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Dussehra Special: लखनऊ में ताजिए की कारीगरी से बनता है रावण Lucknow News

लखनऊ में पांच पीढिय़ों से एक ही परिवार बना रहा रावण। चौक के नूरबाड़ी के राजू फकीरा तैयार करते हैं रावण ।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 02:37 PM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 02:37 PM (IST)
Dussehra Special: लखनऊ में ताजिए की कारीगरी से बनता है रावण Lucknow News
Dussehra Special: लखनऊ में ताजिए की कारीगरी से बनता है रावण Lucknow News

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। गोस्वामी तुलसीदास ने जब ऐशबाग में रामलीला का मंचन शुरू किया था और उस समय रावण दहन के लिए जिस परिवार ने पुतला बनाया था आज भी उसी परिवार की पांचवीं पीढ़ी उस परंपरा को आगे बढ़ा रही है। ताजिए की कारीगरी में रावण को आकार देने वाले कारीगर दिनरात मेहनत करके पुतला बनाते हैं।

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 कारीगर राजू फकीरा ने बताया कि पिता फकीरा दास, बाबा मक्का दास, दादा नरायण दास ऐशबाग की रामलीला मैदान में रावण का पुतला बनाने का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पुतले का निर्माण दादा नरायण दास के पिता ने शुरू किया था। उस समय पेड़ की पतली डालियों से रावण का निर्माण किया जाता था। उन्होंने बताया कि रावण और मेघनाद के पुतले को बनाने के लिए के वल मेहनताना लिया जाता है। बेगम हजरत महल पार्क में भी महावीर दल की ओर से आयोजित दशहरे में भी रावण बना चुके हैं। पार्क में 2009 में आखिरी रावण दहन हुआ था।

परिवार के साथ बनाते हैं पुतला 

राजू अपने भाई सुनील फकीरा और बेटा ऋषभ फकीरा के साथ रावण और मेघनाद के पुतले का निर्माण करते हैं। उन्होंने बताया कि मेरा ही परिवार मुहर्रम में ताजिया और दशहरे के लिए पुतला बनाता है। पांच पीढिय़ों से नूरबाड़ी में मुस्लिम आबादी के बीच रहते हुए ऐशबाग के रामलीला मैदान में रावण और मेघनाद के पुतले का निर्माण करते हैं। मुहर्रम के ताजिया बनाने के बाद एक माह पहले रावण का पुतला बनाना शुरू किया था। दशहरे के बाद चेहल्लुम का ताजिया बनाएंगे। उन्होंने बताया कि दस सिर वाले रावण और मेघनाथ के छोटे हिस्से घर पर ही बना लिए थे। बड़े हिस्से करीब दस दिन से रामलीला मैदान पर ही बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि  रावण और मेघनाथ के निर्माण में करीब 50 बांस लगते हैं। जिनकी पतली-पतली खप्पचियां काटी जाती हैं। उसके बाद इन खप्पचियों को तात से बांधा जाता है। 

अंतिम संस्कार की पूजा के बाद होता है दहन...

घर में रावण बनाने से पहले आस्था के देव के सामने बांस और औजारों की पूजा की जाती है, तब कार्य शुरू होता है। उसके बाद रामलीला मैदान में आकर पुतले का निर्माण शुरू करते हैं तो यहां बांस और आसन की पूजा-अर्चना होती है। रावण और मेघनाद का ढाचा तैयार होने के बाद पतंगी कागज लगाया जाता है। दशहरे के दिन करीब तीन बजे मैदान में खड़ा किया जाता है। पुतला खड़ा करने के बाद मंत्रोच्चारण के साथ रावण और मेघनाद के पुतले की अंतिम संस्कार की पूजा की जाती है। पूरा परिवार और समिति के सदस्य पुतलों से गलती के लिए क्षमा याचना भी मांगते हैं। 


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