आरपीएन सिंह...न पहले और न आखिरी, पूरब से पश्चिम उत्तर प्रदेश तक कई छोड़ चुके कांग्रेस का साथ
UP Vidhan Sabha Chunav 2022 कुशीनगर के आरपीएन सिंह कांग्रेस के कद्दावर और राहुल गांधी की टीम के भरोसेमंद सदस्यों में शामिल थे। केंद्रीय राजनीति में सक्रिय रहे आरपीएन को यहां पूर्वांचल के प्रमुख नेताओं में गिना जाता रहा है।
लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। 'जिसे जाना है, वह जाए' वाली बेफिक्री के साथ कांग्रेस खड़ी रही और एक-एक कर हाथ से पुराने रिश्ते फिसलते चले गए। तमाम अटकलों से बेपरवाह पार्टी ने घिसती जा रही पुरानी डोर को टटोलने तक की जरूरत नहीं समझी और आखिरकार एक और प्रमुख नेता के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह भी भारतीय जनता पार्टी के मंच पर जा खड़े हुए।
संगठन में अर्से से उठते आ रहे 'नए बनाम पुराने' के मुखर को पार्टी के जिम्मेदार 'सुख के सब साथी, दुख में न कोय...' के शब्दों से दबाने का प्रयास बेशक करें, लेकिन वास्तविकता कुछ चुगली करती है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी की पारंपरिक सीट से राहुल गांधी की हार के करारे झटके के बाद संगठन सृजन पर पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की लगातार मेहनत के बावजूद पूर्वी उत्तर प्रदेश से पश्चिम तक बीस से अधिक विधायक, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद और पूर्व मंत्रियों का कांग्रेस छोड़ना निष्कर्ष छोड़ता है- 'मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।'
जिस तरह कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता अचानक छोड़कर गए हैं, उसने संगठन पर कमजोर नजर का संकेत भी दिया है। दो दिन पहले ही कांग्रेस ने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की, जिसमें आरपीएन सिंह का नाम था। चमरौआ से पार्टी अली यूसुफ को प्रत्याशी बनाया और अगले ही दिन वह सपा में चले गए। बरेली कैंट से कांग्रेस ने सुप्रिया ऐरन को उम्मीदवार बनाया और वह अपने पति प्रवीण ऐरन सहित पाला बदलकर चली गईं। अब एक और बड़े ब्राह्मण नेता के जल्द कांग्रेस छोड़ने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इनमें एक तो लंबे समय से पार्टी में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहे दिग्गज हैं, जबकि दूसरे वह माने जा रहे हैं, जिनका खेल पार्टी की राजनीति में दशकों से जमा है। यह अटकलें हैं, लेकिन ताजा घटनाक्रम सामने है।
कुशीनगर के आरपीएन सिंह कांग्रेस के कद्दावर और राहुल गांधी की टीम के भरोसेमंद सदस्यों में शामिल थे। केंद्रीय राजनीति में सक्रिय रहे आरपीएन को यहां पूर्वांचल के प्रमुख नेताओं में गिना जाता रहा है या यूं कहें कि कुशीनगर, देवरिया, गोरखपुर सहित आसपास के तमाम जिलों में वह कांग्रेस का चेहरा थे, जो कि मंगलवार को बेगाने हो गए। पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने दिल्ली में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली।
कांग्रेस से किनारा करने वाले पुराने ऐसे दिग्गजों की बात करें तो दशकों से पार्टी से जुड़े रहे राजनीतिक घरानों में से पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद और ललितेशपति त्रिपाठी के बाद आरपीएन सिंह तीसरे बड़े नेता हैं। इनके अलावा सिर्फ बड़े या चर्चित चेहरों की बात करें तो पूर्व सांसद अन्नू टंडन, विधायक अदिति सिंह, इमरान मसूद, पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक और पूर्व विधायक पंकज मलिक हैं। इनके अलावा करीब पंद्रह विधायक, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी छोड़ चुके हैं।
कांग्रेस में यह खलबली तब है, जबकि प्रदेश प्रभारी के रूप में खुद प्रियंका गांधी वाड्रा ने संगठन की कमान थाम रखी है। नए सिरे से संगठन को खड़ा करने के प्रयास में 2019 के बाद से लगी हैं। उल्लेखनीय है कि पार्टी में नए के मुकाबले पुराने नेताओं को तवज्जो न मिलने की शिकायत कई बार उठी, लेकिन उनकी आवाज गांधी परिवार तक पहुंची नहीं या फिर नजरअंदाज कर दी गई।
हालांकि, उलाहना यह भी दिया जा रहा है कि जब पार्टी मजबूत स्थिति में थी, केंद्र में सरकार थी, तब विरासत की राजनीति करने वाले नेताओं को दोनों हाथों से लाभ दिया गया। मान-सम्मान दिया और बड़ा ओहदा दिया। आरपीएन सिर्फ इस विधानसभा चुनाव में पार्टी के स्टार प्रचारक ही नहीं, बल्कि कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और झारखंड के प्रभारी भी थे। ललितेशपति के परदादा कमलापत त्रिपाठी प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तो जितिन प्रसाद को शुरुआत से संगठन में बड़े पद मिले और केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाए गए।
क्षेत्रीय समीकरण बिगाड़ सकते ये नेता
- जितिन प्रसाद, ललितेशपति त्रिपाठी व आरपीएन सिंह के जाने से कांग्रेस की पकड़ पूर्वांचल में और कमजोर कर सकती है।
- विधायक अदिति सिंह और राकेश सिंह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से हैं। इनके भाजपा में जाने से वहां पार्टी को झटका है।
- विधायक इमरान मसूद, नरेश सैनी, पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक, पूर्व विधायक पंकज मलिक, बंशी पहाड़िया से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समीकरण गड़बड़ा सकते हैं।
- पूर्व विधायक विनोद चतुर्वेदी बुंदेलखंड में वर्षों से कांग्रेस का चेहरा था तो उन्नाव में पूर्व सांसद अन्नू टंडन और कानपुर से राष्ट्रीय सचिव रहे राजाराम पाल का जाना नुकसानदेह हो सकता है।