अनूठी मिसाल: हिंदू न मुसलमान, इस बेटी के लिए हर कोई सिर्फ इंसान
सुल्तानपुर की रोशनी बनीं मानवता की मिसाल लावारिस शवों की वारिस बन करतीं अंतिम संस्कार।
सुल्तानपुर [संदीप अग्रहरि]। शमां जब जलती है भाईचारे की, रोशनी में मजहबी भेद नहीं होता। यहां चलती है मानवता के पुजारी की, इंसानी बैर नहीं चलता...उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में मानवता की अनूठी मिसाल देखने को मिलती है, जब एक बेटी लावारिस शवों की वारिस बन जाती है। फिर खुद अंतिम संस्कार कर उस इंसान की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करती हैं, जिनके परिवार, जाति, धर्म का पता तक नहीं होता। रोशनी के जीवन का अब यही फसलसफा बन गया है। वह अपने सहयोगियों के साथ गत वर्षो में आठ शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं।
किसी अपने की मौत इंसान को किस हद तक तोड़ देती है, उस पीड़ा को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। दो साल पहले पड़ोस में दहेज हत्या में महिला की मौत ने रोशनी तिवारी को अंदर से झकझोर दिया। महिला के ससुरालजनों ने शव को लावारिस छोड़ दिया। रोशनी से संवेदना से भर गई। उसने ठान लिया, किसी भी लावारिस के शव को फेंकने नहीं देगी। 28 सितंबर 2018 को शहर में लावारिस शव मिला तो उसका स्वयं दाह संस्कार किया। फिर यह सिलसिला चल पड़ा। अंत्येष्टि में होने वाले लकड़ी आदि का खर्च रोशनी और उनके सहयोगी विवेक शुक्ला, राजेश उपाध्याय, विजय पाठक, मोहिनी मिश्र, लक्ष्मी, अजय, मनीष मिश्र, प्रदीप मिश्र मिलकर करते हैं।
परिवार ने पहले किया विरोध फिर बढ़ाया हौसला
रोशनी कादीपुर तहसील बिजेथुआ निवासी राम मिलन तिवारी की पुत्री हैं। एमए के बाद वह बीएड कर रही हैं। मन में समाजसेवा का भाव लिए उन्होंने 12 जुलाई 2018 पंख फाउंडेशन संस्था का पंजीयन कराया। रोशनी बताती हैं, जब उन्होंने लावारिस शवों की अंत्येष्टि का विचार किया तो परिवार ने विरोध किया। समाज के भी ताने सुनने को मिले, पर वह नहीं मानीं, सहयोगियों के साथ अपने कर्तव्यपथ पर निकल पड़ीं। फिर भाई-बहनों संग अधिवक्ता पिता ने भी हौसला बढ़ाया। अब रोशनी महिलाओं के उत्थान के लिए उन्हें जागरूक भी करती हैं।