Republic Day in Lucknow: अंग्रेजों ने धोखे से पति को किया कैद तो महारानी ने संभाली थी कमान
मेरठ से निकली चिंगारी अब आग बन चुकी थी। हर जगह युद्ध का बिगुल बज चुका था। अंग्रेजों की इस मंशा को जनता भी पहचानने लगी थी। हर कोई अंग्रेजों से लोहा लेने को बेताब था। तुलसीपुर राज्य के राजा दृगनारायण सिंह शुरू से अंग्रेजों के खिलाफ खड़े थे।
लखनऊ, जेएनएन। अपने पराक्रम से अंग्रेजों को धूल चटाने वाली महारानी ईश्वरी देवी की अमर गाथा आज भी बड़े-बड़ों के जुबान पर है। छल से पति को कैद करने के बाद महारानी ईश्वरी देवी ने अंग्रेजों से मोर्चा संभाला। उनकी बहादुरी देख हर कोई उनको तुलसीपुर की रानी लक्ष्मीबाई बुलाता था। बात उन दिनों की हैं जब अंग्रेजी हुकूमत का अत्याचार दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा था। जनता को प्रताडि़त कर गुलाम बनाया जाने लगा। जिससे राजघराना भी अछूता नहीं था। प्रताडऩा के भय से कुछ लोग समर्पण करने से अंग्रेजों का हौसला बढ़ता जा रहा था। अब बरतानियां की निगाहें तुलसीपुर की रियासत पर टिकी थीं...।
मेरठ से निकली चिंगारी अब आग बन चुकी थी। हर जगह युद्ध का बिगुल बज चुका था। अंग्रेजों की इस मंशा को जनता भी पहचानने लगी थी। हर कोई अंग्रेजों से लोहा लेने को बेताब था। तुलसीपुर राज्य के राजा दृगनारायण सिंह शुरू से अंग्रेजों के खिलाफ खड़े थे। महाराज उस समय अपने ननिहाल डोकम जिला बस्ती में थे। राजा की सेना राज्य के कमदा कोट में थी। अंग्रेज अफसर बिंग फील्ड ने वहां पहुंचकर झूठा बोला कि राजा ने हमारी अधीनता स्वीकार कर ली है। इससे निराश सेना ने हथियार डाल दिए। झूठ के सहारे सैना को अपने कब्जे में कर बिंग फील्ड ने महाराज के ननिहाल पर धावा बोलकर उन्हें बंदी बना लिया और लखनऊ के बंदीगृह में डाल दिया।
महाराज को कैद करने के बाद महारानी ईश्वरी देवी ने कमान संभाली। अंग्रेज कलेक्टर ब्यावलू इस दौरान शांति व्यवस्था के नाम पर तुलसीपुर पर अमानवीय अत्याचार करने लगा। जिससे तंग आकर महारानी समर्थक स्वतंत्रता सेनानी फजल अली ने 10 फरवरी 1857 को कमदा कोट के पास डिप्टी कमिश्नर कलील ब्यावलू का सर कलम कर अपनी स्वामी भक्ति की नजीर पेश की। डिप्टी कमिश्नर की हत्या के बाद क्षेत्र में विद्रोह शुरू हो गया, अंग्रेजों ने कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया। जिसके बाद महारानी ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा। अब अंग्रेजों के पैरों तले जमीन खिसकने लगी। इसी बीच गोंडा के राजा देवी बक्श सिंह घाघरा व सरयू के मध्य क्षेत्र मंहगपुर में चल रहे युद्ध में अंग्रेजी शासक कर्नल वाकर से पराजित हो गए। हार का सामना करने के बाद वह उतरौला के रास्ते राप्ती नदी पार कर तुलसीपुर पहुंचे, जहां उन्होंने शरण ली।
इसी तरह बेगम हजरत महल, शहजाद-ए-बिरजीस कद्र, नानाजी व बाला जी राव ने भी शरण ले रखी थी। महारानी ईश्वरी देवी अपने दुधमुंहे बच्चे के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए थीं, लेकिन शरणार्थियों को बचाने के लिए युद्ध से पीछे हटना पड़ा। बाद में वह सभी शरणार्थियों के साथ नेपाल चलीं गईं। वहां भी तुलसीपुर के नाम से नगर बसाया, जो आज दांग जिले का मुख्यालय है।