तैश में आकर कर बैठा हत्या, मौका मिला तो काल कोठरी में गाने लगा नगमें
वासंतिक बहार कार्यक्रम के जरिए मुखर हुई बंदियों की प्रतिभा। साबित हुआ कि हर मुजरिम में सुधार की गुंजाइश।
लखनऊ, (सौरभ शुक्ला)। मंच सजा हुआ। सकुचाता सा एक शख्स सामने आता है। गीत गाना शुरू करता है और नीरवता की एक चादर दर्शकों को अपनी आगोश में ले लेती है। आवाज ही इतनी सुरीली और दर्द भरी है। कैनवास थोड़ा बड़ा करते हैं। मंच जेल के अंदर है और यह संकोची गायक इसी जेल में हत्या की सजा काट रहा एक कैदी है। सारे दर्शक या तो इसी की तरह सजायाफ्ता मुजरिम हैं या फिर जेल के अधिकारी व कर्मचारी।
कोई स्वेच्छा से अपराधी नहीं बनता और हर मुजरिम में सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है, इस भाव को और पुष्ट करने के लिए प्रदेश के 71 जेलों में वासंतिक बहार कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। लखनऊ के आदर्श कारागार में भी कार्यक्रम हुए। इन्हीं कार्यक्रमों के तहत गिरीश ने भी गीत गाए। मंच पर उसे गाता हुआ देखकर वहां मौजूद लगभग हर शख्स संभवत: यही सोच रहा था कि भावों से भरा हुआ यह सुरीला व्यक्ति किसी की हत्या कैसे कर सकता है। क्या वजह रही होगी आखिर।
इस कार्यक्रम के बहाने ये कैदी, जो गंभीर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने के लिए सजा काट रहे हैं, इनके व्यक्तित्व का एक नया पहलू सबके सामने आया। किसी ने रंगोली बनाई, कोई क्रिकेट खेला तो किसी ने वासंतिक गीत गाए। इन्हीं कैदियों में गिरीश भी है। कभी पेशे से पत्रकार रहा गिरीश पारिवारिक रंजिश में तैश में आकर हत्या कर बैठा। केस चला। सजा हो गई। जेल की चहारदीवारी ही अब उसकी नियति थी। 14 साल अहसास-ए-गुनाह और पछतावे में जलते हुए वह गुमसुम हो गया। सलाखों के पीछे मौजूद अंधेरे एकाकीपन उसे कलम में मोक्ष नजर आया। वह लिखने लगा-
क्या ऐसा गुनहगार जीवन, केवल दुनिया में अपना ही,
जो तिल-तिल कर है जला रहा, इस जीवन का हर सपना ही।
अब सोच विचार खत्म करके, ऐसा सद्वर्षण हो जाए,
मैं भी खुश होकर घर जाऊं यह कृपा प्रभु की हो जाए।
एडीजी जेल, चंद्र प्रकाश बताते हैं कि शुरुआत में सबसे कटकर रहने वाले गिरीश में अब काफी सुधार है। उसकी कविताएं जेल में काफी प्रसिद्ध हैं। गिरीश जैसे ही कई कैदी यहां हैं जो काफी प्रतिभावान हैं और समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनने के लिए पूरी तरह योग्य हैं।
बहरहाल, कार्यक्रम खत्म हो चुका है और गिरीश वापस अपनी बैरक में गीत लिखने में लग गया है। अवसाद को उसने नकारात्मकता का कारण नहीं बनने दिया और अपने दण्ड को सृजन का आधार बनाया। जेल के अंधकार में उसने प्रकाश की एक किरण पकड़ ली और उसे उम्मीद की शक्ल दी। रचनाएं कीं। रचनाएं कर रहा है।
उसने अभी उम्मीद का छोड़ा नहीं है दामन,
कफस के अंधेरों में एक मुजरिम कलाम लिखता है।