Centenary Year of Lucknow University: कैंपस के कवियों ने सुनाईं कमाल की कविताएं, तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा सभागार
लखनऊ विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के अंतिम दिन मालवीय सभागार में आयोजित लिटरेसी कार्यक्रम में विश्वविद्यालय कैंपस के कवियों द्वारा काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस आयोजन में छात्रों के साथ-साथ कुछ संकाय सदस्यों ने भी भाग लिया।
लखनऊ, जेएनएन। लखनऊ विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के अंतिम दिन, मालवीय सभागार में आयोजित लिटरेसी कार्यक्रम में विश्वविद्यालय कैंपस के कवियों द्वारा काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस आयोजन में छात्रों के साथ-साथ कुछ संकाय सदस्यों ने भी भाग लिया।
यह कार्यक्रम छात्रों के प्रदर्शन के साथ शुरू किया गया, जिसमें शिवम पहले छात्र थे जिन्होंने अपनी कविता "वक्त कम है तो चलिए शुरू की जाए" के साथ अपनी प्रस्तुति शुरू की थी और कविता "हम निरंतर चलना होगा" के साथ समाप्त हुई, जिसे उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को समर्पित किया। इसके बाद, ज्योत्सना सिंह ने "प्यासी ज़मी लहू सारा पिला दीया" और "जा रहा हूं घर दूर दुनिया से बिछड़ कर" प्रस्तुत किया। उदय राज सिंह ने "क्या पाया हमने" गाया, जबकि हर्षित मिश्रा ने "मन में अपने भांग चढ़ाये फिरते है ", "बादल बरसो ऐसे गांव में " प्रस्तुत किया। इसके बाद मृदुल पांडे ने "है बदली दिशा हवाओं में" प्रस्तुत किया। इसके बाद आलोक रंजन ने '' कवियों की वाणी में सूर्य का साथ मिले '' और '' कायम इन अंधेरों का '' का प्रदर्शन किया। रिया कुमारी ने गीत "ऐ वतन भारत हमारा, तू हमारी जान है" गाया।
शालीन सिंह ने अंग्रेजी में एक कविता प्रस्तुत की “विश्वविद्यालय 100 वर्ष पुराना है”। दिव्या तिवारी ने "यह कलमकार की दुनिया है" प्रस्तुत किया। इसके बाद, कला संकाय से जुड़े कई अन्य छात्रों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं, जिसके बाद प्रोफेसर राम सुमेर यादव, प्रोफेसर वाई पीसिंह, डॉ. कृष्ण श्रीवास्तव समेत कुछ संकाय सदस्यों ने अपनी मौलिक रचनाएं सुनाईं।
इस बीच कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय प्रोफेसर आलोक कुमार राय कार्यक्रम में शामिल हुए और इस आयोजन में भाग लेने के लिए छात्रों और संकाय सदस्यों के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने खुद भी अपनी रचना प्रस्तुत की, जो प्रसिद्ध हिंदी कवि श्री रामधारी सिंह "दिनकर" से प्रेरित थी।
डॉ. अयाज अहमद इसलाही ने अपनी स्वयं की उर्दू रचनाएं प्रस्तुत कीं- मांझी इस कश्ती के तलबगार हैं...।डॉ. विनीत कुमार वर्मा ने भी रचनाएं पढ़ीं।इसके अलावा अन्य संकाय से विद्ववत सदस्यों ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।
पूरे आयोजन का संचालन फिलॉसफी विभाग के डॉ. प्रशांत कुमार शुक्ला ने किया और इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर राकेश चंद्र और प्रोफेसर निशी पांडे ने की।