Pandit Birju Maharaj: पंडित बिरजू महाराज लखनऊ में रहकर सिखाना चाहते थे कथक, जानें- इतिहास
Pandit Birju Maharaj पंडित बिरजू महाराज ने कथक की एक ऐसी शैली विकसित की है जिसमें तांडव की प्रखरता और लास्य की काेमलता दोनों का सुंदर समावेश है। किशोरावस्था में वह लखनऊ से दिल्ली तो पहुंच गए लेकिन हमेशा अपने शहर के ही होकर रहे।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। पंडित बिरजू महाराज ने कथक की एक ऐसी शैली विकसित की है, जिसमें तांडव की प्रखरता और लास्य की काेमलता दोनों का सुंदर समावेश है। किशोरावस्था में वह लखनऊ से दिल्ली तो पहुंच गए, लेकिन हमेशा अपने शहर के ही होकर रहे। वह कहते भी थे कि दिल्ली में रहते हुए भले ही लंबा समय बीता है, लेकिन आज भी मेरे मुंह से यही निकलता है कि मैं लखनऊ का हूं।
वह अपनी विशिष्ट कथक शैली का श्रेय अपने परिवार की नृत्य परंपरा और लखनऊ को देना नहीं भूलते थे कभी। हाल ही में लखनऊ आए पंडित बिरजू महाराज को उप्र संगीत नाटक अकादमी में सम्मानित किया गया था। इस मौके पर उन्होंने कहा था कि मजबूरी में दिल्ली में फंसा हूं, लखनऊ में कथक सिखाना चाहता हूं। कथक में लखनऊ की वर्तमान पहचान से असंतुष्ट हूं।
कोविड के बाद पहली यात्रा की शुरुआत के लिए उन्होंने लखनऊ काे चुना था। तब उन्होंने कहा था तय था कि पहले लखनऊ ही आऊंगा। कोरोना में मैं लंबे समय से घर से नहीं निकल सका था, लेकिन मन में इच्छा थी कि जब भी घर से निकलूंगा, सामान्य जिंदगी की तरफ नया कदम बढ़ाऊंगा, उसकी शुरुआत लखनऊ से ही होगी। मैं लखनऊ में जन्मा हूं, यहीं खेला हूं, उसी कालका बिंदादिन ड्योढ़ी पर जहां आज कथक संग्रहालय बन गया है। कई यादें आज भी बनी हुई हैं।
जब भी इस भूमि पर आता हूं, प्रणाम करता हूं कि मैं लखनऊ अपने घर आ गया हूं। मैं मजबूरी में दिल्ली में फंसा हूं। उन्होंने कहा था कि कोरोना के कारण डेढ़ साल से मेरी यात्राएं बंद थीं। लखनऊ से शुरुआत हो गई है, अब आगे भी यात्राएं चलती रहेंगी। किसे मालूम था कि वह महाराज जी की अंतिम लखनऊ यात्रा होगी।