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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रतिरोध बनाम प्रतिरोधक क्षमता की राजनीति

उत्तर प्रदेश में टीकाकरण की रफ्तार देश के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में काफी तेज है। संख्या की बात करें तो राज्य में अब तक 4.75 करोड़ टीके लगाए जा चुके हैं। इसमें भी खास तौर पर जुलाई में डेढ़ करोड़ टीके लगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 11:53 AM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 11:54 AM (IST)
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रतिरोध बनाम प्रतिरोधक क्षमता की राजनीति
लखनऊ के एक नगरीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कोरोना रोधी टीका लगवाती लाभार्थी। पंकज ओझा

लखनऊ, राजू मिश्र। उत्तर प्रदेश में चुनावी हलचल धीरे-धीरे तेजी पकड़ती जा रही है। समाजवादी पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनावी यात्र पर निकल पड़े हैं तो बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के बहाने ब्राह्मणों को उनकी उपेक्षा याद दिलाने निकले हैं। कांग्रेस की प्रभारी महासचिव प्रियंका वाड्रा भी प्रदेश में संगठन को निचले स्तर पर खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं। लक्ष्य यही है कि अगले विधानसभा चुनाव में सत्ता पक्ष के प्रतिरोध की राजनीति के समीकरणों को अपने पक्ष में साधा जाए। प्रतिरोध के वह मुद्दे तलाश कर उछाले जाएं जो उसे अगले चुनाव में जाने का आत्मविश्वास दे सकें।

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वहीं दूसरी तरफ सत्ता पक्ष प्रतिरोध की इस राजनीति को ध्वस्त करने के लिए सारा ध्यान लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में लगा रही है। प्रत्यक्ष में यह प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने का उपक्रम कोरोना संक्रमण के खिलाफ है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को पता है कि कोरोना के खिलाफ यदि चुनाव से पहले वह प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने का लक्ष्य हासिल कर लेती है तो यह सियासी लड़ाई लड़ने में बड़ी कारगर साबित होगी। जुलाई महीने के टीकाकरण के आंकड़े और सीरो सर्वे के नतीजे सत्ता पक्ष को उत्साहित करने वाले हैं।

प्रदेश में सरकार कोरोना की संभावित तीसरी लहर से बचाव के वह हर उपाय कर रही है, जो उसे दूसरी लहर में सबक के रूप में मिले हैं। चाहे स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढांचा दुरुस्त करने की बात हो या इस वर्ष के खत्म होने से पहले शत प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य हासिल करने का। इस बीच सीरो सर्वे के आए नतीजे उत्तर प्रदेश के लिए काफी राहत भरे हैं। 14 जून से लेकर 16 जुलाई के बीच कराए गए सीरो सर्वे में लगभग 71 फीसद लोगों में कोरोना के खिलाफ एंटीबाडी मिली है। यह एंटीबाडी दो तरह से बनी है। एक तो उन लोगों में जो दूसरी लहर में अपनी प्रतिरोधक क्षमता से जाने-अनजाने इस महामारी की चपेट में आकर उबर गए। इसमें बड़ी तादाद 18 वर्ष से कम उम्र के उन बच्चों की भी है, जिन्हें संभावित तीसरी लहर के लिहाज से अब तक महामारी का आसान शिकार माना जा रहा था। यह आशंका पूरी तरह निर्मूल तो नहीं हुई, लेकिन जिस अनुपात में बच्चों में एंटीबाडी मिली उसी नि¨श्चतता के कारण ही उत्तर प्रदेश सरकार अब स्कूल-कालेजों को खोलने और पढ़ाई-लिखाई का सामान्य माहौल बनाने में जुटी है।

जिन लोगों में एंटी बाडी मिली है, उसका सीधा अर्थ है कि यदि तीसरी लहर व्यापक होती भी है तो इतनी आबादी के बावजूद कम से लोगों के अस्पताल पहुंचने की आशंका रहेगी और मौजूदा स्वास्थ्य ढांचा आसानी से उन्हें उपचारित कर घर भेजने के लिए सक्षम है। यानी सिर्फ 29 फीसद आबादी ही ऐसी बची है, जिसे जल्द से जल्द टीकाकरण कर कम से कम हर्ड इम्युनिटी के स्तर तक पहुंचा जा सकता है। इसीलिए सीरो सर्वे में मिली एंटी बाडी के दूसरे तरीके पर भी पूरा जोर है।

उत्तर प्रदेश में टीकाकरण की रफ्तार देश के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में काफी तेज है। संख्या की बात करें तो राज्य में अब तक 4.75 करोड़ टीके लगाए जा चुके हैं। इसमें भी खास तौर पर जुलाई में डेढ़ करोड़ टीके लगे। खुद केंद्र ने योगी सरकार द्वारा अपनाए गए क्लस्टर एप्रोच और पिंक वैक्सीनेशन बूथ की रणनीति को काफी कारगर माना है। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार जानती है कि यदि वह प्रदेश की आबादी को कोरोना के खतरे के खिलाफ टीके की ढाल (प्रतिरोधक क्षमता) मुहैया करा देती है तो बंटे और अपेक्षाकृत निष्क्रिय विपक्ष के प्रतिरोध को चुनाव में आसानी से पराजित कर सकती है।

हाई कोर्ट की जरूरी नसीहत : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शनिवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान जो नसीहत दी है, वह जरूरी और मौजूदा दौर में बेहद प्रासंगिक है। हाई कोर्ट ने कहा है कि संविधान प्रत्येक बालिग नागरिक को अपनी मर्जी से धर्म अपनाने और पसंद का विवाह करने की स्वतंत्रता देता है। इस पर कोई वैधानिक रोक नहीं है। कोर्ट ने यह नसीहत दी कि विवाह के लिए धर्म बदलना शून्य व स्वीकार्य नहीं हो सकता। कोर्ट ने याद दिलाया कि बहुसंख्यकों (बहुल नागरिकों) के धर्म बदलने से देश कमजोर होता है। साथ ही इससे विघटनकारी शक्तियों को लाभ मिलता है। इतिहास गवाह है कि हम बंटे, देश पर आक्रमण हुआ और हम गुलाम हुए।

कोर्ट ने धर्म परिवर्तन को वैधानिक मानते हुए भी जिस खतरे की ओर इशारा किया वह महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा कि घर में उपेक्षा से लोग घर छोड़ देते हैं। धर्म में सम्मान न मिलने से धर्म बदल देते हैं। लोग डर, भय, लालच में धर्म नहीं बदलते, बल्कि उपेक्षा, अपमान के कारण स्वत: धर्म परिवर्तन करते हैं। उन्हें लगता है कि दूसरे धर्म में उन्हें सम्मान मिलेगा। इसलिए धर्म के ठेकेदार जो जातीय अपमान करते हैं, अपने अंदर सुधार लाएं। कोर्ट ने एक तरह से बहुसंख्यक समाज में व्याप्त उन कुरीतियों की ओर इशारा किया है, जो दीर्घावधि में धर्म परिवर्तन का कारण बनते हैं। इतिहास का उदाहरण देकर इसमें सुधार लाने के प्रति सचेत किया है।

[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]


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