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तारिक फतेह ने बयां की CAA के विरोध की सच्‍चाई, कहा-लोगों में बढ़ रही मुस्लिमों के प्रति नफरत

डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में शामिल होने आए पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक व मशहूर विचारक तारिक फतेह से खास बातचीत।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 07:41 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 08:25 AM (IST)
तारिक फतेह ने बयां की CAA के विरोध की सच्‍चाई, कहा-लोगों में बढ़ रही मुस्लिमों के प्रति नफरत
तारिक फतेह ने बयां की CAA के विरोध की सच्‍चाई, कहा-लोगों में बढ़ रही मुस्लिमों के प्रति नफरत

अयोध्या, जेएनएन। पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक व मशहूर विचारक तारिक फतेह की टिप्पणियां पाकिस्तान की नींद उड़ा देती हैं। इस्लामिक अतिवाद व परंपरा के खिलाफ उनके शब्द ही उनकी पहचान हैं। कट्टरपंथियों के निशाने पर रहने वाले तारिक अपनी मातृभूमि पाकिस्तान को नहीं, बल्कि पंजाब को मानते हैं। सीएए पर चल रहे आंदोलन के पीछे वे उन लोगों को बताते हैं, जो पश्चिम बंगाल को मुस्लिम बाहुल्य राज्य बनाना चाहते हैं और उनकी मदद नॉन बंगाली-बांग्ला स्पीकिंग मुस्लिम कर रहे हैं, जो नहीं चाहते कि बांग्लादेश से कोई भी हिंदू पश्चिम बंगाल में आकर बसे। वे यहां तक कहते हैं कि इसी रुख की वजह से लोगों में मुस्लिमों के प्रति नफरत भी बढ़ रही है। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के संत कबीर सभागार में श्रीराम-वैश्विक सुशासन के प्रणेता विषय पर आयोजित संगोष्ठी में शामिल होने आए तारिक से नवनीत श्रीवास्तव ने सीएए के साथ ही तमाम विषयों पर बात की। प्रस्तुत हैं वार्ता के प्रमुख अंश-

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सवाल: सीएए को लेकर हो रहे प्रदर्शनों की वजह आप क्या मानते हैं?

जवाब: ये सारा सिलसिला पश्चिम बंगाल का है। पश्चिम बंगाल में नॉन बंगाली-बांग्ला स्पीकिंग मुस्लिम काफी संख्या में हैं। ये लोग वर्षों से पश्चिम बंगाल को मुस्लिम बाहुल्य राज्य बनाने का सपना पाले हुए हैं। जब सीएए आया तो इन्हीं लोगों का पश्चिम बंगाल को मुस्लिम बाहुल्य राज्य बनाने का सपना टूटा और इन्होंने ही विरोध शुरू किया। इसे ऐसे भी समझिए कि पश्चिम बंगाल में 1971 के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी हिंदू आए। वे 20-30 साल से वहां रह रहे हैं, लेकिन नागरिक नहीं हैं। जब सीएए से यह तय हो गया कि 2015 से पहले आए हिंदुओं को नागरिकता मिलेगी, तो इन्हीं नॉन बंगाली-बांग्ला स्पीकिंग मुस्लिमों ने इसका विरोध शुरू किया। इन्हीं नॉन बंगाली-बांग्ला स्पीकिंग मुस्लिमों को ये लगा कि यदि बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता मिली तो उनका अपना वोट बैंक कम पड़ जाएगा और पश्चिम बंगाल को मुस्लिम बाहुल्य राज्य बनाने का सपना भी टूट जाएगा। इसीलिए इसका विरोध हो रहा है।

सवाल: आंदोलन तो दिल्ली और लखनऊ तक में हो रहे हैं?

जवाब: देखिए, ये ध्यान देने की जरूरत है कि दिल्ली में ये आंदोलन जामिया मिलिया से शुरू हुआ, जेएनयू से नहीं। जामिया का छात्र किस आधार पर इस आंदोलन में शामिल हुआ, ये सोचना चाहिए, क्योंकि कागज में तो कोई दिक्कत नहीं है। सीएए से किसी की नागरिकता नहीं जा रही और ये बात खुद मुस्लिम भी जानते हैं। पर वर्षों से पश्चिम बंगाल को मुस्लिम बाहुल्य राज्य बनाने जो सपना था वो सीएए से टूट गया है। इसीलिए इसका विरोध जामिया से शुरू हुआ, जो खुद धर्म के नाम पर बना विश्वविद्यालय है। ये इस्लामिक राज्यवाद की बीमारी से ग्रसित लोग हैं और ये एक तरह की मानसिक बीमारी है।

सवाल: पर अब तो महिलाओं ने आंदोलन की कमान संभाल ली है?

