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पद्मश्री 2022: लखनऊ की डा. विद्या विंदु सिंह को मिला 'विद्या' का सम्मान, जान‍िए क्‍या हैं उपलब्‍ध‍ियां

यूपी के ग्राम जैतपुर सोनावां अयोध्या में दो जुलाई 1945 को प्राणदेवी और देव नारायण सिंह की पुत्री के रूप जन्मीं डा.विद्या विंदु सिंह पद्मश्री लोक संस्कृति की साधना काे सम्मान है। वह स्वयं भी कहती हैं कि यह उनका नहीं लोक का सम्मान है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 10:04 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 07:32 AM (IST)
पद्मश्री 2022: लखनऊ की डा. विद्या विंदु सिंह को मिला 'विद्या' का सम्मान, जान‍िए क्‍या हैं उपलब्‍ध‍ियां
उप्र हिंदी संस्थान, लखनऊ में संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त डा. विद्या विंदु सिंह।

लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। लोक संस्कृति के विविध रूपों में निहित भारतीय परंपरा और संस्कार को डा. विद्या विंदु सिंह शब्द देकर जन-जन तक पहुंचाने के लिए निरंतर रचनाशील हैं। लोक साहित्य के अलावा भी उनकी तमाम कृतियां हैं जो समाज काे कुछ सकारात्मक देती हैं। उप्र हिंदी संस्थान, लखनऊ में संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त डा. विद्या विंदु सिंह हमेशा से मानती रहीं कि हमें अनुवाद के आधार पर ही नहीं, सादगी और सहजता से पुस्तकों का लेखन करना होगा। दो जुलाई, 1945 को उत्तर प्रदेश के ग्राम जैतपुर, सोनावां, जिला फैजाबाद (अब अयोध्या) में प्राणदेवी और देव नारायण सिंह की पुत्री के रूप जन्मीं डा.विद्या विंदु सिंह को पद्मश्री लोक संस्कृति की साधना काे सम्मान है। वह स्वयं भी कहती हैं कि यह उनका नहीं, लोक का सम्मान है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में डा. विद्या विंदु सिंह की 115 कृतियां प्रकाशित हैं। डा. विद्या विंदु सिंह हमेशा से ही भारतीय संस्कृति, परंपरा, संस्कार की पक्षधर रहीं। उनके द्वारा गढ़े गये चरित्र भारतीयता की मूल भावना का ही चित्रण करने वाले होते हैं।

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डा. विद्या विंदु सिंह उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से एक लंबे समय तक सम्बद्ध रही हैं। पहले प्रधान संपादक फिर उपनिदेशक और सेवानिवृत्ति के समय संयुक्त निदेशक पद को सुशोभित करने वाली डा. विद्या विंदु सिंह संस्थान द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'साहित्य भारती जिसका प्रारंभिक नाम 'भाषा भारती भी था, के संपादक के रूप में विशेष रूप से जानी जाती हैं। डा. विद्या विंदु सिंह का रचना संसार अत्यन्त विस्तृत है। उनका साहित्य शोधार्थियों-विद्यार्थियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। साहित्यकार डा. अमिता दुबे और अलका प्रमोद ने उन पर 'अविरल सक्रिय सर्जक डा. विद्या विंदु सिंह' शर्षक से किताब भी लिखी है।

  • संक्षिप्त परिचय

  • जन्म : दो जुलाई, 1945, ग्राम जैतपुर, सोनावां, फैजाबाद
  • शिक्षा/उपलब्धियां : एमए (हिंदी, भाषा विज्ञान) आगरा विवि, पीएचडी (काशी हिंदू विवि), बीएड, (गोरखपुर विवि), डीलिट हेतु लोकसाहित्य के अभिप्रायों का व्याकरण विषय पर शोध, आगरा विवि।
  • कृतियां : 118 प्रकाशित एवं 16 प्रकाशनार्थ।
  • उपन्यास : नौ, कहानी संग्रह-10, कविता संग्रह-12, लोक साहित्य-25, नाटक-छह, निबंध संग्रह-10, साक्षात्कार-एक, नवसाक्षर एवं बाल साहित्य-23, संपादित-23, अन्य अनेक पुस्तकों और पत्रिकाओं का संपादन।
  • आकाशवाणी, दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से निरंतर प्रसारण। देश- विदेश की संस्थाओं, विश्वविद्यालयों से संबद्ध।
  • कृतित्व पर शोध कार्य : लखनऊ, गढ़वाल, श्रीनगर, कानपुर, हैदराबाद, पुणे विवि., उच्च शिक्षा और शोध संस्थान दक्षिण भारत, चेन्नई द्वारा।
  • अनुवाद : सच के पांव (कविता संग्रह) का नेपाली में अनुवाद, साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा पुरस्कृत। मलयालम, मराठी, कश्मीरी, तेलगू, बांगला, उड़िया, जापानी, अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद।
  • विदेश यात्राएं: साहित्यिक आयोजनों में देश-विदेश में सक्रिय भागीदारी।
  • सम्मान: देश-विदेश की 105 संस्थाओं द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार।

