेक्युलर मोर्चा तैयार करने में लगे हैं। वह नए मोर्चे की घोषणा से पहले सेक्युलर मोर्चा और शिवपाल फैंस एसोसिएशन दोनों को मजबूत कर चुके हैं। आज समाजवादी सेक्युलर मोर्च के गठन की घोषणा से काफी कुछ स्थितियां साफ हो गई हैं।
समाजवादी खेमे में बैचेनी बढ़ी
सूत्रों का कहना है कि सेक्यूलर मोर्चे के गठन से समाजवादी खेमे में बैचेनी बढ़ी है। सेक्यूलर मोर्चे में क्षेत्रीय दलों को शामिल करने की कवायद भी शुरू हो गई है। इसी दौरान बीते दिनों लोहिया ट्रस्ट की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव ने ट्रस्ट के कार्यों की समीक्षा के दौरान आगामी लोकसभा चुनाव पर भी चर्चा की। इसके भी सियासी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। पूर्व सपा नेता अमर सिंह के मुताबिक शिवपाल यादव देश की राजनीति के लिए मुलायम सिंह यादव की अच्छी देन बताया जाना अमर सिंह का भी साथ शिवपाल को मिलना माना जा रहा है। वैसे भी शिवपाल-अमर की दोस्ती जगजाहिर है।
छलका शिवपाल का दर्द
शिवपाल यादव समाजवादी सेक्युलर मोर्चा गठन के बाद कहा कि मैंने समाजवादी सेक्युलर मोर्चे का गठन किया है। जिस किसी का भी समाजवादी पार्टी में सम्मान नहीं हो रहा उन्हें हमारे साथ आना चाहिए। हम अपने साथ छोटी पार्टियों को भी जोड़ेंगे। अब मुलायम सिंह यादव तय करें कि उन्हें क्या करना है? शिवपाल ने कहा कि सपा में मुझे काम करने की जिम्मेदारी (पद) नहीं दी जा रही है और न ही कोई मौका दिया जा रहा है। ऐसे में मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा था। इसी के मद्देनजर समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने का फैसला किया है।