गर्भावस्था में नार्मल से ब्लड टेस्ट से हो सकती है प्री-एक्लेम्सिया की पहचान, रिसर्च में निकले नतीजे
गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में प्री-एक्लेम्सिया की वजह से जटिलता उत्पन्न हो सकती है। शुरुआती गर्भावस्था में होने वाली एक साधारण से ब्लड टेस्ट से डॉक्टर इसका पता लगा सकते हैं। क्वीनमेरी अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ प्रो रेखा सचान की रिसर्च में ये तथ्य निकलकर आया है।
लखनऊ [राफिया नाज]। हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी गर्भावस्था में जटिल रूप ले सकती है। गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में प्री-एक्लेम्सिया की वजह से जटिलता उत्पन्न हो सकती है। समय रहते इसका मैनेजमेंट नहीं किया गया तो जच्चा-बच्चा दोनों के लिए घातक हो सकती है। वहीं गर्भावस्था के शुरुआती दिनों (फर्स्ट ट्रॉयमेस्टर) में ही होने वाले एक साधारण से ब्लड टेस्ट (सीबीसी) से डॉक्टर ये पता लगा सकते हैं कि गर्भवती को आगे चलकर प्री-एक्लेम्सिया हो सकता है या नहीं। ऐसा करने से समय रहते इस बीमारी का मैनेजमेंट किया जा सकता है और जच्चा-बच्चा दोनों के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है। ये फैक्ट्स क्वीनमेरी अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ प्रो रेखा सचान की रिसर्च में निकलकर आया है।
प्रो सचान ने वर्ष 2018 से ओपीडी में एएनसी चैकअप (20 सप्ताह की प्रेग्नेंसी) यानि शुरुआती प्रेग्नेंसी में आने वाली गर्भवतियों में ये शोध किया। लगभग 500 महिलाओं का कंप्लीट ब्लड काउंट किया गया। इसमें से 50 महिलाओं में आगे चलकर प्री-एक्लेम्शिया डेवलप हुआ। इस रिसर्च में ये तथ्य निकलकर सामने आए-
एएनसी जांच में होने वाली सीबीसी जांच में प्लेटलेट काउंट, मीन वॉल्यूम ऑफ प्लेटलेट्स व आरडीडब्ल्यू (रेड सैल डिस्ट्रीब्यूशन विर्थ) की वैल्यू को देखा गया। वे महिलाएं जिनमें आगे चलकर प्री-एक्लेम्शिया डेवलप हुआ उनका मीन प्लेटलेट वॉल्यूम बढ़ा हुआ निकला, साथ ही प्लेटलेट्स काउंट घटा हुआ निकला। वहीं आरडीडब्ल्यू हाई मिला।
आरडीडब्ल्यू को मॉस स्क्रीनिंग में इस्तेमाल किया जा सकता है
सीबीसी ब्लड टेस्ट में सीवियर प्री-एक्लेम्सिया से पीडि़त गर्भवतियों में प्लेटलेट काउंट 66.7 प्रतिशत व मीन प्लेटलेट वॉल्यूम 82.4 प्रतिशत स्पेसिफिक आया। वहीं आरडीडब्ल्यू की सेंसिटिविटी 85.3 प्रतिशत आई। आरडीडब्ल्यू टेस्ट को प्रेग्नेंसी के शुरुआती 20 हफ्तों में गर्भवतियों में प्री-एक्लेम्सिया के लिए मॉस स्क्रीनिंग मार्कर के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
एक लो ग्रेड इंफ्लामेशन डिजीज है प्री-एक्लेम्सिया
प्रो सचान ने बताया कि प्री-एक्लेम्सिया एक लो ग्रेड इंफ्लामेट्री डिजीज है। इससे गर्भवतियों के शरीर में लो ग्रेड की इंफ्लामेशन (सूजन) आ जाती है। इंफ्लामेशन में ब्लड टेस्ट करवाने में इन तीनों मार्कर, प्लेटलेट काउंट, मीन वॉल्यूम ऑफ प्लेटलेट्स व आरडीडब्ल्यू की वैल्यू में परिवर्तन मिलता है। जिससे प्री-एक्लेम्सिया का पता चल जाता है। प्लेटलेट काउंट घटना व न्यूट्रोफिल बढ़ना, न्यूट्रोफिल लिम्फोसाइट रेशो बढ़ना व आरसीडब्ल्यू का बढ़ना क्रॉनिक इंफ्लामेशन की ओर इशारा करता है। ये प्री एक्लेम्शिया की मुख्य पैथोफिजियोलॉजी है।
क्या हैं फायदे
तीनों मार्कर से गर्भवतियों में प्री-एक्लेम्सिया होगा या नहीं इसका पता लगाया जा सकता है। साथ ही प्री-एक्लेम्सिया की सीवियारिटी का भी पता चल सकता है। जिसके हिसाब से गर्भवतियों का मेडिसिन मैनेजमेंट किया जा सकता है। जिससे सुरक्षित प्रसव भी कराया जा सकता है और जच्चा -बच्चा दोनों की जान बचाई जा सकती है।
प्रो रेखा सचान की ये रिसर्च अंतरराष्ट्रीय जरनल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में प्रकाशित हो रही है।
प्री-एक्लेम्शिया के शुरू होने की पहचान
प्री-एक्लेम्शिया गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप की वजह से होने वाली एक जटिल अवस्था है। प्री-एक्लेमप्सिया आमतौर पर एक महिला में 20 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद शुरू होता है, जिसका रक्तचाप सामान्य था। यह अवस्था गर्भवती व उसके बच्चे दोनों के लिए घातक हो सकता है। अगर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित नहीं किया गया तो बच्चे की ग्रोथ रुक जाती है। वहीं डिलीवरी के समय या पहले से ही मरीज को झटके आने लगते हैं। ऐसे में जच्चा-बच्चा दोनों की जान को खतरा रहता है। इसलिए महिलाओं को हायर सेंटर में इलाज करवाना चाहिए और ब्लड प्रेशर नियमित करने की दवा लेनी चाहिए। प्री-एक्लेमप्सिया को अक्सर मेडिकल मैनेजमेंट किया जाता है जब तक कि बच्चे को प्रसव के लिए पर्याप्त रूप से डिलीवरी के लिए मैच्योर नहीं हो जाता है।
किन्हे हो सकती है समस्या
- मल्टीपल प्रेग्नेंसी
- 35 वर्ष के बाद प्रेग्नेंट होना
- किशोरावस्था में प्रेग्नेंट होना
- पहली बार प्रेग्नेंसी में
- मोटापे की वजह से
- हाई ब्लड प्रेशर की हिस्ट्री होना
- डायबिटीज की समस्या होना
- किडनी डिस्आर्डर की समस्या होना
क्या हो सकते हैं लक्षण
- लगातार सिर दर्द होना
- चेहरे और हाथ में एब्नॉर्मल स्वैलिंग होना
- पेट में ऊपर की ओर राइट साइड में दर्द होना
क्या हो सकती है जटिलता
- लो प्लेटलेट लेवल होने की वजह से ब्लीडिंग होना
- प्लेसेंटल एब्रपशन होना, प्लेसेंटा का यूटेराइन वॉल से अलग होना
- लिवर डैमेज होना
- किडनी फेलियर
- लंग्स में सूजन
- कई मामलों में जच्चा-बच्चा दोनों की मौत भी हो सकती है।