महाराजा सुहेलदेव की जयंती पर भव्य आयोजन करेगी योगी सरकार, पीएम नरेंद्र मोदी भी होंगे शामिल
महाराजा सुहेलदेव की जयंती पहली बार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भव्य तरीके से मनाने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 फरवरी को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बहराइच में महाराजा सुहेलदेव स्मारक और चित्तौरा झील के विकास कार्य की आधारशिला रखेंगे। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहेंगे।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। लोकगीतों की परंपरा में महाराजा सुहेलदेव की वीरगाथा रोमांचित करती रही है। अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बहराइच स्थित उनके स्मारक को आकर्षण का केंद्र भी बनाना चाहती है। यूपी सरकार सुहेलदेव स्मारक के सुंदरीकरण के साथ ही उनकी भव्य प्रतिमा लगाने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 फरवरी को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बहराइच में महाराजा सुहेलदेव स्मारक और चित्तौरा झील के विकास कार्य की आधारशिला रखेंगे। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहेंगे।
महाराजा सुहेलदेव की जयंती पहली बार योगी सरकार भव्य तरीके से मनाने जा रही है। 16 फरवरी को उनकी जयंती पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान बहराइच और श्रावस्ती के लिए कुछ बड़ी सौगातों की भी घोषणा हो सकती है। इससे चित्तौरा झील पर स्थित महाराजा सुहेलदेव की कर्मस्थली को एक अलग पहचान मिलने की उम्मीद है। इसके पहले भी महाराज सुहेलदेव के सम्मान में भाजपा सरकार डाक टिकट जारी कर चुकी है और ट्रेन चलाई गई थी। सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, प्रधानमंत्री की मंशा के अनुसार योगी आदित्यनाथ उसी के क्रम को आगे बढ़ा रहे हैं।
वीरता और राष्ट्रभक्ति की है दास्तान : इतिहासकारों के मुताबिक, वीरता, स्वाभिमान और राष्ट्रभक्ति की ऐतिहासिक घटना बहराइच में हुई थी। 15 जून, 1033 को श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव और आक्रांता सैयद सालार मसूद के बीच बहराइच के चित्तौरा झील के तट पर भयंकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध में महाराजा सुहेलदेव की सेना ने सालार मसूद की सेना को गाजर-मूली की तरह काट डाला। राजा सुहेलदेव की तलवार के एक ही वार ने मसूद का काम भी तमाम कर दिया। युद्ध की भयंकरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसमें मसूद की पूरी सेना का सफाया हो गया। एक पराक्रमी राजा होने के साथ सुहेलदेव संतों को बेहद सम्मान देते थे। वह गोरक्षक और हिंदुत्व के भी रक्षक थे।
मुनि अष्टावक्र की भी तपोस्थली : बहराइच और उसके आसपास के क्षेत्र ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बहराइच को ब्रह्मा ने बसाया था। यहां सप्तऋषि मंडल का सम्मेलन भी कराया गया था। चित्तौरा झील के तट पर त्रेता युग के मिथिला नरेश महाराजा जनक के गुरु अष्टावक्र ने तपस्या की थी।