Move to Jagran APP

Lucknow University: डॉ कुमार विश्वास ने पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेई की कविताओं को आधुन‍िक अंदाज में क‍िया पेश

लविवि के 100 वें स्थापना दिवस के मौके पर सोमवार की शाम डॉ कुमार विश्वास की कविताओं से सजी। उन्होंने अपने प्रख्यात मुक्तकों के अतिरिक्त पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की कविताओं को युवाओं को आधुनिक अंदाज में पेश कर के मन मोह लिया।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 07:22 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 06:00 AM (IST)
लविवि के मुक्ताकाशी मंच पर कविताओं का दौर देर रात तक चलता रहा।

लखनऊ, जेएनएन। किसी के दिल की मायूसी जहां से होकर गुजरी है हमारी सारी चालाकी वहीं पर खोकर गुजरी है, तुम्हारी और मेरी रात में बस फर्क इतना है तुम्हारी सोकर गुजरी है हमारी रोकर गुजरी है। लविवि के 100 वें स्थापना दिवस के मौके पर सोमवार की शाम डॉ कुमार विश्वास की कविताओं से सजी। उन्होंने अपने प्रख्यात मुक्तकों के अतिरिक्त पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की कविताओं को युवाओं को आधुनिक अंदाज में पेश कर के मन मोह लिया। इस मौके पर प्रदेश के पर्यटन और संस्कृति मंत्री नीलकंठ तिवारी मुख्य अतिथि रहे। उनके साथ कुलपति प्रो आलोक कुमार राय ने कार्यक्रम की शुरुआत की। 

loksabha election banner

गोमती का मचलता ये पानी भी है , हिंद की उस ग़दर कहानी है इसमें नागर की जुबानी भी है, इस कविता के जरिये विश्वास ने लखनऊ को खुद से जोड़ा। कविताओं के बीच कुमार ने विश्वविद्यालय और अटल बिहारी बाजपेई की यादों से भी खुद को जोड़ा और अपने साथ युवाओं को झूमता हुआ पाया।

उन्होंने आगे पढा जवानी में कई गज़लें अधूरी छूट जाती हैं, मैं या तुम समझ लें इशारा कर लिया मैंने , भरोसा बस तुम्हारा था, तुम्हारा कर लिया मैंने,लहर है हौसला है, रब है हिम्मत है दुआएं हैं किनारा करने वालों से किनारा कर लिया मैंने..।

कुमार विश्वास ने आखिर में गाया अपना हस्ताक्षर गीत कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी तो बस बादल समझता है को अनेक अंदाज में गाकर लाखों तालियां बंटोरी।

75 वें स्थापना दिवस पर भी मैंने पढ़ी थी कविता

कुमार विश्वास संस्मरण सुनाया कि जब विश्वविद्यालय के 75 वर्ष पूरे हुए थे तब भी मैंने यहां कविता पढ़ी थी। यही नहीं वर्तमान मंत्री ब्रजेश पाठक के पास जब प्रिया स्कूटर थी तब मैं आता था और चारबाग के मोहन होटल में रुकता था।

केजरीवाल पर कविता से किया हमला

मुझे वो मार कर खुश है कि सारा राज उस पर है, यकीनन कल है मेरा आज बेशक आज उस पर है, उसे जिद थी झुकाओ सिर, तुझे दस्तार बख्शऊंगा , मैं अपना सिर बचा लाया, महल और ताज उस पर है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.