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अब घर बैठे हो सकेगी डायलिसिस, जानिए क्या है पेरीटोनियल डायलिसिस तकनीक Lucknow News

ट्रांसप्लांट तक मरीजों की किडनी को सुरक्षित रखेगी पेरीटोनियल डायलिसिस। एसपीजीआइ के प्रो. नारायण प्रसाद के प्रयास से शामिल हुई नई डायलिसिस तकनीक।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 09:22 AM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 11:59 AM (IST)
अब घर बैठे हो सकेगी डायलिसिस, जानिए क्या है पेरीटोनियल डायलिसिस तकनीक Lucknow News
अब घर बैठे हो सकेगी डायलिसिस, जानिए क्या है पेरीटोनियल डायलिसिस तकनीक Lucknow News

लखनऊ [कुमार संजय]। नेशनल डायलिसिस प्रोग्राम के तहत देश के हर जिले में मुफ्त डायलिसिस के लिए प्रधानमंत्री नेशनल डायलिसिस योजना चलाई जा रही है। इसमें केवल हीमोडायलिसिस की व्यवस्था थ्रीपी मॉडल पर की गई है। संजय गांधी पीजीआइ के गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. नारायण प्रसाद ने नेशनल हेल्थ मिशन को पेरीटोनियल डायलिसिस प्रोग्राम को नेशनल डायलिसिस प्रोग्राम में शामिल करने की सिफारिश की थी। मिशन के अधिकारियों ने इसे शामिल करने के साथ ही प्रो. नारायण को मुख्य संचालन समिति में सलाहकार के रूप भी शामिल किया है। 

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प्रो. नारायण ने मिशन को बताया कि कैसे इसे लागू करना है और इसके क्या फायदे है। देखा गया है कि इस तकनीक से डायलिसिस पर रहने वाले किडनी के मरीज 10 साल से अधिक समय तक बढिय़ा जिंदगी जीते हैं और अपने रोजमर्रा के काम भी करते हैं। 

हर साल 2.2 लाख नए हो रहे हैं इंड स्टेज रीनल डिजीज के शिकार

हर साल इंड स्टेज रीनल डिजीज के 2.2 लाख नए मरीज शिकार होते हैं। इनमें किडनी ट्रांसप्लांट ही अंतिम उपचार है। इन लोगों को ट्रांसप्लांट तक ठीक रखने या जिनमें ट्रांसप्लांट संभव नहीं है उन्हें ठीक रखने के लिए डायलिसिस की जरूरत होती है। इन्हें फ्री डायलिसिस सुविधा देने के लिए देश के 444 जिलों के 765 केंद्रों पर 4,471 मशीन से हीमोडायलिसिस सुविधा दी जा रही है। इसके लिए मरीज को हफ्ते में दो से तीन बार डायलिसिस सेंटर पर आना होता है, लेकिन पेरीटोनियल डायलिसिस में घर पर ही डायलिसिस करना संभव होगा। 

क्या है पेरीटोनियल डायलसिस

इस प्रकार की डायलिसिस में अनेक छेदों वाली नली सीएपीडी कैथेटर को पेट में नाभि के नीचे छोटा चीरा लगाकर रखा जाता है। सीएपीडी कैथेटर इस प्रक्रिया को शुरू करने से 10 से 14 दिन पहले पेट के अंदर डाला जाता है। यह नली सिलिकॉन जैसे विशेष पदार्थ की बनी होती है। इस नली द्वारा दिन में तीन से चार बार दो लिटर डायलिसिस द्रव पेट में डाला जाता है और निश्चित घंटों के बाद उस द्रव को बाहर निकाला जाता है। डायलिसिस के लिए प्लास्टिक की नरम थैली में रखा दो लिटर द्रव पेट में डालने के बाद खाली थैली कमर में पट्टे के साथ बांधकर आराम से घूमा-फिरा जा सकता है।


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