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उप्र हिंदी संस्थान में मना फणीश्वरनाथ रेणु जन्म शताब्दी समारोह, ऑनलाइन हुआ आयोजन

उप्र हिंदी संस्थान द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु जन्म शताब्दी समारोह का ऑनलाइन आयोजन किया गया। वेबिनार में पटना से जुड़े डॉ. कलानाथ मिश्र ने कहा कि रेणु जी का रचना फलक व्यापक है। उनकी कहानियों में विराट संसार की झांकी दिखाई पड़ती है।

By Rafiya NazEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 01:50 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 01:50 PM (IST)
उप्र हिंदी संस्थान में मना फणीश्वरनाथ रेणु जन्म शताब्दी समारोह, ऑनलाइन हुआ आयोजन
उप्र हिंदी संस्थान में मनाया गया फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म शताब्दी समारोह, ऑनलाइन किया गया आयोजन।

लखनऊ, जेएनएन। उप्र हिंदी संस्थान द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु जन्म शताब्दी समारोह का ऑनलाइन आयोजन किया गया। वेबिनार में पटना से जुड़े डॉ. कलानाथ मिश्र ने कहा कि रेणु जी का रचना फलक व्यापक है। उनकी कहानियों में विराट संसार की झांकी दिखाई पड़ती है। वे अपनी रचनाओं में स्वयं को खोजते हैं। रेणु के उपन्यासों में ग्रामीण अंचल का जीवन परिलक्षित होता है। मैला आंचल जनमानस से जुड़ा उपन्यास है, जिसमें लोक गीतों के माध्यम से सहजता से विषय को समझा जा सकता है। लोकगीतों में जीवन मूर्त रूप पाता है। समाज को जानने के लिए साहित्य में गोता लगाना होता है।

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रेणु की रचनाओं में पात्र कथानक के अनुकूल हैं। मैला आंचल को आंचलिक उपन्यासों में सर्वश्रेष्ठ स्थान मिला कपिलवस्तु से डॉ. हरीश कुमार शर्मा ने रेणु की कहानियाें पर कहा कि रेणु जी अंचल को देखने की अनूठी शैली के कारण जाने जाते हैं। उनकी रचनाएं पाठक का ध्यान केंद्रित करने में सक्षम हैं। मनुष्य लोक संस्कृति उनका आदर्श था। वे आमजन के जीवन के रस की खोज करते हैं और उनको अपनी रचनाओं में रचते हैं। वे साम्यवादी व्यवस्था की आलोचना अपनी कहानियों में करते हैं। वे बड़े रचनाकार इसलिए हैं कि वे समाज के हर वर्ग को रचनाओं में समाहित करते हैं। उनकी कहानियाें के विषय विविध हैं, अंध विश्वास की आलोचना करते है, चोट करते हैं। रेणु को पढ़ने के लिए हमें पूर्वाग्रह से दूर रहना होगा।  कहानियों में स्त्रियां, पुरुषों  से ज्यादा मुखर दिखती हैं।

प्रयाग राज से डाॅ योगेंद्र प्रताप सिंह ने गद्य पर विचार व्यक्त करते हुए कहा, रेणु जी का कथेत्तर गद्य की प्रेरणा अकाल रहा है। रेणु ऐसे रचनाकार हैं, जिनकी भाषा पाठकाें को अभिभूत करती है। पाठक स्वत: पढ़ने के लिए खिंचा चला आता है। कथेत्तर गद्य को सृजनात्मक गद्य की संज्ञा दी गई है। कथेत्तर गद्य की अपनी अलग विशिष्टता है। कथेत्तर गद्य में रेणु जी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। रेणु जी आंचलिक कथाकार के रूप में प्रसिद्धि पाते हैं। आंचलिकता उनकी विशेषता रही, लेकिन उनकी रिपोर्ताज में किया गया कार्य कम सराहनीय नहीं है। उनके उपन्यासाें में रिपोर्ताज का कोलाज दिखाई पड़ता है। उनकी रचनाएं लोगाें के हृदय में सहजता से उतर जाती हैं। उनकी रचनाओं में सामाजिक परिवेश का समुचित चित्रण मिलता है। रेणु की रचनाधर्मिता साहित्य को सर्वोच्चता प्रदान करने में सक्षम है। रेणु की रचनाएं मानव मन की संवेदना को अभिव्यक्ति करते में पूर्णतया सक्षम हैं। वक्ताओं का स्वागत हिंदी संस्थान के निदेशक श्रीकांत मिश्रा और संचालन हिंदी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे ने किया।

संवादों के साथ परिवेश को पकड़ा

अध्यक्षीय संबोधन में हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सदानन्द प्रसाद गुप्त ने कहा कि रेणु जी आत्मीय रचनाकार लगते हैं। उन्हें संगीत व लोक गीताें का काफी ज्ञान था। मैला आंचल में संवादाें के साथ परिवेश को पकड़ा है। रेणु जी ने शब्दाें के माध्यम से कहानियाें, उपन्यासाें में जीवतंतता प्रदान की। ऋणजल धनजल का कथेत्तर गद्य में महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी रचनाओं में मुहावराें व लोकोक्तियाें का अधिक प्रयोग हुआ है। प्रादेशिक भाषा में इतना भाव भर देना रेणु जी की सफलता है। उनकी रचनाओं में प्रयुक्त शब्द सामाजिक बोध पैदा करते हैं। अंचल भाषा का प्रयोग कथा को रोचक बना देता है। वे पात्रों के साथ एकाकार हो जाते हैं। बड़ा रचनाकार वह होता है जो, किसी का अनुकरण नहीं करता है।


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