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सचिवालय कोऑपरेटिव बैंक पर रिजर्व बैंक का ताला, लेनदेन पर रोक से 10000 खातों पर संकट

बीते छह साल से लगातार नियमों के उल्लंघन और आदेशों की अवहेलना पर रिजर्व बैंक ने सचिवालय कोऑपरेटिव बैैंक के लेन-देन पर रोक लगा दी है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 11:21 PM (IST)Updated: Sat, 29 Sep 2018 08:04 AM (IST)
सचिवालय कोऑपरेटिव बैंक पर रिजर्व बैंक का ताला, लेनदेन पर रोक से 10000 खातों पर संकट
सचिवालय कोऑपरेटिव बैंक पर रिजर्व बैंक का ताला, लेनदेन पर रोक से 10000 खातों पर संकट

लखनऊ (जेएनएन)। बीते छह साल से लगातार नियमों के उल्लंघन और आदेशों की अवहेलना पर रिजर्व बैंक ने सचिवालय कोऑपरेटिव बैैंक के लेन-देन पर रोक लगा दी है। इस रोक ने बैैंक के करीब 10 हजार खातों में सचिवालय के मौजूदा और सेवानिवृत्त विशेष सचिव से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मियों तक के करीब 80 करोड़ रुपये फंसा दिए हैैं। फिलहाल वह खाते से एक हजार रुपये से अधिक रकम नहीं निकाल सकेंगे। बैैंक के सभापति धर्मेश तिवारी ने नवंबर में एजीएम कर अगले दो महीने में गतिरोध सुलझाने का दावा किया है।

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पूरे मामले की गहराई से जांच 

सचिवालय कोऑपरेटिव बैैंक के लेन-देन पर रोक लगने से सचिवालय कार्मिकों में जहां दहशत फैल गई है, वहीं सचिवालय प्रशासन में भी हड़कंप मच गया है। सचिवालय कर्मियों ने राज्य सरकार से पूरे मामले की गहराई से जांच कराने की मांग की है। कर्मचारियों का कहना है कि वर्ष 2012 में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी लल्लू सिंह के सभापति बनने के बाद से बैैंक में जो लूट का दौर शुरू हुआ, वह निवर्तमान सपा सरकार के पूरे कार्यकाल के बाद भाजपा सरकार के पहले वर्ष तक जारी रहा। इस दौरान वर्ष 2016 में रिजर्व बैैंक ने कोऑपरेटिव बैैंक के बोर्ड को भंग कर दिया था। आयकर ने भी इसी साल छापे में बड़े पैमाने पर अनियमितता के साथ हवाला की भी भारी रकम पकड़ी थी, लेकिन गड़बडिय़ां जारी रहीं।

फर्जी नियुक्तियां और बदले में वसूली 

सचिवालय कर्मियों ने बताया कि वर्ष 2012 से ही कोऑपरेटिव बैैंक में फर्जी नियुक्तियां और इसके बदले वसूली शुरू हो गई थी। इस दौरान जम कर लोन बांटे गए और इसके बदले वसूली भी की गई। बैैंक से जुड़े लोगों ने बताया कि वर्ष 2010 में लाइसेंस मिलने के बाद यह बैैंक बैैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के दायरे में आ गया था लेकिन, बैैंक पदाधिकारियों ने सचिवालय शाखा को रिजर्व बैैंक से बड़ा मानते हुए कभी एक्ट के नियमों का पालन ही नहीं किया। एक्ट के तहत रिजर्व बैैंक को हर तीन महीने में बैलेंस शीट भेजी जानी थी लेकिन, रिजर्व बैैंक की लगातार नोटिस के बाद भी कई साल तक बैलेंस शीट भेजी ही नहीं गई। इसी तरह वर्ष 2007 से अब तक बैैंक की एजीएम भी कभी नहीं बुलाई गई। बैैंक जमा रकम पर ब्याज तो दे रहा था लेकिन कभी टीडीएस भी नहीं काटा गया।

नजरंदाज करते रहे चेतावनी

सचिवालय कोऑपरेटिव बैैंक का प्रकरण बीते वर्षों में रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटी से लेकर सचिवालय प्रशासन और पुलिस तक पहुंचा, पर कहीं से भी कोई कार्रवाई न होने से बैैंक की गड़बडिय़ां बढ़ती चली गईं। रिजर्व बैैंक ने इसे लेकर छह महीने पहले चेतावनी दी थी लेकिन, इस पर भी किसी के कान नहीं खड़े हुए। आखिरकार रिजर्व बैैंक ने सख्त कदम उठाते हुए लेन-देन पर रोक लगा दी।

सबसे ज्यादा रकम बुजुर्गों की

बैैंक के खातों में सबसे ज्यादा रकम रिटायर हो चुके कार्मिकों की बताई जा रही है। कई लोगों का 50 लाख रुपये तक यहां जमा है। दूसरी तरफ बैंक के जमाकर्ताओं का कहना है जिस व्यक्ति के कारण बैैंक की यह दुर्दशा हुई है, उसे सचिवालय प्रशासन विभाग ने बिना किसी कार्रवाई के सारे भुगतानों को देते हुए बीते मार्च में सेवानिवृत्त कर दिया।

जमा 80 करोड़, दायित्व 50 करोड़ के

बैैंक के सभापति धर्मेश तिवारी का कहना है कि बैैंक के पास पर्याप्त रकम है। करीब 80 करोड़ रुपये की जमा रकम के सापेक्ष दायित्व लगभग 50 करोड़ रुपये के हैैं, इसलिए बैैंक के सामने कोई वित्तीय समस्या नहीं है। तिवारी ने बैैंक में किसी तरह के गबन की आशंका से इन्कार किया है।


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