Railway Encroachment: अवैध वेंडिंग को बढ़ावा दे रही हैं पटरियों के किनारे की बस्तियां
Railway Encroachment चाय पानी व खानपान का धंधा लंबी ट्रेनों में रहा है फल फूल। आउटर पर चढ़ते हैं और आर्डर लेकर आउटर पर ही लेते हैं उतर।
लखनऊ, जेएनएन। Railway Encroachment: पटरियों के किनारे बसी झुग्गी झोपड़ी रेलवे के राजस्व को चोट पहुंचा रही हैं। स्टेशनों पर खुले रेस्टोरेंट व स्टॉल भले बेहतर राजस्व न दे रहे हो, लेकिन ट्रेनों के स्लीपर, जनरल व थर्ड एसी कोच में खाने व पीने की सप्लाई इन्हीं झुग्गियों से होती है। पटरियों के किनारे बसे यह अस्थायी रूप से रहने वाले लंबी दूरी की ट्रेनों में अपना पूरा कारोबार चला रहे हैं। यह स्टेशन के आउटर से खाद्य सामग्री लेकर चढ़ते हैं और दूसरे स्टेशन के आउटर पर उतर लेते हैं।
हालांकि, यह धंधा वर्षों से चला आ रहा है। इससे स्टेशनों व अधिकृत वेंडर को जहां नुकसान हो रहा है वहीं ट्रेन में सफर करने वाला यात्री सस्ते के चक्कर में अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। क्योंकि यह अवैध वेंडर स्थानीय स्तर पर मिलीभगत करके यह काम कर रहे हैं। बिहार, पश्चिम बंगाल व दक्षिण से आने वाली ट्रेनों लॉक डाउन से पहले अवैध वेडिंग चल रही थी। चंद दिनों पहले रेल राजधानी के सिटी स्टेशन पर रेल आरपीएफ के इंस्पेक्टर एम ए खान के निर्देश पर वैशाली एक्सप्रेस में इसका खुलासा भी हुआ।
पकड़ा गया युवक ट्रेन में अनाधिकृत पानी की बोतले बेच रहा था। चार सौ से अधिक पानी के बोतलों की पेटी मिली थी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतनी पेटी ट्रेन में अकेले तो चढ़ाई नहीं गई होगी। पूरी ट्रेन में पानी की सप्लाई कर रहा था। रामानंद राय नाम के युवक को आरपीएफ ने रेलवे एक्ट के तहत कार्रवाई की थी। चारबाग स्टेशन से सुलतानपुर जाने वाली ट्रेनों में भी यही खेल चल रहा है।पटरियों के किनारे बसे लोग आउटर पर ट्रेन पहुंचते ही चाय व खानपान की सामग्री लेकर चढ़ते हैं। सूत्र बताते हैं कि पटरियों के किनारे रहने वाले बाहर से पंद्रह साल के किशोर इतने तेज होते हैं कि चलती ट्रेन में चढ़ना व उतरना यह आउटर पर ही सीख लेते हैं।
पहले से निर्णय होता है कौन किस कोच में चढ़ेगा
पटरियों के किनारे बसे युवकों का पहले से तय होता है कि वह एसी कोच,स्लीपर या जनरल कोच कौन देखेगा। फिर स्टेशन से ट्रेन निकलते ही आउटर पर धीमी होती है तभी यह युवक ट्रेनों में अपनी झुग्गियों से निकलकर चढ़ जाते हैं और दूसरे स्टेशन के आउटर पर उतर लेते हैं। फिर वहीं से दूसरी ट्रेन के आउटर पर चढ़ जाते हैं और अपने गंतव्य पर आ जाते हैं। यह क्रम चला करता है। हालांकि ऐसा नहीं कि इसकी जानकारी रेलवे के जिम्मेदार अफसरों को नहीं है। आरपीएफ व जीआरपी यह बात भली भांति जानती भी है। मामला बढ़ने पर या अपराध में इनकी भूमिका होने पर वर्दीधारी इन पर नकेल भी लगाते हैं।
लखनऊ से पौने तीन सौ ट्रेनों का होता है संचालन
सामान्य दिनों में चारबाग व लखनऊ जंक्शन से पौने तीन सौ ट्रेनों का संचालन होता है। मेल, एक्सप्रेस, मेमू और पैसेंजर ट्रेनें इनमें शामिल है। सिंडीकेट इनता बड़ा है कि हर झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों की ट्रेनें पहले से बटी है। यही नहीं आसपास क्षेत्रों के लोग इनकी मदद से यह कारोबार करते हैं। स्थानीय पुलिस के साथ ही आरपीएफ व जीाआरपी के जो नीचे का स्टाफ है, उसकी जानकारी में यह पूरा खेल रहता है। बाक्स आरपीएफ ने दिखाई होती इच्छाशक्ति, न होता अतिक्रमण रेल सुरक्षा बल यानी आरपीएफ ने अगर इच्छाशक्ति दिखाई होती तो उत्तर व पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल में जो पटरियों के किनारे बस्तियां हैं, वह कब की हट चुकी होती। दर्जनों डेयरियों का संचालन भी रेलवे पटरियों के किनारे हो रहा है। आरपीएफ दबाव बढ़ने पर ही चलाता है अभियान। आरपीएफ कार्रवाई करती है। समय-समय पर अतिक्रमण हटाए गए हैं। यह कहना कि कार्रवाई होती ही नहीं है गलत है।
क्या कहते हैं अफसर ?
पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल जनसंपर्क अधिकारी महेश गुप्ता के मुताबिक, रूपरेखा बना ली गई है जल्द ही अभियान चलेगा, स्थानीय पुलिस व प्रशासन भी मौजूद रहेगा। उद्देश्य रहेगा कानून व्यवस्था भी बनी रहे।