फिल्म फेस्टिवल का समापन: चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश.
प्रख्यात गजलकार जगजीत सिंह की बायोपिक कागज की कश्ती से फिल्म फेस्टिवल का समापन।
लखनऊ[जुनैद अहमद]। मशहूर गजलों के सौदागर जगजीत सिंह अभी भी हमारे बीच जिंदा हैं। वह जितने उम्दा गायक थे, उतने ही शानदार इंसान थे। तमाम गम अपने अंदर छुपाए हुए वह पूरी उम्र जिंदादिली से जीये। उनके इन्हीं यादगार लम्हों को पर्दे पर देखकर दर्शकों की आखें नम हो गईं। उनकी संगीत के प्रति दीवानगी और प्रतिभा के पीछे की मेहनत देखकर सभी ने खड़े होकर खूब तालिया बजाईं। जागरण फिल्म फेस्टिवल के अंतिम दिन आखिरी सेशन में गजलकार जगजीत सिंह की बायोपिक में लोगों को उनके जीवन के कई पहलुओं को जानने का मौका मिला। रविवार को आखिरी सेशन में चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश., ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो., प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है. जैसी गजलें गाने वाले जगजीत सिंह की बायोपिक देख रहे दर्शकों ने उनका संगीत के प्रति समर्पण देख कर खूब तालिया बजाईं। हॉल में बैठे लोगों को देखकर लगा जैसे जगजीत सिंह लाइव गा रहे हैं, जब-जब उनकी गजलें या उनके निजी जिंदगी के किस्से सुनाई देते, दर्शक खड़े होकर तालिया बजाकर अभिवादन करते। साथी कलाकारों की मदद की बात हो या फिर अजनबी लोगों का जिम्मा, जगजीत सिंह किसी को जता कर सामाजिक कार्य नहीं करते। फिल्म में उनकी पत्नी चित्र सिंह ने बताया कि जगजीत हमेशा कहते थे कि हमारा क्या है जो हम किसी को देकर जाएंगे। उनके बेटे का एक्सीडेंट हो या बेटी का मौत गम, जगजीत सिंह ने कभी भी किसी के सामने दुख जाहिर नहीं किया। वह अकेले में रोते, जिसकी खबर कुछ चुनिंदा लोगों को होती थी। दुनिया में वे अपनी गजलों के अलावा अपने व्यवहार के कारण मशहूर थे। पंजाब से मुंबई तक के सफर को पर्दे पर उनके रिश्तेदारों, दोस्तों व साथी कलाकारों के माध्यम से दिखाकर निर्देशक ने सभी दर्शकों सराहना बटोरी। फिल्म में गीतकार गुलजार, गायक हंसराज हंस, तबला वादक जाकिर हुसैन, गजल गायक उस्ताद गुलाम अली, निर्देशक महेश भट्ट, सुभाष घई, गायक हंसराज हंस, गजलकार तलत अजीज, गायक अनूप जलोटा, अभिनेत्री अमीशा पटेल समेत उनके ग्रुप के कई कलाकारों के संस्मरणों को समेटा गया है। फिल्म का निर्देशन ब्रह्मनंद सिंह ने किया।
शुक्रिया जेएफएफ : - अभिनेता कपिल तिलहरी ने बताया कि इस बार का फिल्म फेस्टिवल बहुत शानदार रहा। तीनों दिन अलग तरह का सिनेमा देखने को मिला। अब अगले फिल्म फेस्टिवल का इंतजार रहेगा। - रंगकर्मी रचना भटनागर का कहना है कि जेएफएफ में गंभीर फिल्में देखने को मिली। बहुत सी ऐसी फिल्में देखने को मिली, जिसके बारे में सिर्फ सुना था। इसके लिए दैनिक जागरण को शुक्रिया। - कास्टिंग डायरेक्टर विवेक यादव ने बताया कि सिनेमा कई प्रकार के होते है, लेकिन सभी में एक बात कॉमन होती है, उनमें किरदार होते हैं। यहा पर जितनी भी फिल्में दिखाई गई सभी के किरदार लाजवाब थे। - अभिनेता ज्ञानेश कमल का कहना है कि मैंने छोटे शहर से मुंबई तक का सफर तय किया। सिनेमा से बहुत प्यार है। इस फिल्म फेस्टिवल में जो दिखाया गया, वह काबिले तारीफ है। कबूल को दर्शकों ने किया कुबूल:
शेक्सपियर की रचना मैकबेथ के सिनेमाई रूपातरण हो, विशाल भारद्वाज का निर्देशन और पंकज कपूर, इरफान खान, पीयूष मिश्र, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी जैसे मंझे हुए अभिनेताओं का सशक्त अभिनय हो तो समा यूं ही बंध जाता है। फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन फिल्म मकबूल को दर्शकों का प्यार मिला। मैकबेथ की भव्यता को विशाल ने जिस खूबसूरती से फिल्म में मकबूल के किरदार में उतारा है, प्रशसनीय है। उपन्यास में जो तीन चुड़ैलें मैकबेथ को भविष्यवाणिया सुनाते हुए कहानी की दशा-दिशा तय करती हैं, फिल्म में वह काम नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी करते हैं। फिल्म का सबसे आकर्षक पहलू अभिनेताओं की संवाद अदायगी रही। जब कलाकार परिवक्व हों तो डायलॉग डिलिवरी बेहतरीन होना लाजमी था।