काशी में बस नमो नमो की गूंज
लखनऊ। वाराणसी शुक्र वार सुबह से बस नमो-नमो गूंज रहा है। सबकी जुबा पर एक नाम मोदी। नुक्कड़ ह
लखनऊ। वाराणसी शुक्र वार सुबह से बस नमो-नमो गूंज रहा है। सबकी जुबा पर एक नाम मोदी। नुक्कड़ हो या चाय की दुकान सब जगह मोदी ही मोदी। दुआ सलाम में मोदी, तारीफ और इल्जाम में मोदी। बाजार-हाट में मोदी, यहा तक कि बहस-मुबाहिसों के बीच श्मशान घाट पर भी मोदी। इस बात का कोई मतलब नहीं कि कौन मोदी को मखनियाता है या कौन उनके नाम पर बिदक जाता है। गौरतलब तो यह रहा कि जिसने जहा भी बतिआया, नाम मोदी का ही पाया। भारतीय जनता पार्टी की शुक्त्रवार को होने वाली विजय शखनाद रैली की पूर्व संध्या पर शहर का यही हाल रहा। सच कहें तो पता ही नहीं लगा कि एहरो मोदी, ओहरो मोदी की इस बयार में कब कौन पुरवा के साथ रहा और वही थोड़ी देर के बाद कब पछुआ के साथ बहा। नाटी इमली वाले पप्पू भइया के सैलून में तो आज ऐसा लगा मानों कैंचिया खनक उठेंगी, उस्तरे चल जाएंगे। दोनों गोलों के योद्धा लोकसभा चुनाव का इंतजार किये बगैर पीएम का मामला फिल्म सिंघम की तर्ज पर यहीं अब्भी के अब्भी फरियाएंगे। बात बस इतनी थी कि गोपीगंज वाले संतोष पाठक और कंइची कुतर रहे कारीगर मनोज इस बात पर एकवट गए कि मोदी के आगे सब नेता धूर हैं। उधर अनिल चौरसिया 'सूबी' समाजवादी पार्टी का पत्र खोल कर बैठ गए कि केतनों जोर लगालें मोदी, दिल्ली अभी दूर है। घटे भर की झाव-झाव के बाद समर्थक इधर तो विरोधी उधर गया। र्हे लगी न फिटकरी मुहल्ले में मोदी का प्रचार फोकट में हो गया।इसी झउझार से उबिया कर कबीरचौरा वाले बाढ़ू सरदार ने अपनी चाय की अड़ी पर मोदी कर्फ्यू लागू कर दिया। न समर्थन न विरोध, चाय क चुस्की ला आउर पकड़ ला रोड' मगर मनई मानें तब न। यहा भी लोग समंदर की लहरें गिने जा रहे हैं। गूलर के फूल बीने जा रहे हैं। जरा अंदाज तो देखिए बतक्कड़ों की मासूमियत का। एक सज्जन दूई पुरवा चाय सुड़कने में खर्च हुए आधे घटे के भीतर बहत्तार बार अपने साथियों को तार सप्तक में बरज चुके हैं-देखा पंचों गेहूं बोआ चाहे जौ, एतना याद रखे कि हिया मोदी क नाम नाहीं लेबे के हौ। दूसरे महानुभाव इनसे भी पाच हाथ आगे। ठींया के हिसाब से बाध दी है थैली। उनका उनवान बनी हुई है राजा तालाब की रैली। इसी बहाने शाम से ही मजमा जुटाए हुए हैं। बाढू़ को उजबक बनाए हुए हैं। बाढ़ू परेशान कि जब मनाही के बाद मोदी चर्चा का यह हाल, तो जाहिर है चर्चा की छूट के बाद तो दुकान चलाना ही मुहाल। सो सौ बोलती पर एक चुप्पी साधे हुए हैं। जैसे अब तक बीता कल रैली तक भी बीत जाएगा उम्मीद बाधे हुए हैं।
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