वेंटीलेटर पर आदेश, केजीएमयू के सामने अतिक्रमण-अस्पताल पहुंचना मुश्किल
दुकानों और अतिक्रमण के चलते अस्पताल पहुंचना मुश्किल। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करवाने में हाफ रहा प्रशासन।
लखनऊ[आशीष त्रिवेदी]। केजीएमयू के बाहर अतिक्रमण के कारण मरीजों की जान सासत में रहती है। ट्रॉमा सेंटर, शताब्दी हास्पिटल और लारी कार्डियोलॉजी के बाहर प्राइवेट एंबुलेंस, ई रिक्शा, खानपान का सामान बेचने वाली दुकानें और ठेले के कारण इलाज करवाने आ रहे मरीजों की सास फूल जाती है। अस्पताल के बाहर नगर निगम द्वारा लगाए गए नो वेंडिंग जोन के साइन बोर्ड नियमों को मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं। यह हाल तब है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अस्पतालों के बाहर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं और मंडलायुक्त आदेश भी दे चुके हैं, लेकिन सब फाइलों में ही कैद है।
केजीएमयू के कन्वेंशन सेंटर के पास से ही बाहर रोड पर अतिक्रमण की शुरुआत हो जाती है। टैम्पो स्टैंड के चलते अराजकता हैं। आगे शताब्दी हास्पिटल के बाहर प्राइवेट एंबुलेंस, ई रिक्शे की लंबी कतारें रहती हैं और उसके बीच में पान, चाय, खान-पान की दुकानें व ठेले सड़क घेरे हुए हैं। ट्रॉमा सेंटर और सामने लारी कार्डियोलॉजी के दोनों गेट के पास अतिक्त्रमण है। केजीएमयू के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. एसएन शखवार कहते हैं कि जिला प्रशासन व नगर निगम को कई पत्र लिख चुके हैं लेकिन जब कोई वीआइपी मूवमेंट यहा होता है तभी अतिक्त्रमण हटता है। क्वीन मेरी अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक प्रो. एसपी जैसवार कहती हैं कि वह भी कई बार पत्र लिख चुकी हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
आदेश को दबाकर बैठा जिला प्रशासन:
बीते माह ही शासन ने जिला प्रशासन को पत्र लिखकर अस्पतालों के सामने से अतिक्त्रमण हटाने के निर्देश दिए थे। गत सप्ताह मंडलायुक्त अनिल कुमार गर्ग ने भी अस्पतालों के बाहर से अवैध पार्किंग हटाने को कहा था, लेकिन अब तक अधिकारी सो रहे हैं। इस बारे में एडीएम पश्चिमी संतोष कुमार वैश्य का कहना है कि नगर निगम और यातायात पुलिस को इस बारे में निर्देशित करूंगा।
जिजीविषा की परीक्षा:
यह दृश्य केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर के सामने का है। यहा पूरे प्रदेश से आने वाले मरीजों लिए सिर्फ बीमारी से लड़ना ही इकलौता मसला नहीं। प्रशासन ने इनकी जिजीविषा परखने के पूरे इंतजाम कर रखे हैं। अतिक्रमण और निरंतर बने रहने वाले जाम के बीच से इस तरह मरीजों को प्रतिदिन निकाला जाता है। बदहवास तीमारदारों को देखकर राहगीर निराशा में सिर तो हिलाते हैं, लेकिन वह भी क्या करे, समस्या का कोई हल निकलता नहीं दिखता।