One Year of Lock Down in Lucknow: दिन देखा ना रात, कोरोना से लड़ाई में आए सब एक साथ
लखनऊ में लॉकडाउन में कंधे से कंधा मिलाकर जरूरतमंदों की मदद करते अधिकारी और लोग। नगर निगम पुलिस जिला प्रशासन और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने कोरोना से हर किसी को सुरक्षित करने में अपनी जान की बाजी लगा दी।
लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। वर्ष बदला, तारीख वही है। संक्रमण घटा, कोरोना वही है, पर इस बार थोड़ी राहत है। पिछले साल 25 मार्च की सुबह कुछ डरावनी थी। हर तरफ पुलिस का पहरा था। हर कोई घरों में कैद था। डर और चिंता हर किसी के मन में बस गई थी कि अब क्या होगा? पड़ोसी तक बेगाने हो गए थे। जिस घर में कोरोना के रोगी पाए जाते, वहां की सड़क सील हो जाती। घर चर्चा में आ जाता, फिर उस घर के सामने से निकलने में लोग घबराते थे।
छींक आते ही हर कोई एक-दूसरे को गैरतभरी नजरों से देखता था। बाजार का खाना बंद हो गया था, तो पान-मसाला के लिए लोग तरस गए थे। बच्चे बाहर खेलने को लेकर परेशान थे, लेकिन बड़ों की आज्ञा का पालन भी कर रहे थे। होली को सभी ने हल्के से खेला, तो ईद घरों में ही मन पाई। भयावह माहौल के बीच शहरवासियों ने न हिम्मत हारी और ना ही डरे, बल्कि कोरोना से जंग करने को डटे रहे। हमने कुछ अपनों को खोया भी, तो उसे कई गुना लोग कोरोना को पटकनी देकर फिर से वापस घर लौट आए।
कोरोना संक्रमण को लेकर शहरवासी मदद करने में भी पीछे नहीं हटे। पुलिस की जिस वर्दी को देखकर डर लगता था, वह एक फोन पर राशन से लेकर दवाई तक पहुंचा रही थी। नगर निगम, पुलिस, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने कोरोना से हर किसी को सुरक्षित करने में अपनी जान की बाजी लगा दी। सफाई कर्मचारियों की फौज संक्रमित इलाकों में बेहिचक पहुंच जाती और वहां केमिकल का छिड़काव कर उम्मीद जगाती कि हम आ गए हैं, अब भाग जाएगा कोरोना।
निजी हाथ भी बढ़ गए मदद को : सरकार की तरफ से कोरोना की रोकथाम और भूखों तक भोजन और दवा पहुंचाने के सराहनीय कार्य किए गए, लेकिन तमाम घरों से पूड़ी सब्जी तैयार कर लोगों तक पहुंचाई गई। बच्चों के लिए दूध, बिस्किट के साथ ही घर गृहस्थी के सामान तक को पहुंचाया गया। जिसके पास जितना सामथ्र्य था, उसने खुले मन से हर किसी तक पहुंचाया। ऐसे भी लोग दिखे, जो स्कूटर और साइकिल से भोजन और पानी पहुंचा रहे थे।
मुहल्लों के हिसाब से उतारी गई टीम: यह 25 मार्च का पहला दिन था, जब नगर निगम की टीम शहर में उतारी गई थी। हर वार्ड में दो क्विंटल चूना, 75 किलो ब्लीचिंग और पचास किलो मैलाथियान दिया गया था। संक्रमण को खत्म करने में सोडियम हाइपोक्लोराइट देने के साथ ही कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण भी दिए गए। बैटरी चलित वाहनों से सोडियम हाइपोक्लोराइट का छिड़काव किया गया।
नगर निगम का अन्ना बैंक रहा कारगर : भूखों तक राशन पहुंचाने के लिए नगर निगम ने सार्थक पहल की थी। अन्न बैंक (ग्रेन बैंक) चालू किया गया था। इसका खाता एचडीएफसी बैंक में खोला गया, तो कपूरथला सेक्टर एफ रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से 60 हजार का चेक मदद के लिए दिया गया। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. एसके रावत ने 25 हजार और नगर अभियंता एसएफए जैदी ने 50 हजार का चेक दिया, तो दान करने वालों की भीड़ लग गई। इस रकम से एक व्यक्ति को एक बार में 10 किलो आटा, तीन किलो चावल और एक किलो दाल दिया जाने लगा।
कम्युनिटी किचन बना मददगार : नगर निगम की तरफ से खोले गए कम्युनिटी किचन ने भी राहत दी। शहर में कई जगह खोले गए इस किचन से हर किसी को पूड़ी सब्जी, चावल छोला भेजा जाने लगा। भोजन तैयार होने के साथ ही गाडिय़ां उसे लेकर लोगों तक पहुंचाने के लिए निकल जाती थी। हाल यह हो गया कि हर दिन एक लाख लोगों तक भोजन पहुंचाया गया। इसकी निगरानी खुद तत्कालीन नगर आयुक्त डा.इंद्रमणि त्रिपाठी करते रहे और पूरी टीम कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही थी।