कृतियां

  • उपन्यास : अंधेरे के दीप, फूलकली, ये बेटियां, नीरमती, शिलांतर सूखती सरिता का खत, शिवपुर की गंगा भौजी। हिरण्यगर्भा (नारी विमर्श पर पांच उपन्यास एक जिल्द में), लड्डू गोपाल क माई (अवधी उपन्यास)।
  • कहानी संग्रह: बखरी के लोग, अपनी जमीन, बाघ बाबा का चौरा, वे डोलत रस आपने, वनदेई, काशीवास, भैरव क माई, जहां जोगिया नचावै दुइ हरिना (अवधी में कहानियां), सड़क पर उगते बच्चे (लघुकथाओं का संग्रह), विद्या विंदु सिंह की लोकप्रिय कहानियां (प्रभात प्रकाशन की लोकप्रिय कहानियां’ सीरीज के अन्तर्गत), डा. विद्या विंदु सिंह की 21 कहानियां (प्रकाशनाधीन)

कविता संग्रह : वधूमेध, सच के पांव, अमर बल्लरी, कांटों का वन, (हाइकु संग्रह) वापस लौटें नीड़, (दोहा संग्रह) पलछिन, (क्षणिकाएं) तुमसे ही कहना है (भक्तिगीत), हम पत्थर नहीं हुए, हम पेड़ नहीं बन सकते, फुलवा बरन मन सीता (अवधी कविताएं)

लोक साहित्य: अवधी लोक गीत एक समीक्षात्मक अध्ययन, लोक मानस, चन्दन चौक, पीर पराई, सोंठ-गांठ, अवध की लोक कथाएं, ‘स्टोरी आफ राम, राजा की पोल, उप्र की लोक कलाएं, घर की भाषा घर का भाव, अवधी लोक नृत्य गीत, दिन-दिन पर्व, अवधी की वाचिक परंपरा, एक बांसुरी एक बांस, सीता सुरुजवा क ज्योति, रामकथा इन अवधी फोकलोर अवधी लोकगीतों में गदर, लोक विमर्श पेट का दुःख (लोक कथाएं), नीलकंठ (लोक कथाएं)। श्री हरि नाम महिमा (अध्यात्म-चिंतन परक निबंध), ढोलक रानी मोरे निति उठि आइयू (संस्कार गीत), अवधी लोक साहित्य में प्रकृति पूजा, अवधी लोकगीत विरासत, अवधी वाचिक कथा लोकः अभिप्राय चिंतन, साक्षात्कार: संवाद परिक्रमा, नाटक: काकी रोओ मत, अपना सब संसार, चन्द्रावती, तुरन्त, हसने पर लाल रोने पर मोती, जय बोलो महात्मा गांधी की।

नवसाक्षर एवं बाल साहित्यः बकुली और कौआ, कुआं, कहानी धनतेरस की, आंख ललाई मूछ मलाई, भर पाया, बेटी-बेटे, अन्याय नहीं होने दूंगी, मालकिन नहीं मां कहो, कर्ज, वंश, निनिया आवै निनर वन से, ई गारी प्रीति प्यारी जी, सुगनी, प्रीति के गीत। तोता और आदमी, (कहानियां), आज का गोपाल , गुल्ली डंडा रेत में (बाल कविताएं)।

व्याकरण- आइये व्याकरण सीखें कक्षा एक से आठ तक हिंदी व्याकरण की सरल एवं सचित्र पुस्तकें।

संपादनः ‘सालभर-पर्व’ (डा. विद्यानिवास मिश्र के चुने हुए निबंध), हिंदी की जनपदीय कविताएं (अवधी)। वाचिक कविता अवधी। ये दीप सुधियों के, राम कृपा कर चितवा जाही, (श्री कृष्ण प्रताप सिंह स्मृति ग्रंथ), पीयूषमाला (श्री विष्णुदेवानन्द विरचित का संशोधित परिवर्धित संकलन)। परिक्रमा (कहानी संकलन), अंजुरी भर फूल (स्मृतिका-2010), श्रद्धा-विश्वास (स्मृतिका-2011), भाव-तीर्थ (स्मृतिका-2012), सद्भाव (स्मृतिका-2012) संत-विवेक (स्मृतिका-2013), जंगनामा (1857 के गदर की गौरव गाथा (अवधी का सरल काव्य रूपांतर), युवा मानस के प्रणेता स्वामी विवेकानंदः अभिनव चिन्तन, भारतीय वांङ्मय में धर्म और संस्कृति। संत विवेक (2014), अक्षत फूल (स्मारिका 2015), संत विवेक 2015, संत विवेक 2016, इनसे उरिन हम नाहीं (जन्मशती पर) 25 दिसम्बर, 2016। शत सुमन माल, 25 दिसम्बर, 2017। समीक्षा के आलोक में डॉ. विद्या विन्दु सिंह (समीक्षाओं पर आधारित पुस्तक) सम्पादक-भावना सिंह एवं विनय कृष्ण सिंह ‘मानेक’ व अन्य 2018। प्रकाशक-के के पब्लिशर, भरत राम रोड, दरियागंज, नई दिल्ली। अवधी का समृद्ध गद्य साहित्य, प्रकाशनाधीन।


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