जवाब: आप बताइये यदि ये धर्मनिरपेक्ष लोग हैं तो इनका नारा ला इलाहा इल्लल्लाह क्यों है? ये बात समझने की आवश्यकता है। कश्मीर का मामला खत्म होने के बाद पश्चिम बंगाल की बेचैनी ज्यादा बढ़ गई और सीएए बना तो इन लोगों की हकीकत भी खुलकर सामने आ गई। दूसरी बात, मुस्लिम औरतों को ज्यादती सहन करनी पड़ती है। उन्हें रटे रटाए नारे के साथ आंदोलन में उतारा गया।

सवाल: पर ये भ्रम दूर कैसे होगा?

जवाब : इस भ्रम को दूर करने के लिए कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। ये आंदोलनकारी भी अच्छी तरह जानते हैं कि सीएए से उनकी नागरिकता नहीं जाएगी। ये खुद ब खुद आंदोलन खत्म करने को मजबूर होंगे। एक मुस्लिम होने के नाते मुझे दुख ये है कि ये लोग अपनी जिद के चक्कर में अपनी अगली पीढ़ी का भविष्य भी बर्बाद कर रहे हैं। लोगों में मुसलमानों के प्रति नफरत बढ़ती जा रही है। ये नफरत किसी हिंदू के कहने से नहीं बढ़ रही, बल्कि इनकी खुद की करनी से बढ़ रही है।

सवाल: रामजन्मभूमि पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कैसे देखते हैं?

जवाब: मैं मानता हूं कि ये ऊपर वाले का फैसला है और सबक भी कि आइंदा किसी मंदिर या गिरिजाघर को तोड़कर मस्जिद बनाने की जुर्रत न हो। आवश्यकता इस बात की भी है कि मुस्लिम भी ये मानें कि उनके पूर्वजों ने गुनाह किए थे।

सवाल : आपको इमरान खान से पाकिस्तान की बेहतरी की कुछ उम्मीद है?

जवाब : इमरान खान से कैसी उम्मीद की जा सकती है। उनसे जरा सा भी बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि उन्हें कुछ आता-जाता ही नहीं।

सवाल: कभी मुल्क छोडऩे का गम होता है?

जवाब: मेरा मुल्क पाकिस्तान नहीं है। मैं पंजाबी हूं। इसलिए पाकिस्तान छोडऩे का जरा भी गम नहीं।

सवाल: देश के मौजूदा प्रधानमंत्री से कैसी उम्मीद है?

जवाब: हम चाहते हैं कि भारत में सबके लिए एक कानून हो। फिर वह हिंदू हो अथवा मुस्लिम। इसके लिए कॉमन सिविल कोड की आवश्यकता है। मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिशा में कदम अवश्य उठाएंगे।

सवाल: भारत का भविष्य कैसा देखते हैं?

जवाब: देखिए सबसे पहले भारत में बराबरी की आवश्यकता है। आर्थिक आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। यहां जिसके पास थोड़ा पैसा आ जाता है, वो कार चलाने के लिए ड्राइवर रख लेता है और खुद पीछे की सीट पर बैठकर शान दिखाता है। ये भावना खत्म करने की जरूरत है। 

सवाल: आप कट्टरपंथियों के खिलाफ हमेशा बोलते रहते हैं। कभी डर नहीं लगा?

जवाब: कैसा डर। मुझे कभी किसी से डर नहीं लगता। मुझे खुशी है कि मैं सच्चाई के रास्ते पर हूं।

सवाल: पर जब आपको कोई फेसबुक या ट््िवटर पर अपशब्द लिखता है तो क्या करते हैं?

जवाब: कुछ नहीं करता। यदि कोई पंजाबी हुआ तो लव यू टू लिख देता हूं और यदि कोई और तो यू टू लिख देता हूं।


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