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एक तरफ नौ डिग्री कोण पर झुका वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के पास रत्नेश्वर महादेव मंदिर

विस्तार में जाएं तो एक किंवदंती है कि इसे राजा मानसिंह की नौकरानी ने मां के दूध का कर्ज चुकाने के लिए बनवाया और मां को अच्छा नहीं लगा तो उन्होंने इसे टेढ़ा बता दिया और यह तबसे झुका है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 11:46 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 11:57 AM (IST)
एक तरफ नौ डिग्री कोण पर झुका वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के पास रत्नेश्वर महादेव मंदिर
एक तरफ नौ डिग्री कोण पर झुका वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के पास रत्नेश्वर महादेव मंदिर। फाइल

लखनऊ, राजू मिश्र। मणिकर्णिका घाट के समीप बना वाराणसी का रत्नेश्वर महादेव मंदिर अक्सर चर्चा में रहता है। विशेषता यह है कि मंदिर साल में आठ-नौ माह तक पूरी तरह गंगा जल से स्वत: अभिषेक करता है। गर्भगृह ही नहीं, इसका शिखर तक डूब जाता है। दूसरी विशेषता यह है कि पीसा की मीनार की तरह यह एक तरफ नौ डिग्री कोण पर झुका हुआ है, जबकि पीसा की मीनार केवल चार डिग्री कोण पर ही झुकी है। हाल में यह मंदिर तब चर्चा में आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्विटर चैलेंज में इस मंदिर को पहचानकर रीट्वीट किया।

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दरअसल, प्रधानमंत्री स्वयं नागर शैली में बने इस मंदिर के स्थापत्य और नौ डिग्री कोण पर बरसों से झुकाव को लेकर विस्मित रहे हैं। उन्होंने पहले भी मंदिर के फोटोग्राफ ट्वीट किए थे। शायद, इसीलिए अपने संसदीय क्षेत्र काशी की इस धरोहर को पहचानने में तनिक भी देर नहीं लगाई। लेकिन इस बार उनके ट्वीट से मंदिर को लेकर नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई। प्रश्न है कि मंदिर अपनी अनूठी स्थापत्य कला की वजह से झुकाव के बावजूद सदियों से एक जगह पर ही टिका है या इसके कुछ और कारण हैं। कई किंवदंतियां इसके निर्माण से जुड़ी हैं। कुछ इसे 19वीं सदी का बना मानते हैं तो कुछ 15वीं सदी का।

विस्तार में जाएं तो अनेक रोचक किंवदंतियां मिलेंगी जो इसके निर्माण और शाप के कारण झुकने से जुड़ी हैं।  इसे इंदौर की अहिल्या बाई की दासी रत्ना द्वारा बनवाने और अपने नाम से नामकरण करने पर अहिल्या के शाप से झुका भी बताते हैं।

यह देश किंवदंतियों का देश है, जिसमें पूरा नहीं तो अर्धसत्य तो दिख ही जाता है। प्रदेश का यह अकेला मंदिर नहीं है, जिसका गर्भगृह नदी के जल में प्लावित है। कई शिव मंदिर हैं जो नदी से दूर हैं, लेकिन उनके गर्भगृह नदी के आंतरिक स्रोत से जलाभिषेक करते हैं। लेकिन काशी का यह मंदिर अपने अस्तित्व में आज भी प्रतिष्ठित है तो दो बातें स्पष्ट हैं। एक कि इस पर विज्ञानी और एतिहासिक शोध की आवश्यकता है और इस समृद्ध ज्ञान को दुनियाभर के आध्यात्मिक व जिज्ञासु पर्यटकों तक पहुंचाने की जरूरत है। इसे पर्यटन के विस्तार के रूप में भी देखा जा सकता है।

कब मिलेगी भ्रष्ट मानसिकता से निजात : सरकार के लाख जतन के बाद भी भ्रष्टाचार का सफाया नहीं हो पा रहा। निसंदेह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार के प्रति सख्त हैं और आए दिन कड़ी कार्रवाई के मामले सामने आते रहते हैं, फिर भी भ्रष्टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा। एक मामला सुलझता है, तभी अन्य किसी मामले का जिन्न बोतल से बाहर आ जाता है। निजी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आइटीआइ) को मान्यता देने के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ। प्रशिक्षण एवं सेवायोजन निदेशालय के अधिकारियों और कर्मचारियों ने बैंक गारंटी के नाम पर नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ऐसे कई संस्थानों को मान्यता दे दी।

मुख्यमंत्री पोर्टल पर ऐसे संस्थानों की शिकायत दर्ज किए जाने के बाद जांच में 160 संस्थानों की बैंक गारंटी में गड़बड़ मिली। निदेशालय ने ऐसे संस्थानों के खिलाफ रपट कराने की शासन से अनुमति चाही है। एक तरफ मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के मसले पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रहे हैं, तो दूसरी तरफ अधिकारी-कर्मचारी गठजोड़ नियम-कायदों को धता बताकर मनमानी पर आमादा हैं।

वजह साफ है कि भ्रष्टाचार की बेल अभी भी फल-फूल रही है। ऐसा भी नहीं कि भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने वाले अधिकारियों को वेतन, सुख-सुविधा के मामले में सरकार कोई कोताही करती हो, बावजूद इसके सुविधा शुल्क उगाही की लत कुछ ऐसी है कि छूटने का नाम ही नहीं लेती। दरअसल, पिछली सरकारों में भ्रष्टाचार जिस कदर पनपा और परवान चढ़ा, योगी सरकार आने के बाद उम्मीद थी कि अब थमेगा। मुख्यमंत्री ने स्वयं भी इच्छा शक्ति दिखाई। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ निलंबन ही नहीं बल्कि बर्खास्तगी जैसी कार्रवाई भी अमल में लाई गई। चिंताजनक बात यह है कि हर बार सख्त कार्रवाई के बाद भी यह सिलसिला थमता क्यों नहीं?

[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]


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