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World Puppetry Day: नौशाद की अंगुलियों से नाचती हैं लखनऊ की 350 साल पुरानी 'गुलाबो-सिताबो, बेहद रोचक है इसकी कहानी

लखनऊ की सबसे मशहूर कठपुतली कला गुलाबो-सिताबो लगभग 350 साल पुरानी है। जिसे नौशाद चलाते हैं हर साल नौशाद इसका श्रंगार करते हैं। 350 साल से गुलाबो-सिताबो की चमक फीकी नहीं पड़ी है लेकिन ये कला अब विलुप्‍ति की कगार पर है।

By Rafiya NazEdited By: Published: Sun, 21 Mar 2021 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 21 Mar 2021 06:49 PM (IST)
World Puppetry Day: नौशाद की अंगुलियों से नाचती हैं लखनऊ की 350 साल पुरानी 'गुलाबो-सिताबो, बेहद रोचक है इसकी कहानी
लखनऊ में विलुप्त होने की कगार पर आ चुकी है 350 साल पुरानी कठपुतली 'गुलाबो-सिताबो की कला।

लखनऊ [यश दीक्षित]। 350 साल पुरानी हो चुकीं लखनऊ की कठपुलती गुलाबो-सिताबो अब बेचैन रहने लगी हैं। विलुप्त होने की कगार पर आ चुकी 'गुलाबो-सिताबो को डर है कि आगे कौन उनकी देखभाल करेगा। पिछले करीब 40 वर्षों से वह मो. नौशाद की अंगुलियों से नाच रही हैं। अपनी पुश्तैनी कला को संजो कर रखे मो. नौशाद को भी अफसोस है कि उनके बाद इस कला को कोई नहीं संभालेगा।

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बेटा बन गया मोटर मैकेनिक

अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना स्टारर फिल्म गुलाबो-सिताबो में कठपुलती का खेल दिखा चुके नौशाद का कहना है कि लोग अब इस खेल में दिलचस्पी नहीं लेते हैं। यहीं कारण है कि मैंने अपने बेटे को दूसरा काम करने के लिए कहा। वह एक मोटर मकैनिक है और परिवार का खर्च भी संभाल रहा है। मैं भी हर तीसरे- चौथे दिन निकल जाता हूं किसी और खेल दिखाने, जिससे थोड़ी बहुत कमाई हो जाती है।

 

अमिताभ बच्चन ने खिलाया था खाना

नौशाद बताते हैं कि मैं फिल्म में काम करने में घबरा रहा था। यह मेरे लिए पहला मौका था जब मुझे किसी फिल्म में काम करने के लिए कहा गया था। मैंने इसके लिए साफ इनकार कर दिया था। मगर फिल्म से जुड़े लोग मुझे अमिताभ बच्चन से मिलाने ले गए। वहां बच्चन साहब ने मुझे अपने बगल में बिठाया और हालचाल पूछा। इसके बाद उन्होंने मुझे खाना भी खिलाया था।

फिल्म ने दिलाई पहचान

फिल्म से मुझे काफी पहचान मिली। कई लोग मेरे पास आए। मुझसे फिल्म में काम करने का अनुभव पूछते। कई लोग खेल देखने के उद्देश्य से आए तो कुछ केवल फोटो खिंचवाने आ जाते थे। अभी भी कई बार जब निकलता हूं तो लोग पूछ लेते हैं भईया आप ही अमिताभ बच्चन वाली फिल्म में काम किए थे क्या।

हर साल करते हैं श्रृंगार

350 साल की हो चुकीं 'गुलाबो-सिताबो का हर साल श्रृंगार किया जाता है, जिससे उनके चेहरे की चमक बरकरार रखी जा सके। इसके अलावा बीच-बीच में कपड़े भी धुले जाते हैं, जिससे वो लोगों को नई नवेली दिखाई पड़े। साथ ही इन्हें सीलन और पानी से बचा कर रखना होता है क्योंकि इसमें इनके खराब होने के ज्यादा आसार रहते हैं। इन्हें कपड़े में ठीक से लपेटकर एक बैग में रखते हैं, जिससे यह सुरक्षित रह सकें।

देवरानी जेठानी की कहानी है गुलाबो सिताबो 

दरअसल, ये कठपुतली किरदारों के नाम हैं। उत्तर प्रदेश की कला एवं संस्कृति में रची-बची गुलाबो-सिताबो की रोचक कहानी है। अतीत में ये घुमंतू जातियों के परिवार की सदस्य थीं। वे इन किरदारों के नाम से सास-बहू या ननद-भाभी के झगड़ों के किस्से सुनाते और लोगों का मनोरंजन करते थे। गुलाबो-सिताबो उनकी आजीविका का साधन भी थीं।

देश प्रेम जगाने में भी काम आती थी कठपुतलियां 

1857 के स्‍वतंत्रता संग्राम तक कठपुतलियों का इस्‍तेमाल लोगों में देश प्रेम जगाने में किया जाने लगा था। कठपुतलियों का इतिहास नवाबों के शासन काल से है। उस दौर में घुमंतु परिवार कठपुतली नृत्‍य के जरिये लोगों का मनोंरंजन करते थे। नवाब वाजिद अली शाह के शासन में पपेट शो की शुरुआत हुई थी। 


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