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रेडिकल हिस्ट्रेक्टोमी कर बचाई जच्चा-बच्चा की जान

- गर्भाशय के मुंह के कैंसर से पीड़ित थी महिला - दुर्लभ मामले में की गई रेडिकल हिस्ट्रे

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Feb 2018 06:51 PM (IST)Updated: Sat, 17 Feb 2018 06:51 PM (IST)
रेडिकल हिस्ट्रेक्टोमी कर बचाई जच्चा-बच्चा की जान
रेडिकल हिस्ट्रेक्टोमी कर बचाई जच्चा-बच्चा की जान

- गर्भाशय के मुंह के कैंसर से पीड़ित थी महिला

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- क्वीन मेरी अस्पताल की चिकित्सक ने की सफल सर्जरी

जागरण संवाददाता, लखनऊ : क्वीन मेरी अस्पताल में गर्भाशय के मुंह के कैंसर से पीड़ित गर्भवती की न केवल जान बचाई गई बल्कि जटिल ऑपरेशन करके बच्चे की भी जान बचाई गई। महिला की साधारण हिस्ट्रेक्टोमी (बच्चेदानी के ऑपरेशन) से अलग रेडिकल हिस्ट्रेक्टोमी की गई। इस तरह के केस मेडिकल हिस्ट्री में काफी दुर्लभ माने गए हैं जब ऑपरेशन करके बच्चे को भी बचाया गया हो। क्वीन मेरी अस्पताल की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एसपी जैसवार ने महिला को नया जीवनदान दिया। सर्जरी के बाद महिला की हालत सामान्य है और उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है।

बहराइच निवासी 25 वर्षीय गर्भवती क्वीन मेरी अस्पताल की ओपीडी में रक्तस्राव की शिकायत के साथ दिखाने आई थी। इलाज कर रही डॉ.एसपी जैसवार ने शुरुआती जांच में बच्चेदानी में कुछ एब्नॉर्मलिटी पाई। इसके बाद उसकी जांच की गई महिला को सात माह की प्रेग्नेंसी भी थी। ऐसे में जच्चा-बच्चा दोनों की जान को खतरा था।

बहुत कम होते हैं प्रेग्नेंसी के मामले

डॉ.जैसवार ने बताया कि अधिकतर स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा यानी बच्चेदानी के मुंह के कैंसर में ऑपरेशन करना आसान होता है। इसमें बच्चेदानी को आसानी से निकाला जा सकता है, लेकिन इस मामले में महिला को सात माह की प्रेग्नेंसी थी। इसलिए उसका ऑपरेशन नहीं किया जा सकता था। हमारी कोशिश थी कि जच्चा-बच्चा दोनों को बचाया जाए। इसलिए हमने महिला को दवाएं दी और ओपीडी में लगातार दिखाने को कहा। आठ माह की प्रेग्नेंसी होने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कर दिया।

बच्चे के फेफडे़ मजबूत करने की दी दवा

महिला को कैंसर था इसलिए उसका एक-एक दिन बहुत ज्यादा मायने रखता था। एक माह के समय में भी कैंसर बहुत ज्यादा फैल सकता था। वहीं ऑपरेशन के लिए बच्चे के फेफड़े मजबूत करने की जरूरत थी। इसलिए हमने उसे फेफडे़ मजबूत करने के इंजेक्शन लगाए। एमआरआइ जांच करके देखा कि बच्चा सही स्थिति में है। इसके बाद 34 सप्ताह में ऑपरेशन प्लान किया।

बच्चेदानी के आसपास की नसों से रोका खून

डॉ.जैसवार ने बताया कि सिजेरियन करके पहले बच्चे को निकाला गया। इसके बाद महिला की रेडिकल हिस्ट्रेक्टोमी की गई, जिसमें बच्चेदानी और आसपास के टिश्यू, लिम्फ और वैजाइना के कुछ हिस्से को निकाला गया। यह एक बड़ी जटिल सर्जरी थी, ऑपरेशन में ब्लड लॉस ज्यादा न हो इसके लिए बच्चेदानी के आसपास की नसों से ब्लड सप्लाई रोकी गई। इसके बाद ऑपरेशन किया गया।

अंडाशय को बचाया गया

डॉ.जैसवार ने बताया कि ऑपरेशन में महिला के अंडाशय को बचा लिया गया है। उसे अंदर की तरफ कर दिया है। बाकी पार्ट में आगे उसे रेडियोथेरेपीकरवानी है जो कि हिस्टोपैथोलॉजी की रिपोर्ट आने की बात तय की जाएगी। ऑपरेशन की टीम में डॉ.एसपी जैसवार, डॉ.मोनिका, एनिस्थिसिया से डॉ.अहसान सिद्दीकी मौजूद रहे।

क्या होते हैं लक्षण

डॉ.जैसवार ने बताया कि शादीशुदा महिलाओं को अनियमित माहवारी, बदबूदार पानी आए, इंटरकोर्स के बाद ब्लीडिंग या डिस्चार्ज हो तो तुरंत स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। वहीं फर्टाइल पीरियड में महिलाओं को तीन साल में एक बार पैपस्मीयर की जांच। इसके बाद काल्पोस्कोपी और एलबीसी सबसे अंत में सर्वाइकल बॉयोप्सी करवानी चाहिए। क्वीन मेरी अस्तपाल में आने वाली महिलाओं की रूटीन में पैपस्मीयर होता है।

कारण : जल्दी शादी, मल्टीपल पार्टनर, साफ-सफाई की कमी, एचपीवी इंफेक्शन आदि है।

बचाव : नौ से 14 वर्ष की आयु में एचपीवी वैक्सीन लगवाए। वहीं 30 वर्ष की आयु तक भी एचपीवी की डोज लगवाई जाए। सबसे ज्यादा जरूरी यह बात है कि शादी से पहले महिलाओं को एचपीवी वैक्सीनेशन करवा लेना चाहिए।


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